दशकों की तपस्या और संघर्ष के बाद, रैनावारी के शिवलिंग की वापसी—एक आध्यात्मिक विजयगाथा

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पूनम शर्मा 

दशकों की निरंतर कानूनी लड़ाई, आध्यात्मिक धैर्य और सामूहिक संघर्ष के बाद, रैनावारी कश्मीरी पंडितों की शीर्ष संस्था—रैनावारी कश्मीरी पंडित एक्शन कमेटी (RKPAC)—ने एक ऐतिहासिक और अत्यंत भावनात्मक उपलब्धि हासिल की है। जम्मू-कश्मीर के माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के तहत, वर्षों से पुलिस की अभिरक्षा में पड़ा हुआ प्राचीन शिवलिंग अब रैनावारी की धरती पर लौट आया है। यह केवल एक मूर्ति की वापसी नहीं, बल्कि एक पूरी सभ्यता की आत्मा की वापसी है।

एक प्राचीन आस्था का प्रतीक

यह शिवलिंग मात्र एक पूजनीय प्रतीक नहीं है—यह कश्मीर की प्राचीन शैव परंपरा की अमूल्य धरोहर है। यह शिवलिंग कभी रैनावारी के बोध मंदिर (शिव जी मंदिर), क्रालयार में प्रतिष्ठित था। यह मंदिर रैनावारी नहर के किनारे स्थित है और सदियों से कश्मीरी पंडितों की धार्मिक चेतना का केंद्र रहा है।

किंवदंतियों के अनुसार, इस शिवलिंग में चमत्कारी शक्तियाँ हैं और यह कई बार भक्तों की रक्षा और कृपा का माध्यम बना है। लेकिन जब कश्मीर में उथल-पुथल और विस्थापन का दौर शुरू हुआ, तब यह मंदिर उपेक्षित हो गया और दुर्भाग्यवश, यह शिवलिंग नहर में फेंक दिया गया—एक निंदनीय और आत्मा को झकझोर देने वाला कृत्य।

न्याय की ओर बढ़ते कदम

इस पवित्र शिवलिंग को बाद में स्थानीय पुलिस ने बरामद तो कर लिया, लेकिन यह वर्षों तक अभिरक्षा में पड़ा रहा। इसी समय, श्री भूषण लाल जलाली, अध्यक्ष RKPAC, ने इस मामले को अपनी जीवन की साधना बना लिया। उनके अटल संकल्प, कानूनी दक्षता और आध्यात्मिक नेतृत्व ने यह सुनिश्चित किया कि मामला जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में पहुंचे।

माननीय न्यायालय ने इस शिवलिंग की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को स्वीकार करते हुए इसके रिहा किए जाने का आदेश दिया। यह फैसला न केवल एक कानूनी विजय है, बल्कि यह धार्मिक पहचान की पुनर्प्राप्ति और सांस्कृतिक पुनरुद्धार की मशाल भी है।

जोगेश्वरी मंदिर में नये जीवन की शुरुआत

अब यह प्राचीन शिवलिंग रैनावारी के जोगेश्वरी मंदिर (लोकुट मंदिर), घाट जोगी लंकर में प्रतिष्ठित किया जा रहा है। यह मंदिर नाथ परंपरा और त्रिक शैव दर्शन का ऐतिहासिक केंद्र रहा है। दुःख की बात यह है कि इस मंदिर का मूल सप्तिक शिवलिंग वर्षों पहले गायब हो गया था, जो सांस्कृतिक क्षरण का जीवंत प्रमाण है।

जोगेश्वरी मंदिर ट्रस्ट (JMT) ने RKPAC के साथ मिलकर इस शिवलिंग की पुनः स्थापना का निर्णय लिया है। यह साझेदारी न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह समुदाय की एकता, संघर्षशीलता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का संदेश भी देती है।

एकता, आस्था और अस्तित्व की पुनर्प्राप्ति

यह शिवलिंग अब सिर्फ एक मूर्ति नहीं है—यह एक प्रतीक है उस अडिग आस्था का, जिसने विस्थापन, अपमान और त्रासदी के बावजूद भी अपना धर्म और संस्कृति नहीं छोड़ी। वर्षों से अपने मूल स्थानों से दूर रह रहे कश्मीरी पंडितों के लिए यह शिवलिंग एक प्रकार की आत्मा की घर वापसी है।

जोगेश्वरी मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, इसकी भैरव उपासना परंपरा और त्रिक दर्शन से जुड़ाव इसे शिवलिंग की पुनः स्थापना के लिए आदर्श बनाते हैं। यह एक रणनीतिक और आध्यात्मिक निर्णय है, जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनेगा।

प्रशासन से अनुरोध

हालाँकि यह सफलता ऐतिहासिक है, लेकिन कई प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं। जोगेश्वरी मंदिर का मूल सप्तिक शिवलिंग आज भी लापता है। RKPAC और कश्मीरी पंडित समाज प्रशासन से अपील करता है कि वे इसे ढूंढने और वापस लाने में मदद करें।

मंदिरों का संरक्षण और पुनर्निर्माण केवल आस्था की बात नहीं है—यह एक सांस्कृतिक उत्तरदायित्व है। मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं होते, वे हमारी सभ्यता की स्मृति होते हैं। राज्य संस्थानों को चाहिए कि वे इन स्थलों की रक्षा को प्राथमिकता दें और ऐसे कृत्यों की पुनरावृत्ति को रोकें।

एक सामूहिक विजय

यह ऐतिहासिक प्रतिष्ठा समारोह RKPAC और JMT की सामूहिक मेहनत और समर्पण का परिणाम है। श्री भूषण लाल जलाली का नेतृत्व इस अभियान की आत्मा रहा है। जोगेश्वरी मंदिर अब न केवल एक प्राचीन शिवलिंग का नया घर है, बल्कि यह आस्था, आत्मगौरव और पुनरुद्धार का केंद्र भी बन गया है।

यह क्षण न केवल कश्मीरी पंडितों के लिए, बल्कि हर उस समुदाय के लिए प्रेरणादायक है जो अपने अस्तित्व और संस्कृति के पुनर्प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा है।

जय जोगेश्वरी महादेव
जय वैताल भैरव
ॐ परा भैरवाय नमः
ॐ परा भट्टारिकायै नमः

(स्रोत ,आभार : डॉ महेश कौल )

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