समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली 21 मई : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर चल रही सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बी। आर. गवई ने कहा कि संसद द्वारा पारित कोई भी कानून संवैधानिक माने जाते हैं, जब तक कि उसमें कोई स्पष्ट और गंभीर खामी न हो। अदालत ने यह टिप्पणी वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की उस दलील के जवाब में दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों को जब्त करने का उद्देश्य रखता है।
मुख्य न्यायाधीश गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ इस अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। केंद्र सरकार ने आग्रह किया कि सुनवाई को तीन मुद्दों तक सीमित रखा जाए, लेकिन याचिकाकर्ताओं की ओर से सिब्बल और सिंघवी ने इस मांग का विरोध किया।
10 बिंदुओं में जानिए कोर्ट में क्या हुआ:
- मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि- संसद द्वारा पारित कानूनों में एक संवैधानिकता की धारणा होती है और अदालतें तभी हस्तक्षेप करती हैं जब कोई स्पष्ट असंवैधानिकता हो।
- कपिल सिब्बल ने कहा कि -नया कानून वक्फ संपत्तियों को सरकार के कब्जे में देने के लिए लाया गया है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है।
- सीजेआई ने कहा – “मैं दरगाह भी गया हूं, चर्च भी गया हूं… हर धर्मस्थल पर चढ़ावा आता है।” इसपर सिब्बल ने कहा – “मैं मस्जिदों की बात कर रहा हूं, वहां ऐसा नहीं होता।”
- पंजीकरण पर बहस: सीजेआई ने पूछा कि क्या वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण पूर्व अधिनियमों में अनिवार्य था? सिब्बल बोले – “1954 के बाद यह अनिवार्य हुआ।”
- अदालत ने कहा – कि पुराने कानून में पंजीकरण की आवश्यकता थी, लेकिन पंजीकरण नहीं कराने पर क्या असर होगा, इसका कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था।
- ASI संरक्षित संपत्तियों पर बहस: सिब्बल ने कहा कि नया अधिनियम कहता है – एएसआई संरक्षित संपत्ति वक्फ नहीं मानी जाएगी। सीजेआई ने पूछा – क्या इससे धार्मिक आचरण का अधिकार खत्म होता है?
- सीजेआई ने उदाहरण दिया – “मैंने एक एएसआई संरक्षित मंदिर देखा जहां लोग प्रार्थना कर रहे थे। ऐसे में प्रार्थना का अधिकार नहीं छिनता।”
- धार्मिक अधिकार की बात- सिब्बल ने कहा कि वक्फ रद्द करने का प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है।
- अदालत ने यह रिकॉर्ड किया कि याचिकाकर्ताओं ने धार्मिक स्वतंत्रता के हनन की दलील दी है।
- अंत में कोर्ट ने कहा -कि संसद पर भी और याचिकाकर्ताओं पर भी दबाव है, लेकिन वह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप फैसला करेगी।
सुनवाई अभी जारी है और अदालत ने स्पष्ट किया है कि वह सभी पक्षों को ध्यान से सुनेगी। यह मामला आने वाले दिनों में धार्मिक अधिकारों और संपत्ति कानूनों के बीच संतुलन को लेकर एक बड़ा उदाहरण बन सकता है।