“मूर्ति खंडन और 80 साल के पुजारी पर कायरता भरा वार -“केरल की पवित्र भूमि पर कट्टरपंथी आघात जागो हिंदू समाज!”

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समग्र समाचार सेवा                                                                                                                                                                                           केरल ,7 जून -केरल के कोझिकोड से एक अत्यंत निंदनीय और चिंताजनक खबर सामने आई है, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। पवित्र अयप्पा मंदिर में एक उन्मादी व्यक्ति द्वारा भगवान अयप्पा की मूर्ति को खंडित करने और 80 वर्षीय पुजारी पर हमला करने की घटना ने एक बार फिर यह प्रश्न खड़ा कर दिया है — क्या भारत में हिंदू आस्था और मंदिर अब भी सुरक्षित हैं?

घटना क्या है ?

यह शर्मनाक घटना कोझिकोड के मेनचेरी स्थित अयप्पा मंदिर में शुक्रवार देर रात घटी। पुलिस के अनुसार, नावास नामक एक युवक मंदिर परिसर में जबरन घुसा और पहले भगवान अयप्पा की मूर्ति को खंडित किया, फिर वहां मौजूद वृद्ध पुजारी पर जानलेवा हमला किया। पुजारी गंभीर रूप से घायल हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। स्थानीय लोगों की तत्परता से हमलावर को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया गया।

हमलावर की पहचान और मंशा

हमलावर की पहचान नावास नामक युवक के रूप में हुई है, जो स्थानीय क्षेत्र का निवासी बताया जा रहा है। प्रारंभिक जांच में उसके कट्टरपंथी समूहों से संबंध होने की आशंका जताई गई है। पुलिस ने इस एंगल से जांच शुरू कर दी है और उसके मोबाइल, सोशल मीडिया कनेक्शन तथा बैकग्राउंड की गहन पड़ताल हो रही है। सवाल यह है कि क्या यह हमला सुनियोजित था या फिर किसी कट्टरपंथी उकसावे का परिणाम?

यह सिर्फ एक हमला नहीं, आस्था पर हमला है

भारत एक ऐसा देश है जहाँ धर्म, आस्था और मंदिर सदियों से संस्कृति की आत्मा रहे हैं। अयप्पा जैसे लोकदेवता करोड़ों श्रद्धालुओं के आराध्य हैं, जिनका मुख्य मंदिर सबरीमाला विश्वविख्यात है। कोझिकोड की यह घटना केवल मूर्ति खंडन या हिंसा नहीं है — यह एक सांस्कृतिक, धार्मिक और भावनात्मक विरासत पर हमला है।

एक वृद्ध पुजारी जो वर्षों से मंदिर की सेवा कर रहे थे, उन पर इस क्रूरता से हमला करना दर्शाता है कि अब असहिष्णुता का ज़हर समाज के किन स्तरों तक पहुंच चुका है।

मीडिया और सेक्युलर राजनीति की चुप्पी

यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस गंभीर हमले पर तथाकथित मुख्यधारा मीडिया और सेक्युलर राजनीतिक वर्ग मौन साधे हुए हैं। सोचने की बात है कि अगर यही हमला किसी अन्य धर्मस्थल पर हुआ होता, तो देशभर में विरोध-प्रदर्शन, बयानबाज़ी और अंतरराष्ट्रीय मीडिया तक शोर मच चुका होता। लेकिन जब मामला हिंदू मंदिरों और पुजारियों का आता है, तो वामपंथी मीडिया और सेक्युलर जमात ‘मौनव्रत’ धारण कर लेते हैं।

केरल में बढ़ती कट्टरपंथी गतिविधियाँ

केरल लंबे समय से कट्टरपंथी तत्वों की गतिविधियों के लिए एक चिंताजनक हॉटस्पॉट बनता जा रहा है। PFI जैसे संगठन भले ही प्रतिबंधित हो चुके हों, लेकिन उनकी विचारधारा और नेटवर्क जड़ों तक फैले हुए हैं। राज्य में मंदिरों और हिंदू त्योहारों पर हमले, लव जिहाद के मामले, और धार्मिक कट्टरता की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। इस घटना को भी इसी व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा।

सरकार और न्याय व्यवस्था से मांग

इस घटना को केवल एक आपराधिक मामला कहकर नहीं टाला जा सकता। यह एक ‘हेट क्राइम’ है जो धार्मिक कट्टरता से प्रेरित है। ऐसे में निम्नलिखित मांगें उठना स्वाभाविक हैं:

एनआईए या सीआईडी द्वारा गहन जाँच  हो ताकि हमलावर के पीछे छिपे नेटवर्क और मंशा सामने आ सकें।
हमलावर पर सख्त आतंकवाद-निरोधी कानूनों के तहत मुकदमा चले
मंदिरों की सुरक्षा के लिए विशेष सुरक्षा बल की नियुक्ति हो
राज्य सरकार कट्टरपंथ के खिलाफ स्पष्ट नीति लाए, ना कि वोटबैंक की राजनीति करे।
हिंदू समाज की एकजुटता ही उत्तर है

यह समय है जब हिंदू समाज को संगठित होकर अपनी आस्था, मंदिरों और धार्मिक स्थानों की रक्षा के लिए आगे आना होगा। मौन रहने से या केवल सोशल मीडिया पर विरोध जताने से बात नहीं बनेगी। समाज को लोकतांत्रिक, संवैधानिक ढंग से ऐसी घटनाओं का विरोध करना होगा और सरकार पर दबाव बनाना होगा कि वह ऐसे अपराधों के खिलाफ कठोरतम कार्यवाही करे।

कोझिकोड की यह घटना हमें चेतावनी देती है कि अगर अब भी नहीं जागे, तो आस्था पर हमलों का सिलसिला और बढ़ेगा। यह केवल कोझिकोड या अयप्पा मंदिर की बात नहीं है, यह पूरे भारत के मंदिरों और हिंदू संस्कृति की सुरक्षा का प्रश्न है।

एक वृद्ध पुजारी का खून मंदिर के गर्भगृह में गिरा है — यह भारत की आत्मा पर लगा एक गहरा घाव है। अब समय आ गया है कि हम उस आत्मा की रक्षा के लिए एकजुट हों।

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