सागर समाचार सेवा नई दिल्ली 3 जून – पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जल संधि के तहत नदी बहाव और जल आंकड़े साझा करना अस्थायी रूप से रोक दिया। पाकिस्तान ने इसे अंतरराष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन बताते हुए विरोध जताया, तो चीन भी मैदान में कूद पड़ा। उसने भारत को “जल सहयोग” की सीख दी और अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दी कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए पानी साझा करना जरूरी है।
लेकिन चीन की यह नैतिकता दोहरी है। वर्षों से वह ब्रह्मपुत्र और सतलुज जैसी नदियों पर बांध बनाकर भारत को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर जल संकट की स्थिति में डालता रहा है। 2017 डोकलाम विवाद के बाद चीन ने अचानक भारत को ब्रह्मपुत्र के आंकड़े देने बंद कर दिए थे। यही नहीं, अब वह तिब्बत में ब्रह्मपुत्र की धारा को मोड़ने के लिए मेगाडैम बना रहा है, जिससे अरुणाचल प्रदेश और असम में जल संकट की आशंका और बढ़ गई है।
भारत अब इस पूरे जल संकट को रणनीतिक हथियार के रूप में देखने लगा है। नीति आयोग और विदेश मंत्रालय के विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान को “जल-आंकड़ों” का लाभ देना अब व्यर्थ है जब वह आतंक को बढ़ावा देता है। भारत ने सिंधु जल संधि को खत्म करने की धमकी न देकर केवल आंकड़े साझा न करके यह संकेत दिया है कि वह पानी को अब राजनीतिक दबाव के उपकरण की तरह इस्तेमाल करेगा।चीन और पाकिस्तान दोनों ही भारत के खिलाफ पानी को रणनीतिक हथियार बना रहे हैं। अब भारत भी इस जलयुद्ध में कूटनीतिक ढंग से जवाब दे रहा है — न शोर, न प्रचार, बस दबाव।