राहुल गांधी की डीयू यात्रा पर बवाल: बीजेपी ने कहा – “फोटो-ऑप के लिए सर्कस”

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समग्र समाचार सेवा 

नई दिल्ली 23 मई : कांग्रेस नेता राहुल गांधी की गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के नॉर्थ कैंपस में हुई बिना  पूर्व सूचना वाली यात्रा ने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है। कांग्रेस जहां इसे वंचित छात्रों से संवाद का प्रयास बता रही है, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन और बीजेपी ने इस पर तीखा विरोध जताया है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के आधिकारिक बयान में राहुल गांधी की इस यात्रा को संस्थानिक प्रोटोकॉल का उल्लंघन बताया गया है। प्रशासन के अनुसार, गांधी के एक घंटे तक ठहरने के दौरान डूसू (DUSU) कार्यालय को सुरक्षा घेरे में ले लिया गया और यहां तक कि डूसू सचिव को भी उनके कार्यालय में प्रवेश नहीं करने दिया गया।

बीजेपी ने इस मुद्दे को राजनीतिक दिखावे की राजनीति बताते हुए राहुल गांधी पर हमला बोला है। बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने X (पूर्व ट्विटर) पर एक वीडियो साझा करते हुए लिखा:

“राहुल गांधी ने दिल्ली विश्वविद्यालय को एक सर्कस में बदल दिया, वह भी सिर्फ एक फोटो-ऑप के लिए। यह यात्रा पूर्व नियोजित न होकर भी पूरी तरह से ‘स्क्रिप्टेड’ लग रही थी, और छात्रों को भ्रमित कर दिया गया।”

बीजेपी और एबीवीपी का आरोप: “चुनिंदा छात्रों से ही संवाद”

आरएसएस से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने भी इस यात्रा की आलोचना करते हुए इसे एक “राजनीतिक नाटक” बताया है। एबीवीपी का कहना है कि राहुल गांधी ने सिर्फ NSUI (कांग्रेस की छात्र इकाई) से जुड़े छात्रों से बातचीत की और अन्य छात्र प्रतिनिधियों को दरकिनार कर दिया गया।

इस पूरे घटनाक्रम में डूसू अध्यक्ष रौनक खत्री, जो NSUI से जुड़े हैं, ने बचाव करते हुए कहा कि छात्र संघ को किसी निजी मेहमान को आमंत्रित करने के लिए विश्वविद्यालय से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने विश्वविद्यालय के प्रेस नोट को “राजनीतिक रूप से प्रेरित और पक्षपाती” बताया।

लेकिन आलोचकों का कहना है कि रौनक खत्री की दलीलें छात्र स्वायत्तता और राजनीतिक अवसरवादिता के बीच की रेखा को धुंधला कर देती हैं। जब एक निर्वाचित छात्र सचिव को अपने ही कार्यालय में प्रवेश से रोका जाए, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का खुला उल्लंघन है।

क्या विश्वविद्यालयों को राजनीतिक रंगमंच में बदला जा रहा है?

राहुल गांधी की यह यात्रा एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर रही है कि क्या वे संवेदनशील स्थानों का उपयोग केवल राजनीतिक प्रतीकों और मीडिया प्रचार के लिए कर रहे हैं? पहले भारत जोड़ो यात्रा, अब डीयू यात्रा—बीजेपी का कहना है कि यह सभी घटनाएं “इवेंट मैनेजमेंट” से ज्यादा कुछ नहीं हैं।

छात्रों के साथ संवाद की जगह अब राजनीतिक स्पिन का मंच बन चुकी है। विश्वविद्यालय प्रशासन और बड़ी संख्या में छात्रों के लिए यह यात्रा “बिना अनुमति घुसपैठ” से कम नहीं थी।

जहाँ कांग्रेस इसे प्रतिनिधित्व और न्याय की लड़ाई बता रही है, वहीं वास्तविकता यह दिखा रही है कि छात्र राजनीति में पारदर्शिता और निष्पक्षता कहीं पीछे छूट गई है। राहुल गांधी की यह यात्रा राजनीतिक असंवेदनशीलता और मंच सज्जा की मिसाल बनकर रह गई है — जिससे न तो संस्थान को सम्मान मिला, न ही छात्रों को जवाब।

“राजनीतिक फायदे के लिए विश्वविद्यालयों को इस्तेमाल करना बंद कीजिए,” बीजेपी का यही सीधा संदेश 

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