पूनम शर्मा
मंगोलिया के शांत, दूरदराज इलाके इस वक्त एशियाई भू-राजनीति का नया केंद्र बनते नजर आ रहे हैं। चीन के गले की नस माने जा रहे इस क्षेत्र में भारत ने ‘नोमैडिक एलिफेंट 2025’ नामक सैन्य अभ्यास शुरू किया है, जिससे चीन में हलचल मच गई है। यह अभ्यास भारत और मंगोलिया के बीच 17वीं बार हो रहा है, लेकिन इस बार इसकी टाइमिंग और जगह ने ड्रैगन को खासा बेचैन कर दिया है।चीन को सबसे अधिक चिंता रूस से प्रस्तावित 100 अरब डॉलर के ‘पावर ऑफ साइबेरिया 2’ गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट को लेकर है, जो मंगोलिया से होकर गुजरनी है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-मंगोलिया सहयोग से इस प्रोजेक्ट की सफलता पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं।
भारत की रणनीति: संसाधन सुरक्षा और चीन को बायपास
भारत की मंगोलिया में बढ़ती उपस्थिति केवल सैन्य नहीं, बल्कि आर्थिक और धार्मिक संदर्भों में भी महत्त्वपूर्ण है। भारत मंगोलिया से कोकिंग कोल, तांबा और रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे संसाधन चीन के रास्ते के बजाय रूस के माध्यम से लाने पर विचार कर रहा है। यह चीन पर निर्भरता कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
भारत और मंगोलिया के बीच 2009 से नागरिक परमाणु समझौता है। इसके अलावा, दोनों देशों ने 2019 में अंतरिक्ष और आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भी सहयोग किया। वर्तमान अभ्यास ऊलानबातर स्थित स्पेशल फोर्स ट्रेनिंग सेंटर में हो रहा है, जिसमें आतंकवाद विरोधी अभियान और संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन जैसे वास्तविक हालातों की नकल की जा रही है।
चीन की ‘विस्तारवादी सोच’: मंगोलिया पर दावा
चीन का मंगोलिया को लेकर विस्तारवादी रुख कोई नया नहीं है। चीन न्यूज सर्विस के 2013 के लेख “अगले 50 वर्षों में चीन जिन 6 युद्धों में शामिल होगा” में मंगोलिया को चीन का ‘आंतरिक हिस्सा’ बताया गया था और 2045 से 2050 के बीच उस पर कब्जा करने की भविष्यवाणी की गई थी।
2016 में जब तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने मंगोलिया का दौरा किया था, तब भी चीन ने एक सीमा चौकी बंद कर दी थी और कई व्यापारिक प्रतिबंध लगाए थे। उस समय मंगोलिया को चीन से 4.2 अरब डॉलर के कर्ज की जरूरत थी, लेकिन चीन ने बातचीत ही रद्द कर दी।
भारत-मंगोलिया के आध्यात्मिक रिश्ते
भारत और मंगोलिया के बीच केवल सामरिक ही नहीं, गहरे धार्मिक संबंध भी रहे हैं। लद्दाख के कुशोक बकुला रिनपोछे, जो भगवान बुद्ध के शिष्य अर्हत बकुला के 19वें अवतार माने जाते हैं, 1990 से 2000 तक भारत के मंगोलिया में राजदूत रहे। उनके प्रयासों से सोवियत संघ के विघटन के बाद मंगोलिया में बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण हुआ।
मंगोलिया के पहले लोकतांत्रिक राष्ट्रपति पी. ओचिरबत ने बकुला रिनपोछे को “राजनयिक, राजनेता और बौद्ध भिक्षु” की संज्ञा दी और भारत-मंगोलिया मैत्री संधि (1994) को उनकी प्रमुख उपलब्धि बताया।
भारत और मंगोलिया की यह रणनीतिक साझेदारी चीन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। भारत न केवल अपनी सुरक्षा और संसाधनों को सुरक्षित करने के लिए आगे बढ़ रहा है, बल्कि वह चीन के प्रभाव से अलग एक स्वतंत्र ध्रुव की स्थापना की दिशा में भी अग्रसर है। मंगोलिया के लिए यह ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ और ‘आर्थिक निर्भरता’ के बीच संतुलन साधने का कठिन समय है, लेकिन भारत के साथ संबंध उसे एक वैकल्पिक मार्ग दे सकते हैं — एक ऐसा मार्ग जो उसे चीनी दबाव से मुक्ति दिला सकता है।