क्या डोनाल्ड ट्रंप भारत को खो रहे हैं? बदलते समीकरणों पर एक नज़र

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समग्र समाचार सेवा

वॉशिंगटन, 11 जून: डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी ने भारत में शुरुआत में काफी उत्साह जगाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को उम्मीद थी कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भारत और अमेरिका के संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। लेकिन, पांच महीने बीत जाने के बाद, यह शुरुआती भरोसा अब संदेह में बदलता दिख रहा है। अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपने हालिया लेख में ‘क्या डोनाल्ड ट्रंप भारत को खो देंगे?’ शीर्षक के साथ इस बदलते परिदृश्य पर प्रकाश डाला है।

ट्रंप के फैसलों से बदलता भारतीय नज़रिया

वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, ट्रंप के पांच महीनों के फैसलों को देखने के बाद, भारत में उनके समर्थक अब यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि ‘क्या ट्रंप का समर्थन कर उन्होंने कोई गलती की है?’ यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है, क्योंकि भारत को पहले से ही कारोबार संबंधी कुछ मुश्किलों की उम्मीद थी, लेकिन यह भरोसा था कि अन्य मुद्दों पर अच्छे संबंध होने से कारोबारी दिक्कतें भी दूर हो जाएंगी। रूस को लेकर ट्रंप के कुछ फैसले कई भारतीयों को पसंद आए, और भारत यह भी उम्मीद कर रहा था कि ट्रंप प्रशासन से मानवाधिकारों पर ‘ज्ञान’ नहीं मिलेगा। चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने नरेंद्र मोदी के भारत को एक विश्व शक्ति के रूप में खुले तौर पर अपनाने की सराहना की थी, जिससे भारत-अमेरिका मित्रता के एक नए युग की आशा जगी थी। लेकिन, राष्ट्रपति बनने के बाद भारत को जो अनुभव हुआ है, वह काफी निराशाजनक है।

भारतीय प्रवासियों और छात्रों पर ट्रंप प्रशासन का रुख

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने विशेष रूप से भारतीय प्रवासियों और छात्रों से जुड़े दो मुद्दों पर ज़ोर दिया है:

अवैध भारतीय प्रवासियों के साथ कठोर व्यवहार: ट्रंप के पहले कार्यकाल में लगभग 6,000 अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भेजा गया था। लेकिन, दूसरे कार्यकाल में, अवैध भारतीयों को कथित तौर पर बेड़ियों में बांधकर भारत भेजा गया, जिससे यह मुद्दा भारत में एक राजनीतिक मसला बन गया। विपक्षी नेताओं ने मोदी सरकार की आलोचना की कि वह विदेशों में भारतीयों के लिए खड़े होने में नाकाम रही है।

छात्र वीज़ा नीति में बदलाव: अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की संख्या में हाल ही में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष की तुलना में 23% की वृद्धि के साथ, 2023-24 के शैक्षणिक वर्ष में 331,602 भारतीय छात्रों ने अमेरिकी परिसरों में नामांकन कराया, जो चीन के 277,398 से अधिक है। यह अमेरिकी विश्वविद्यालयों के लिए एक अच्छी खबर थी, क्योंकि चीनी छात्रों के नामांकन में गिरावट आई थी। हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने 27 मई, 2025 को छात्र वीज़ा के लिए नए साक्षात्कारों की योजना बंद करने के फैसले ने भारतीय अधिकारियों, अभिभावकों और छात्रों को लगभग उतना ही चौंका दिया, जितना कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों को।

भविष्य के संबंध: भारत-अमेरिका संबंधों में अनिश्चितता

यह लेख दर्शाता है कि ट्रंप प्रशासन के शुरुआती पांच महीने भारत-अमेरिका संबंधों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुए हैं। जहां एक ओर भारत को ट्रंप के तहत बेहतर संबंधों की उम्मीद थी, वहीं उनके कुछ फैसलों ने भारतीय समुदाय और सरकार दोनों को चिंतित कर दिया है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या डोनाल्ड ट्रंप भारत के इस बदलते भरोसे को वापस जीत पाएंगे या फिर यह ‘क्या ट्रंप भारत को खो देंगे?’ सवाल बना रहेगा।

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