कांग्रेस बनाम थरूर: शशि थरूर की विदेशों में भारत की छवि पेश करने पर कांग्रेस की तानाशाही प्रतिक्रिया
क्या कांग्रेस अपने ही नेताओं को चुप कराने में जुटी है?
पनामा में शशि थरूर ने भारत की पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से निपटने की बदली हुई नीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूती से रखा। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत अब सिर्फ सहन नहीं करता, बल्कि जवाबी कार्रवाई करता है — जैसे कि 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयरस्ट्राइक। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इस तथ्य आधारित बयान पर न केवल ऐतराज़ जताया, बल्कि थरूर पर भाजपा का ‘सुपर प्रवक्ता’ होने तक का आरोप लगा दिया।
उधित राज की बौखलाहट या कांग्रेस की संगठित साजिश?
कांग्रेस नेता उधित राज ने थरूर पर तीखा हमला करते हुए कहा कि वे भाजपा का प्रचार कर रहे हैं और कांग्रेस के इतिहास को “गिराने” की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक “फर्जी” थी। यह टिप्पणी न केवल सेना का अपमान है, बल्कि देश की सुरक्षा रणनीति पर भी संदेह पैदा करने वाली है।
थरूर का बयान साफ था—वह युद्ध की नहीं, बल्कि आतंकवादी हमलों पर की गई जवाबी कार्रवाई की बात कर रहे थे। लेकिन कांग्रेस नेताओं ने जानबूझकर उनके बयान को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया।
कांग्रेस की दोहरी नीति: एक ओर चुप्पी, दूसरी ओर हमला
जब थरूर भारत की छवि को वैश्विक मंच पर पेश कर रहे थे, उसी समय कांग्रेस के अन्य नेता जैसे पवन खेड़ा भी उन पर हमलावर हो गए। खेड़ा ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का एक बयान साझा कर यह दावा किया कि यूपीए के समय भी सर्जिकल स्ट्राइक्स होती थीं—हालांकि सार्वजनिक रूप से कभी स्वीकार नहीं की गईं।
यहां विरोधाभास यह है कि शशि थरूर ने सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति या उसके “पहली बार” होने पर टिप्पणी की, जिसे पार्टी ने “निंदनीय” मान लिया, लेकिन जब उधित राज ने उस स्ट्राइक को ही “फर्जी” कहा, तब पार्टी ने कोई सख्त कार्रवाई नहीं की।
क्या शशि थरूर कांग्रेस में ‘गैर-गांधी’ होना भुगत रहे हैं?
शशि थरूर का सबसे बड़ा अपराध शायद यह है कि वह गांधी परिवार के दरबारी नहीं हैं। पार्टी ने उन्हें मल्टी-पार्टी डेलिगेशन में नामांकित तक नहीं किया था, लेकिन केंद्र सरकार ने उनके कूटनीतिक अनुभव के कारण उन्हें भेजा। यही बात शायद कांग्रेस को चुभ रही है।
थरूर पहले भी कांग्रेस के भीतर हाशिये पर डाले जाने का शिकार हो चुके हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें अपने ही कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा। 2019 में कांग्रेस नेता मुरलीधरन ने कहा था कि थरूर का “ऑक्सफोर्ड इंग्लिश” नहीं, बल्कि “एंटी-मोदी” रवैया उनकी सीट की जीत का कारण था।
थरूर का करारा जवाब: ‘मेरे पास और बेहतर काम हैं’
थरूर ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर अपने आलोचकों को करारा जवाब देते हुए कहा, “मैं स्पष्ट रूप से केवल आतंकवादी हमलों के जवाब में की गई कार्रवाई की बात कर रहा था, न कि युद्धों की।” उन्होंने कांग्रेस के भीतर चल रहे “zealots” (कट्टर समर्थक) पर भी तंज कसते हुए कहा कि वह इस विवाद में समय नहीं बर्बाद करेंगे।
निष्कर्ष: कांग्रेस के भीतर असहमति की कोई जगह नहीं?
शशि थरूर की आलोचना से यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस में कोई नेता स्वतंत्र रूप से सोच भी नहीं सकता। पार्टी की प्राथमिकता अब शायद राष्ट्रहित नहीं, बल्कि परिवारहित है। जो भी गांधी परिवार के खिलाफ या उससे अलग दृष्टिकोण रखता है, उसे ‘भाजपा समर्थक’ कहकर बदनाम कर दिया जाता है।
क्या यह वही कांग्रेस है जो लोकतंत्र की बात करती है? या फिर यह वही पार्टी बन चुकी है जो अपनी ही आवाज़ों को दबाने में माहिर हो गई है?