पूनम शर्मा
भारत एक ऐसा राष्ट्र है जहाँ लोकतंत्र की नींव मतभेदों की इजाज़त देती है, लेकिन जब मतभेद राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र में तब्दील हो जाएँ, तो मौन रहना भी गुनाह बन जाता है। आज देश एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है जहाँ कांग्रेस पार्टी की हरकतें सिर्फ विपक्ष की भूमिका तक सीमित नहीं रह गईं, बल्कि कई बार वो पाकिस्तान, तुर्की और चीन जैसे शत्रु देशों के एजेंडे को बढ़ावा देने वाली प्रतीत होती हैं।
ऑपरेशन सिंदूर और तुर्की कनेक्शन: संदेह नहीं, सबूत हैं
सितंबर 2019 में जब भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया, तब पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हुई। पाकिस्तान ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र तक घसीटा और तुर्की व चीन ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया। जवाब में भारत ने तुर्की से दूरी बनाई। लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि नवंबर 2019 में कांग्रेस ने तुर्की के इस्तांबुल में चुपचाप एक ऑफिस खोल लिया, जहाँ सिर्फ 800 भारतीय हैं।
यह सवाल उठता है—क्या कांग्रेस ने ये ऑफिस भारत के हित में खोला था या फिर भारत विरोधी तत्वों की सुविधा के लिए? रिपोर्ट्स के अनुसार, तुर्की ने कश्मीरी छात्रों को स्कॉलरशिप देकर बुलाया और वहाँ “आई एसआई” नाम के कट्टरपंथी संस्थान के जरिए उन्हें भारत विरोधी एजेंडे की ट्रेनिंग दी जाने लगी।तुर्की और PFI का गुप्त गठजोड़
तुर्की के PFI (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) से गहरे संबंध हैं। यही संगठन भारत में कई बार हिंसा और उग्र प्रदर्शन के लिए बदनाम रहा है। कांग्रेस की राजनीतिक शाखा SDPI को भी कई बार चुनावों में कांग्रेस का समर्थन करते हुए देखा गया है। जब PFI को बैन किया गया, तब भी कांग्रेस की ओर से कोई गंभीर विरोध नहीं आया। कर्नाटक, केरल और वायनाड—जहाँ से राहुल गांधी सांसद रहे—वहाँ PFI की मजबूत पकड़ है। ये सब सिर्फ संयोग नहीं हो सकता।
चीन से रिश्ता गहरा, देश से दूर?
2008 में कांग्रेस ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के साथ एक गुप्त MOU साइन किया था। इसके बाद डोकलाम विवाद के दौरान राहुल गांधी चुपचाप चीनी राजदूत से मिले। यही नहीं, राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से फंडिंग मिली। ये वही चीन है जो पाकिस्तान को हथियार देता है, भारत की सीमाओं में घुसपैठ करता है, फिर भी कांग्रेस के नेता “ड्रैगन के दोस्त” क्यों बने हुए हैं?
पाकिस्तान की गोदी में कांग्रेस?
अब बात करते हैं सबसे गंभीर पक्ष की—पाकिस्तान और कांग्रेस का मानसिक गठजोड़, जिसे आज के समय में “साइकोलॉजिकल वॉरफेयर” कहा जाता है। पाकिस्तान आज कांग्रेस नेताओं के बयान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस्तेमाल कर रहा है। राहुल गांधी, उमर अब्दुल्ला, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव जैसे नेताओं के बयान पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर दिन-रात चलाए जा रहे हैं ताकि दुनिया को दिखाया जा सके कि भारत में खुद की सरकार के खिलाफ कितनी नकारात्मकता है।
अजय राय का बयान, जिसे पाकिस्तान ने पूरे दिन टीवी पर चलाया, सीधे भारतीय सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश है।
पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारों से कांग्रेस का रिश्ता?
ये कोई एक-दो घटनाएं नहीं हैं। इंदौर में कांग्रेस पार्षद अनवर कादरी को “पाकिस्तान ज़िंदाबाद” के नारे लगाने पर गिरफ्तार किया गया। मुरादाबाद में कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष और 200 कार्यकर्ताओं ने यही नारे लगाए। हरियाणा की विधानसभा में भी कांग्रेस समर्थकों की ओर से ऐसे नारे लगे।
और सबसे गंभीर मामला—कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेता की जीत पर विधानसभा के भीतर ‘पाकिस्तान ज़िंदाबाद’ के नारे लगे। जो व्यक्ति नारे लगा रहा था, वह राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर चला था।
जब दुश्मन देश राहुल गांधी के बयान को अपना हथियार बना रहे हों
संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान ने राहुल गांधी के बयान को अपनी रिपोर्ट में उद्धृत किया। यह दर्शाता है कि कांग्रेस के नेता आज केवल भारत सरकार के नहीं, बल्कि भारतीय सुरक्षा तंत्र और सेना के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शत्रुओं को मजबूत करने वाले उपकरण बन चुके हैं।
क्या कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में रहकर गद्दारी के रास्ते पर है?
कांग्रेस का कहना है कि उन्होंने तुर्की और चीन से “राजनयिक संबंध सुधारने” के लिए यह सब किया, पर क्या विपक्ष का काम दुश्मनों से दोस्ती करना है? भारत सरकार ने तो पाकिस्तान से बातचीत तब तक ठुकरा दी जब तक आतंकवाद खत्म नहीं होता। लेकिन कांग्रेस उसी पाकिस्तान के समर्थन में खड़ी नज़र आती है।
कौन हैं वो लोग जो भारत की जड़ें काट रहे हैं?
अगर कोई दुश्मन देश में रहकर पाकिस्तान, तुर्की और चीन के लिए काम करे, तो उसे गद्दार नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?
क्या सत्ता की लालसा में देशहित को गिरवी रखना अब विपक्ष की नई परिभाषा बन गई है?
कांग्रेस को अब जवाब देना होगा—क्या वह भारत के साथ है या भारत के खिलाफ?