भारत के पूर्वोत्तर को घेरने की साजिश: बांग्लादेश की डीजीएफआई समर्थित पोर्टल का उकसाऊ विश्लेषण

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समग्र समाचार सेवा 

गुवाहाटी, 21  मई –   भारत के पूर्वोत्तर को घेरने की डीजीएफआई की रणनीति उजागर, रोहिंग्या सेफ ज़ोन बना औजार बांग्लादेश की शीर्ष खुफिया एजेंसी डीजीएफआई (Directorate General of Forces Intelligence) से जुड़ी एक वेबसाइट bdmilitary.com ने एक उकसाऊ और खतरनाक विश्लेषण प्रकाशित किया है, जिसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को रणनीतिक रूप से घेरने की बात कही गई है। इस विश्लेषण में दावा किया गया है कि रोहिंग्या सुरक्षित क्षेत्र (Rohingya Safe Zone) की स्थापना बांग्लादेश को “पूर्वी सीमा पर गहराई” बनाने और “भारत के पूर्वोत्तर को प्रभावी ढंग से घेरने” का अद्वितीय अवसर प्रदान करती है।

यह लेख न केवल भारत के खिलाफ आक्रामक रणनीतिक सोच को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बांग्लादेश की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां अब भारत के आंतरिक भूभाग को दबाव में लेने की खुली नीति अपना रही हैं।

लेख में कहा गया है कि रोहिंग्या सेफ ज़ोन के ज़रिए बांग्लादेशी सेना कई रणनीतिक गलियारों पर प्रभाव स्थापित कर सकती है, जिससे उसे पूर्वोत्तर भारत में सैन्य और व्यापारिक दबाव बनाने का अवसर मिलेगा। यह पहला मौका है जब किसी बांग्लादेशी सैन्य पोर्टल पर इस तरह की खुली घेराबंदी की रणनीति सार्वजनिक की गई है।

कलादान प्रोजेक्ट पर सवाल और राखीन राज्य को चोकपॉइंट बताने की चाल

इस विश्लेषण में भारत-म्यांमार के बीच के कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट की “सीमाओं” पर भी टिप्पणी की गई है। राखीन राज्य को एक “महत्वपूर्ण चोकपॉइंट” बताया गया है, जिसे भारत और क्षेत्रीय साझेदारों की गतिविधियों में अवरोध उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

इसके ज़रिए भारत की सीमाओं की सुरक्षा, सैन्य गतिविधियों और व्यापार मार्गों पर प्रभाव डालने की बात की गई है। विश्लेषण के अनुसार, “बांग्लादेश यदि राखीन राज्य के एक्सेस प्वाइंट्स और सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर नियंत्रण रखता है, तो वह बहुआयामी घेराबंदी रणनीति को अंजाम दे सकता है।”

निगरानी और सैन्य तैनाती की सिफारिश

लेख में आगे कहा गया है कि बांग्लादेश को “बफर ज़ोन में निगरानी और रक्षात्मक संसाधनों की तैनाती” करनी चाहिए ताकि सीमा पार गतिविधियों पर निगरानी रखी जा सके और संभावित सुरक्षा खतरों को पहले ही रोका जा सके।

इसका सीधा संकेत है कि सेफ ज़ोन का उपयोग मानवीय सुरक्षा के बजाय रणनीतिक सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

चीन और अमेरिका के कंधों पर बंदूक

विश्लेषण यह भी दर्शाता है कि यह योजना भारत को अकेला करने और क्षेत्रीय प्रभुत्व को संतुलित करने की व्यापक अंतरराष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा है। लेख में कहा गया है कि:

  • चीन अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के ज़रिए इस बांग्लादेश-केंद्रित कॉरिडोर से लाभान्वित होगा, जो भारत की एकतरफा क्षेत्रीय पकड़ को सीमित करता है।
  • अमेरिका, “इंडो-पैसिफिक रणनीति” को आगे बढ़ाने के लिए इस सेफ ज़ोन को मानवीय आधार पर समर्थन दे सकता है।

भारतीय हितों के खिलाफ राजनीतिक लामबंदी

विश्लेषण में यह चेतावनी भी दी गई है कि भारत समर्थक दलों की ओर से आंतरिक राजनीतिक विरोध उत्पन्न हो सकता है, जो इस योजना को कमजोर कर सकता है। इसके बावजूद, यह सलाह दी गई है कि बांग्लादेश को “संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से बहुपक्षीय मंजूरी” प्राप्त करनी चाहिए ताकि इस योजना को वैधता और सुरक्षा प्रदान की जा सके।

भारत के लिए चेतावनी और खतरे की घंटी

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियां इस योजना की संभावना से अवगत हैं, लेकिन यह लेख एक स्पष्ट चेतावनी है कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाला अंतरिम शासन भारत के पूर्वोत्तर को दबाव में लेने की साज़िश को रणनीतिक दस्तावेज़ का रूप दे चुका है।

भारत के लिए यह समय है कि वह केवल मानवीय दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि रणनीतिक और सामरिक नजरिए से भी रोहिंग्या सेफ ज़ोन की अवधारणा का मूल्यांकन करे। वरना यह क्षेत्र एक नए भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र बन सकता है।

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