fashion – पहनावा और मानवीय मूल्य: भारतीय समाज में बदलता परिदृश्य

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पूनम शर्मा                                                                                                                                                                                                                       हमारे पहनावे के चुनाव सिर्फ़ कपड़े पहनने तक सीमित नहीं हैं; वे हमारे गहरे मूल्यों और प्राथमिकताओं का प्रतिबिंब होते हैं । यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ मानवीय व्यवहार और पहनावा, एक दूसरे को गहराई से प्रभावित करते हैं । भारतीय संदर्भ में यह रिश्ता और भी दिलचस्प हो जाता है, क्योंकि यहाँ तेजी से हो रहे सामाजिक बदलाव, वैश्वीकरण और पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव हमारे पारंपरिक मूल्यों को नया आकार दे रहे हैं । 

बुनियादी संबंध: मूल्य और पहनावे का चुनाव

यह समझना बेहद ज़रूरी है कि हमारा पहनावा सीधे तौर पर हमारे मूल्यों से जुड़ा है. केफगेन और फ़िलिस (1981) जैसे शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी व्यक्ति के लिए सौंदर्य संबंधी मूल्य (aesthetic value) सबसे महत्वपूर्ण हैं, तो वह कपड़ों के डिज़ाइन, कपड़े की सुंदरता और खुद को अच्छी तरह से सजाने की संतुष्टि पर ध्यान देगा ।  इसके विपरीत, यदि आर्थिक मूल्य (economic value) सर्वोपरि हैं, तो कपड़ों की खरीदारी में उपयोगिता, गुणवत्ता और कीमत सबसे अहम होगी, और हो सकता है कि यह वित्तीय स्थिति का भी एक बयान हो । 

सैद्धांतिक ढाँचे: पहनावे के मूल्यों को समझना

इन दशकों में, पहनावे के मूल्यों का अध्ययन करने के लिए कई सैद्धांतिक ढाँचों का उपयोग किया गया है. । स्प्रेंजर (Spranger) का वर्गीकरण, जिसे हार्टमैन (Hartmann) और ऑलपोर्ट-वर्नन-लिंडसे (Allport-Vernon-Lindzey) ने भी अपनाया, विशेष रूप से प्रभावशाली रहा है. ये ढाँचे मानवीय मूल्यों को अलग-अलग प्रकारों में वर्गीकृत करते हैं, जिनमें से प्रत्येक का पहनावे की पसंद पर प्रभाव पड़ता है:

  • सैद्धांतिक (Theoretical): ये लोग प्रामाणिकता और गुणवत्ता को महत्व देते हैं. वे असली गहने, फ़र्ज़ और चमड़े को पसंद करते हैं, क्योंकि वे दिखावे के बजाय चीज़ों की हकीकत को महत्व देते हैं ।  उनके लिए कपड़े का फ़ाइबर कंटेंट और रखरखाव की जानकारी ज़्यादा मायने रखती है । 
  • आर्थिक (Economic): ये लोग पैसे का सही मूल्य चाहते हैं ।  वे आरामदेह और आसानी से रखरखाव वाले कपड़े चुनते हैं ।  ऐसे लोग बहुत सोच-समझकर खरीदारी करते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें सबसे अच्छी चीज़ सबसे कम कीमत पर मिले, और बर्बादी से नफरत करते हैं । 
  • सौंदर्यपरक (Aesthetic): इन लोगों के लिए पहनावा एक कला है. वे आकर्षक डिज़ाइन, सही फ़िटिंग, और मनभावन रंगों व बनावट को महत्व देते हैं. । वे अक्सर यूनिफ़ॉर्म नापसंद करते हैं और हाथ से बुने हुए कपड़े या हाथ से बने गहने पसंद करते हैं । 
  • सामाजिक (Social): सामाजिक मूल्यों वाले लोग दूसरों का ध्यान रखते हुए कपड़े पहनते हैं. वे ऐसे कपड़े पहनने से बचते हैं जो दूसरों को असहज महसूस कराएँ  । वे समूह के मानदंडों के अनुसार कपड़े पहनते हैं और दूसरों से बेहतर दिखने की कोशिश नहीं करते, बल्कि सामाजिक स्वीकृति को प्राथमिकता देते हैं । 
  • राजनीतिक (Political): ये मूल्य प्रभाव, शक्ति और प्रतिष्ठा की इच्छा से जुड़े हैं. ऐसे लोग दूसरों को प्रभावित करने और अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए कपड़े पहनते हैं ।  वे अक्सर ब्रांडेड कपड़े, डिज़ाइनर लेबल और लोगो पसंद करते हैं जो उनकी स्थिति का प्रतीक हों । 
  • धार्मिक (Religious): उच्च धार्मिक मूल्यों वाले व्यक्ति अक्सर सादगी और शालीनता को प्राथमिकता देते हैं. । वे प्राकृतिक रेशों को ईश्वर का उपहार मानते हैं और आडंबर से बचते हैं. उनके लिए विनम्रता आदर्श होती है, और यूनिफ़ॉर्म भी स्वीकार्य हो सकती है । 

इन पारंपरिक मूल्यों के अलावा, शोधकर्ताओं ने पहनावे से जुड़े अन्य विशिष्ट मूल्यों की भी पहचान की है, जैसे कि मनोरंजन, स्वतंत्रता, सहजता, सुरक्षा, आत्म-सम्मान, आत्म-अभिव्यक्ति, फ़ैशन, विविधता, रचनात्मकता, कार्यक्षमता और कामुकता। ये श्रेणियाँ पहनावे के चुनावों के पीछे की बहुआयामी प्रेरणाओं को उजागर करती है । 

भारतीय संदर्भ: बदलाव की अग्निपरीक्षा

आज भारतीय समाज वैश्वीकरण, तकनीकी प्रगति और औद्योगीकरण के कारण तीव्र और गहरे बदलावों से गुज़र रहा है।  इंटरनेट और टेलीविज़न जैसे जनसंचार माध्यमों के व्यापक प्रभाव ने बड़ी आबादी को पश्चिमी संस्कृति से परिचित कराया है, जिससे पारंपरिक भारतीय मूल्यों और नए उभरते मूल्यों के बीच एक स्पष्ट तनाव पैदा हो गया है ।  जैसा कि अध्ययन के तर्क में उजागर किया गया है, यह “स्पष्ट अंतर” बताता है कि युवा भारतीय भले ही पारंपरिक मूल्यों की बात करते हों, लेकिन उनके कार्य, जिनमें पहनावे के चुनाव भी शामिल हैं, बदलते माहौल के जवाब में तेज़ी से आधुनिक मूल्यों के अनुरूप होते जा रहे हैं । 

कई सामाजिक-आर्थिक बदलाव इस गतिशीलता को और बढ़ाते हैं:

  • बढ़ती पारिवारिक आय और डिस्पोजेबल आय: बढ़ती समृद्धि ने भारतीय उपभोक्ताओं को कपड़ों पर अधिक वित्तीय स्वतंत्रता दी है, जिससे वे बुनियादी ज़रूरतों से आगे बढ़कर फ़ैशन और आत्म-अभिव्यक्ति पर खर्च कर रहे हैं । 
  • महिलाओं का करियर-उन्मुखीकरण: करियर-उन्मुख महिलाओं की बढ़ती संख्या ने नई कपड़ों की ज़रूरतों को जन्म दिया है, जो पेशेवर पोशाक को व्यक्तिगत शैली के साथ संतुलित करती हैं । 
  • बदलती जीवनशैली और स्वास्थ्य चेतना: स्वास्थ्य और शारीरिक फिटनेस के बारे में बढ़ती जागरूकता ने कपड़ों के चुनावों को सक्रिय पहनने और आरामदायक, कार्यात्मक कपड़ों की ओर मोड़ दिया है।  
  • संयुक्त परिवारों का विघटन और शहरी प्रवासन: संयुक्त परिवारों से एकल परिवारों की ओर बदलाव, शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रवासन के साथ मिलकर, पारंपरिक सामाजिक नियंत्रणों को ढीला कर दिया है और व्यक्तियों को विविध कपड़ों के मानदंडों और प्रवृत्तियों से परिचित कराया है । 

ये सभी कारक मिलकर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों पर स्पष्ट प्रभाव डाल रहे हैं, भोजन की आदतों से लेकर लोगों के व्यवहार तक ।  यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन कारकों ने विशेष रूप से भारतीय उपभोक्ताओं के कपड़ों के मूल्यों को कैसे प्रभावित किया है । इस अध्ययन का औचित्य भारतीय लोगों के बदलते पहनावे की प्राथमिकताओं और मूल्य पैटर्न के बीच संबंधों की जाँच  करने की आवश्यकता को सही ढंग से पहचानता है, खासकर इस क्षेत्र में सीमित मौजूदा शोध को देखते हुए, जो अब तक मुख्य रूप से किशोरों पर केंद्रित रहा है । 

अनुभवजन्य साक्ष्य: संबंधों की पुष्टि

कई अध्ययनों ने सामान्य मूल्यों और पहनावे के व्यवहार के बीच संबंध को अनुभवजन्य रूप से समर्थन दिया है।  लापिट्स्की (Lapitsky, 1961) ने विशेष रूप से सकारात्मक संबंध की पुष्टि की, यह पाया कि पहनावे के सौंदर्य संबंधी पहलुओं पर जोर देने वाले व्यक्ति सामान्य सौंदर्य मूल्यों में भी उच्च अंक प्राप्त करते हैं ।  इस अध्ययन ने महिलाओं के लिए सौंदर्य और आर्थिक हितों के अन्य कपड़ों के मूल्यों की तुलना में अधिक महत्व पर भी प्रकाश डाला ।  दिलचस्प बात यह है कि लापिट्स्की ने यह भी पाया कि भावनात्मक रूप से सुरक्षित महिलाओं ने सौंदर्य मूल्यों में काफी उच्च अंक प्राप्त किए, जबकि सामाजिक रूप से असुरक्षित व्यक्तियों ने कपड़ों के सामाजिक मूल्य पर अधिक जोर दिया । 

आगे के शोध ने इन निष्कर्षों को पुष्ट किया है:

  • क्रीकमोर (Creekmore, 1967): कपड़ों के कुछ व्यवहारों और विशिष्ट मूल्यों के बीच महत्वपूर्ण संबंध पाए गए।  मजबूत सौंदर्य मूल्य कपड़ों के स्पर्श संबंधी पहलुओं और शैली के विशेष अर्थों पर जोर देने से जुड़े थ।  उच्च आर्थिक मूल्यों ने लागत, रखरखाव और सामान्य प्रबंधन पर जोर दिया ।  धार्मिक मूल्य शालीनता से जुड़े थे, जबकि राजनीतिक मूल्य फैशन और स्थिति के प्रतीक से जुड़े थे । 
  • शर्मा (Sharma, 1980): इन कई संबंधों की पुष्टि करते हुए कहा कि कपड़ों के आराम से अत्यधिक चिंतित व्यक्तियों ने सैद्धांतिक मूल्यों में उच्च अंक प्राप्त किए ।  उच्च आर्थिक मूल्यों वाले लोगों ने लागत और रखरखाव पर जोर दिया।  मजबूत सौंदर्य मूल्यों वाले लोगों ने स्पर्श संबंधी पहलुओं और प्रतीकात्मक अर्थों पर ध्यान दिया. उच्च राजनीतिक मूल्य व्यक्तिगत रूप को बढ़ाने से जुड़े थे । 
  • हॉफमैन (Hoffman, 1956): वार्डरोब की उपयुक्तता और उच्च आर्थिक मूल्य के बीच सकारात्मक संबंध पाया।  सामाजिक मूल्य में उच्च अंक प्राप्त करने वाले व्यक्तियों ने आरामदायक कपड़ों को अधिक पसंद किया।  उच्च राजनीतिक मूल्य वार्डरोब के डिज़ाइन, गुणवत्ता और कपड़ों में आत्म-विश्वास से जुड़ा था। 
  • अल्टपीटर (Altpeter, 1963): पता चला कि औसत से ऊपर आर्थिक मूल्य वाले लोग पारंपरिक और आरामदायक शैलियों को पसंद करते हैं, स्थानीय डिपार्टमेंटल स्टोर पर खरीदारी करते हैं, खरीदने से पहले मूल्य  की जाँच  करते हैं, और कपड़ों की खरीदारी में कम रुचि रखते हैं।  इसके विपरीत, सौंदर्य मूल्य में उच्च अंक प्राप्त करने वाले लोग खरीदारी का आनंद लेते हैं, अकेले खरीदारी करना पसंद करते हैं, सुंदर और असामान्य कपड़ों की तलाश करते हैं, और कपड़ों में उच्च रुचि रखते हैं। 

जबकि कुछ अध्ययनों, जैसे कि न्यूमैन और ब्रायस (Newman and Bryes, 1966), ने शुरू में पुरुषों के कपड़ों में रुचि और मूल्य अंकों के बीच कोई संबंध नहीं पाया, वहीं लापिट्स्की (1961) और हॉर्न (1970) जैसे अन्य लोगों ने आर्थिक, सौंदर्य और राजनीतिक मूल्यों वाले पुरुषों के लिए सकारात्मक संबंध पाए। साहित्य से समग्र सहमति दृढ़ता से विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों और सांस्कृतिक संदर्भों में मानव मूल्यों और कपड़ों के मूल्यों के बीच एक सुसंगत संबंध का सुझाव देती है। 

निष्कर्ष

मानवीय मूल्यों और पहनावे के बीच का संबंध एक जटिल और गतिशील है, जो सामाजिक बदलावों के साथ लगातार विकसित हो रहा है।  भारत में, वैश्वीकरण, तकनीकी प्रगति, बदलती पारिवारिक संरचनाओं और बढ़ती डिस्पोजेबल आय का संगम पारंपरिक मूल्य प्रणालियों और फलस्वरूप, पहनावे की प्राथमिकताओं पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इन प्रभावों को समझना केवल एक अकादमिक अभ्यास नहीं है; यह उपभोक्ता व्यवहार, सांस्कृतिक विकास और तेजी से बदलते देश में पहचान के ताने-बाने में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।  जैसा कि शोध इंगित करता है, चाहे वह सुंदरता, उपयोगिता, स्थिति या शालीनता पर जोर हो, हमारे कपड़ों के चुनाव हमारे प्रिय मूल्यों से गहराई से जुड़े हुए हैं, जो उन्हें व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली बैरोमीटर बनाते हैं । 

आप इस विषय में और क्या जानना चाहेंगे, या आपके पहनावे के चुनाव आपके मूल्यों को कैसे दर्शाते हैं?

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