समाज में बढ़ता अपराध : बिखरते रिश्ते, खोते मूल्य…. जागो अभी समय है !

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पूनम शर्मा

हाल के दिनों में सामने आई कुछ जघन्य घटनाएँ  समाज में गहरी चिंता पैदा कर रही हैं। मेरठ में सौरभ राजपूत की हत्या, गुवाहाटी में वंदना  कलिता द्वारा अपने पति और सास की निर्मम हत्या, और सोनम रघुवंशी द्वारा अपने नवविवाहित पति की हत्या की कथित योजना और भी कई ऐसी घटनाएँ  – ये सभी मामले एक ही भयावह कहानी कहते हैं: रिश्तों का पतन, चरित्र का क्षरण, और नैतिक मूल्यों का ह्रास। ये घटनाएँ केवल अपराध की खबरें नहीं हैं, बल्कि ये हमारे समाज के भीतर पनप रही एक गंभीर बीमारी के लक्षण हैं, जिस पर चिंतन और समाधान की नितांत आवश्यकता है।

सौरभ राजपूत का मामला, जहाँ  एक पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति को मौत के घाट उतार दिया और शव को सीमेंट के ड्रम में सील कर दिया, चौंका देने वाला है। इसी तरह,वंदना कलिता का मामला, जहाँ उसने अपने पति और सास दोनों की हत्या कर उनके शवों को टुकड़ों में काटकर फ्रिज में रखा, यह दर्शाता है कि वासना और भौतिक इच्छाएँ  कितनी गहराई तक व्यक्ति को अंधा कर सकती हैं। इन मामलों में, एक दुखद विवाह, उत्पीड़न, विवाहेतर संबंध और भौतिकवादी लालच का एक भयानक दुष्चक्र स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

ये घटनाएँ  हमें सोचने पर मजबूर करती हैं: हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है? आखिर क्यों ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जहाँ जीवन का मूल्य शून्य हो जाता है और केवल स्वार्थ और वासना ही हावी हो जाती है? इसके पीछे कई कारक हो सकते हैं, लेकिन एक मुख्य कारक जो उभर कर सामने आता है, वह है चरित्र का लगातार विकृत होना ।

पहले हमारे समाज में सहनशीलता, क्षमा और समायोजन जैसे मूल्यों को अत्यधिक महत्व दिया जाता था। परिवार और रिश्ते एक पवित्र बंधन माने जाते थे, जहाँ  समझौता और त्याग रिश्तों को मजबूत बनाते थे। लेकिन आज, ऐसा लगता है कि इन मूल्यों का तेजी से क्षरण हो रहा है। इसके स्थान पर, ‘अहं’ का विकास हो रहा है। व्यक्ति अपनी इच्छाओं और स्वार्थों को सर्वोपरि मानने लगा है। छोटी-छोटी असहमति  और व्यक्तिगत असंतोष, जो पहले बातचीत और समझ से सुलझा लिए जाते थे, अब बड़े विवादों और यहाँ  तक कि हिंसक परिणामों का कारण बन रहे हैं।

आज की जीवनशैली में भौतिकवादी सोच का बोलबाला है। सुख और संतुष्टि को अक्सर भौतिक वस्तुओं और भोग-विलास से जोड़ा जाता है। सोशल मीडिया और विज्ञापन की दुनिया ने ‘लक्जरी’ और ‘परफेक्ट’ जीवनशैली की एक ऐसी छवि गढ़ी है, जो अक्सर वास्तविक संबंधों और नैतिक मूल्यों को नजरअंदाज कर देती है। इस “लस्टी लाइफस्टाइल” की चाहत में, लोग नैतिक सीमाओं को पार करने और यहाँ  तक कि अपराध करने से भी नहीं हिचकिचाते। वैवाहिक जीवन, जो प्रेम, विश्वास और प्रतिबद्धता पर आधारित होना चाहिए, इस भौतिकवादी दौड़ में कहीं खो रहा है। विवाहेतर संबंध, जो पहले समाज में निंदनीय माने जाते थे, अब कुछ हलकों में ‘सामान्य’ होते जा रहे हैं, जो सीधे तौर पर विवाह की पवित्रता को चुनौती दे रहे हैं।

मूल्य प्रणाली का यह नुकसान विशेष रूप से उन समाजों में चिंतन का विषय है जहाँ पारिवारिक संरचना और मजबूत सामाजिक मूल्य सदियों से आधारशिला रहे हैं। यदि हमारी युवा पीढ़ी और समाज के सदस्य इन मौलिक मूल्यों से विमुख होते रहेंगे, तो यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करेगा, बल्कि समाज की स्थिरता और भविष्य के लिए भी एक गंभीर खतरा पैदा करेगा।

एक स्थिर समाज के निर्माण के लिए विश्लेषण और उपाय:

एक स्थिर और मजबूत समाज के निर्माण के लिए हमें इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना होगा और सक्रिय कदम उठाने होंगे:

  1. नैतिक शिक्षा का पुनरुत्थान: स्कूलों और घरों में नैतिक शिक्षा को फिर से प्राथमिकता दी जानी चाहिए। बच्चों को बचपन से ही सहानुभूति, ईमानदारी, सम्मान, सहनशीलता और दूसरों के प्रति जिम्मेदारी के मूल्यों को सिखाना महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यवहारिक शिक्षा होनी चाहिए।

  2. परिवार की भूमिका का सुदृढ़  होना : परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है, और इसकी मजबूती अत्यंत महत्वपूर्ण है। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ स्वस्थ और खुले संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। पारिवारिक मूल्यों, जैसे कि बड़ों का सम्मान, एक-दूसरे का समर्थन और मुश्किल समय में साथ खड़े रहना, को फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है।

  3. संबंधों में संचार और समझ: आधुनिक जीवनशैली में अक्सर तनाव और दबाव के कारण रिश्तों में दूरियां आ जाती हैं। कपल्स को एक-दूसरे के साथ खुला और ईमानदार संवाद बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। समस्याओं को छिपाने या नजरअंदाज करने के बजाय, उन्हें सुलझाने के लिए पेशेवर मदद (जैसे विवाह परामर्श) लेने में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए।

  4. भौतिकवाद पर लगाम: हमें अपनी खुशी को केवल भौतिक संपत्ति से जोड़ना बंद करना होगा। संतोष, कृतज्ञता और वास्तविक मानवीय संबंधों में खुशी ढूंढना सीखना होगा। मीडिया और मनोरंजन उद्योग को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और ऐसी सामग्री पेश करनी चाहिए जो नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दे, न कि केवल भोगवाद को।

  5. चरित्र निर्माण पर जोर: व्यक्तिगत स्तर पर, हर व्यक्ति को अपने चरित्र निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। आत्म-नियंत्रण, धैर्य और ईमानदारी जैसे गुणों को विकसित करना महत्वपूर्ण है। यह हमें प्रलोभनों से बचने और सही निर्णय लेने में मदद करेगा।

  6. सामुदायिक पहल: स्थानीय समुदाय और धार्मिक संगठन भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे जागरूकता कार्यक्रम, कार्यशालएँ  और सहायता समूह आयोजित कर सकते हैं जो स्वस्थ रिश्तों, नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा दें।
     क्या ये घटनाएँ क्या हमें नींद से जगाने के लिए काफी नहीं हैं ?  हमें अपने समाज की आत्म-खोज करनी होगी। यदि हम अपने चरित्र, मूल्यों और रिश्तों को प्राथमिकता नहीं देंगे, तो हम एक ऐसे समाज की ओर बढ़ेंगे जहां व्यक्तिगत स्वार्थ और वासना ही नियम होंगे, और मानव जीवन का सम्मान पूरी तरह से खो जाएगा। यह समय है कि हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें जो प्रेम, सम्मान और मानवीय मूल्यों पर आधारित हो।
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