समग्र समाचार सेवा नई दिल्ली ,2025 में कनाडा में आयोजित होने जा रहे G7 सम्मेलन में भारत की अनुपस्थिति ने वैश्विक राजनीति और द्विपक्षीय संबंधों में एक अहम मोड़ ला दिया है। यह पहला मौका है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले छह वर्षों में इस उच्चस्तरीय वैश्विक मंच में नहीं रहेंगे। भारत को G7 जैसे महत्वपूर्ण समूह से बाहर रखा जाना केवल एक औपचारिक चूक नहीं है, बल्कि यह भारत-कनाडा के बीच लगातार बढ़ते तनाव की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति है।
G7 समूह – जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा शामिल हैं – वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा मामलों में दिशा देने का काम करता है। भारत, जो अब वैश्विक मंच पर एक उभरती महाशक्ति और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, पिछले वर्षों में विशेष आमंत्रित राष्ट्र के रूप में इस मंच पर भाग लेता रहा है। लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई।
इस साल भारत की अनुपस्थिति की सबसे बड़ी वजह जून 2023 में कनाडा में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और उसके बाद के घटनाक्रम हैं। कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खुलेआम भारत पर इस हत्या में संलिप्त होने का आरोप लगाया था। भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी थी। तब से दोनों देशों के बीच विश्वास की डोर लगभग टूट चुकी है।
भारत सरकार की ओर से अब तक कोई भी संकेत नहीं आया है कि प्रधानमंत्री मोदी G7 सम्मेलन में भाग लेंगे। कनाडा की नई सरकार भी अब तक औपचारिक निमंत्रण भेजने से बच रही है। यह दर्शाता है कि दोनों देशों के बीच संबंध कितने नाजुक मोड़ पर पहुंच चुके हैं।
सुरक्षा कारण और खालिस्तानी खतरा
भारत की G7 से अनुपस्थिति के पीछे केवल कूटनीतिक मतभेद ही नहीं, बल्कि सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी हैं। खालिस्तानी समूहों की ओर से बार-बार की गईं विरोध-प्रदर्शन की धमकियों और कनाडा की सरकार द्वारा उनकी गतिविधियों पर नरमी के चलते भारत की तरफ से किसी उच्चस्तरीय प्रतिनिधित्व की संभावना और भी क्षीण हो गई है।
यह मान लेना अनुचित नहीं होगा कि भले ही अंतिम समय में निमंत्रण भेजा भी जाए, तो भी भारत के लिए इस सम्मेलन में भाग लेना अब तार्किक नहीं रहेगा।
भारत की बहुपक्षीय भूमिका पर असर?
भारत ने हाल ही में G20 शिखर सम्मेलन की सफल मेज़बानी की थी, जिससे उसकी वैश्विक कूटनीतिक स्थिति और नेतृत्व क्षमता को नई ऊंचाइयां मिलीं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा सोचना जल्दबाज़ी होगी। G7 से बाहर रहना कोई अलगाव का संकेत नहीं, बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि भारत अब अपनी विदेश नीति को अधिक व्यावहारिक तरीके से चला रहा है – जहां राष्ट्रहित और संप्रभुता सबसे ऊपर हैं।
क्या यह संबंधों का अंत है?
कनाडा की नई सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह भारत के साथ संबंधों को फिर से पटरी पर लाना चाहती है। लेकिन इसके लिए दोनों देशों को अपने-अपने कोर मुद्दों पर गंभीर बातचीत करनी होगी। भारत की चिंता खालिस्तानी गतिविधियों को लेकर है, वहीं कनाडा को भारत से न्यायिक सहयोग की उम्मीद है। इन दोनों विषयों पर विश्वास और सम्मान की नई शुरुआत के बिना कोई भी सकारात्मक बदलाव संभव नहीं।
यह अवसर है दोनों देशों के लिए आत्मनिरीक्षण का – कि कैसे वे एक-दूसरे की संप्रभुता और आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों को समझते हुए सहयोग की राह पर फिर से लौट सकते हैं।
आज की बहुध्रुवीय दुनिया में, जहां रणनीतिक साझेदारियाँ हर दिन बदल रही हैं, कनाडा जैसे लोकतंत्रों को यह दिखाना होगा कि मतभेदों के बावजूद संवाद और सहयोग जारी रह सकते हैं। अन्यथा, यह कूटनीतिक शून्यता आने वाले वर्षों में और अधिक गहरा हो सकता है।