जापान में चावल संकट: बढ़ती कीमतें, घटती आपूर्ति और कृषि मंत्री का इस्तीफा

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समग्र समाचार सेवा 
नई दिल्ली, 23 मईजापान, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भोजन परंपराओं में चावल को प्रमुख स्थान देता है, इस समय एक बड़े चावल संकट का सामना कर रहा है। जहां एक ओर चावल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं, वहीं दूसरी ओर दुकानों की शेल्फ़ से चावल गायब हो रहा है। इसके चलते देश में हड़कंप मच गया है और जापान के कृषि मंत्री ताकू एतो को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है।

चावल संकट की जड़ें कहाँ हैं?

पिछले साल गर्मियों में संभावित “मेगाक्वेक” की चेतावनी के चलते लोगों ने पैनिक बाइंग शुरू कर दी। इसी के साथ जलवायु परिवर्तन, कीट प्रकोप और खेती की घटती भूमि ने हालात को और बिगाड़ दिया। सरकार ने पहले ही किसानों को चावल की जगह अन्य फसलों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि चावल की कीमतें स्थिर रहें। लेकिन अब वही नीति भारी पड़ रही है।

प्रमुख ब्रांड “कोशिहिकारी” की कीमतें अब लगभग 5,000 येन (₹2,800) प्रति 5 किलोग्राम पहुंच चुकी हैं, जो सामान्य कीमत से लगभग दोगुनी है। जापान की कृषि सहकारी समितियों (JA) के पास पिछले साल की तुलना में 4 लाख टन कम भंडार है।

 मंत्री का विवादित बयान और इस्तीफा

कृषि मंत्री ताकू एतो ने एक संसदीय सत्र में कहा, “मुझे कभी चावल खरीदना नहीं पड़ा, मेरे समर्थक मुझे उपहार में दे देते हैं।” इस संवेदनहीन बयान से आम जनता की नाराजगी भड़क गई। बढ़ती महंगाई और संकट के समय यह बयान जनता से कटेपन की मिसाल बन गया। प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने चुनाव से पहले नुकसान को रोकने के लिए मंत्री से इस्तीफा ले लिया।

अब उनके स्थान पर पूर्व पर्यावरण मंत्री शिंजिरो कोइज़ुमी को कृषि मंत्री नियुक्त किया गया है। उन्हें अब इस संकट से निपटने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

जनता और बाजार की हालत

टोक्यो के पास कावासाकी की निवासी हिरोमी अकाबा कहती हैं, “अगर ये हाल ऐसे ही रहा, तो हम चावल खाना ही छोड़ देंगे।”
बाजारों में चावल की खरीद पर प्रतिबंध लगा दिए गए हैं – एक ग्राहक, एक बैग

इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ सुपरमार्केट जैसे Aeon Co. अब अमेरिका से आयातित ‘Calrose’ चावल बेचने की तैयारी कर रहे हैं। यह चावल आम जापानी लोगों में पसंदीदा नहीं है, लेकिन संकट के समय लोगों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है।

सरकार की नीतियों पर सवाल

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की “एग्रीकल्चरल एकरेज कटबैक” नीति, यानी खेती की जमीन कम करने की योजना, जापान की खाद्य सुरक्षा के लिए घातक सिद्ध हो रही है। सरकार आपातकालीन भंडार से चावल तो जारी कर रही है, लेकिन वह बाजार तक समय पर नहीं पहुंच पा रहा है।

उधर, कई व्यापारी जानबूझकर चावल रोककर कीमतें बढ़ा रहे हैं, ऐसी भी अटकलें हैं। साथ ही, भंडारण में रखे भूरे चावल को सफेद चावल में बदलने के लिए मिलिंग सुविधाओं की कमी भी एक बड़ी समस्या है।

 भविष्य क्या होगा?

जापान में किसानों की औसत उम्र 69 वर्ष है और खेती करने वाले लोगों की संख्या पिछले 20 वर्षों में आधी होकर 1.1 मिलियन रह गई है।
यह संकट सिर्फ मौसमी नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालिक खाद्य नीति विफलता का संकेत है।

अगर तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो वह दिन दूर नहीं जब जापान की “चावल संस्कृति” सिर्फ इतिहास में रह जाएगी .

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