|| दुःख से ऊपर उठकर जियें ||

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                                                                                                              आज का भगवद चिंतन 

 खुश रहने का अर्थ केवल ये भी नहीं है कि जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा है अथवा सब कुछ आपके अनुकूल चल रहा है अपितु ये भी है कि आपने अपने दुःखों से ऊपर उठकर जीना सीख लिया है। वृक्षों पर सदैव हरियाली ही छायी रहे या बसंत की बहार छायी रहे, यह कदापि संभव ही नहीं। वृक्ष है तो बसंत भी है, हरियाली भी है और समय आने पर पतझड़ भी है, ये बात भी सदैव स्मृति में बनी रहनी चाहिए।

     वृक्ष सूखा नहीं है, बस पतझड़ हुआ है और समय आने पर फूल-फल भी अवश्य देगा इसी का नाम दूरदृष्टि है। केवल पतझड़ को देखकर दुःखी हो जाना समाधान नहीं है अपितु अपनी दूर दृष्टि से पतझड़ के बाद आने वाले बसंत को देखकर प्रसन्न रहना ही उस दुःख का समाधान है। यदि आज सब कुछ आपके विपरीत भी है तो दृष्टि को थोड़ा ऊपर उठाकर देखें, यहाँ सब कुछ बदल रहा है। दुःख के बाद आने वाले सुख को देखकर प्रसन्न रहना ही दुःख से ऊपर उठकर जीना है।

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