पूनम शर्मा
आत्मनिर्भर भारत’ की परिकल्पना में रक्षा निर्माण, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को अब तक अभूतपूर्व प्राथमिकता मिली है। लेकिन एक ऐसा क्षेत्र जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, वह है – कंसल्टेंसी और फिजिबिलिटी स्टडी, विशेष रूप से वे अध्ययन जो सार्वजनिक निवेश, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और सरकारी पुनर्गठन की नींव बनते हैं। इस क्षेत्र में McKinsey, BCG, KPMG, PwC और Deloitte जैसी विदेशी कंपनियों का दशकों से एकाधिकार रहा है।
अब यह स्थिति धीरे-धीरे बदल रही है।
मोदी सरकार, जो राष्ट्रीय संप्रभुता और रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति दृढ़ दृष्टिकोण रखती है, अब भारत की बौद्धिक अवसंरचना—कंसल्टिंग, ऑडिटिंग और नीति विश्लेषण—में विदेशी निर्भरता को कम करने के लिए आवश्यक ढांचागत सुधारों की नींव रख रही है।
विदेशी प्रभुत्व का पैमाना
उद्योग अनुमान के अनुसार, ‘बिग फोर’ फर्म्स—Deloitte, EY, PwC, KPMG और Grant Thornton—मिलकर हर साल भारत में 45,000 करोड़ रुपये से अधिक की फिजिबिलिटी स्टडी, नीति सलाह और ऑडिट सेवाएं प्रदान करती हैं। Nifty 500 कंपनियों में से 65 प्रतिशत से अधिक इन्हीं कंपनियों द्वारा परामर्श या ऑडिट की जाती हैं। सरकारी विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों और यहां तक कि न्यायपालिका ने भी इन विदेशी कंपनियों पर भरोसा किया है।
यह सिर्फ आर्थिक निर्भरता नहीं है, बल्कि रणनीतिक परिणामों को भी जन्म देती है। इन कंपनियों के पास वर्षों के अनुभव, डेटा तक पहुंच और नीति निर्माण की जानकारी होती है, जिससे ये निर्णय प्रक्रिया में अत्यधिक प्रभावशाली बन जाती हैं। इससे नीति निर्माण में वैचारिक झुकाव या परोक्ष हस्तक्षेप की संभावना बनती है।
अब देशी कंसल्टिंग व्यवस्था की ओर
हाल के समय में नीति निर्धारक संस्थानों और सरकारी सलाहकार मंचों में एक स्पष्ट संदेश उभर रहा है: भारत को अपनी स्वयं की ऐसी संस्थाएं विकसित करनी चाहिए जो परियोजना मूल्यांकन, सार्वजनिक वित्त, शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचा सलाह में विश्वस्तरीय सेवाएं दे सकें।
यह संरक्षणवाद नहीं, बल्कि संतुलन की मांग है—बौद्धिक संप्रभुता की दिशा में एक प्रयास। सरकार IITs, IIMs, सार्वजनिक बैंकों और पीएसयू को प्रोत्साहित कर रही है कि वे अपनी कंसल्टिंग इकाइयां या विशेष उद्देश्य वाहिकाएं (SPV) स्थापित करें।
सवाल साफ है—जब हमारे पास देश में ही इतनी प्रतिभा और विशेषज्ञता है, तो किसी विदेशी कंपनी को हर बार प्रमुख परियोजना रिपोर्ट के लिए क्यों चुना जाए?
बैंकों की संस्था-शक्ति
SBI, PNB और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे सार्वजनिक बैंक पहले से ही परियोजना वित्त और जोखिम मूल्यांकन के क्षेत्र में मजबूत विभाग रखते हैं। अब इन्हें स्वतंत्र कंसल्टिंग इकाइयों के रूप में विकसित करने की दिशा में बढ़ाया जा रहा है ताकि वे विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा कर सकें। लक्ष्य है – केवल वित्त प्रदाता से आगे बढ़कर रणनीतिक ज्ञान प्रदाता बनना।
HDFC और ICICI जैसे निजी बैंक भी कम निवेश में इस क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं और अपने विशाल डेटा और अनुभव का लाभ उठा सकते हैं।
शैक्षणिक पूंजी: एक अप्रयुक्त खजाना
IITs, IIMs और NITs जैसे भारत के प्रमुख संस्थान बौद्धिक पूंजी से भरपूर हैं। ये संस्थान अंतरराष्ट्रीय निकायों के लिए नियमित रूप से अनुसंधान और परामर्श कार्य करते हैं। अब सरकार की योजना है कि ये संस्थान औपचारिक रूप से कंसल्टिंग डिवीजन बनाएं जो देश में सार्वजनिक और निजी परियोजनाओं को संभाल सकें।
यह कदम भारत की ज्ञान अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल सकता है और शोधकर्ताओं को सीधे राष्ट्र निर्माण में योगदान का अवसर देगा।
क्लाइंट से निर्माता तक
वृहद उद्देश्य है भारत को विदेशी कंपनियों का ग्राहक भर नहीं, बल्कि ज्ञान निर्यातक के रूप में स्थापित करना। मोदी सरकार की रणनीति है कि भारतीय कंपनियाँ वैश्विक स्तर की कंसल्टेंसी ब्रांड्स बनाएं जो केवल विकल्प नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मान्यता प्राप्त हों।
जैसे भारत IT सेवाओं से SaaS उत्पादक बन गया, वैसे ही वह कंसल्टिंग उपभोक्ता से कंसल्टिंग निर्माता बन सकता है।
एक रणनीतिक आवश्यकता
जब वैश्विक राजनीति के समीकरण तेजी से बदल रहे हों, तब सवाल केवल गुणवत्ता का नहीं होता, बल्कि यह भी होता है कि सेवा किसके हित में दी जा रही है। विदेशी कंपनियाँ चाहे जितनी भी पेशेवर हों, उनके रणनीतिक जुड़ाव उनके मूल देशों के साथ हो सकते हैं।
इसलिए भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी संवेदनशील नीतियां और सार्वजनिक निवेश योजनाएं केवल देशभक्त और स्वतंत्र संस्थाओं के मार्गदर्शन में ही बनें।
यह समय किसी विदेशी कंपनी को गलत ठहराने का नहीं, बल्कि बौद्धिक संप्रभुता को वापस लेने का है। यह समय है कि भारतीय प्रतिभा, भारतीय नीतियों और भारतीय सोच को दिशा दे।
मोदी सरकार ने इसकी शुरुआत कर दी है। कंसल्टिंग के एक नए युग के बीज बोए जा चुके हैं। अब देश की संस्थाओं को आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी निभानी होगी।