सुप्रीम कोर्ट ने अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दी, SIT के गठन का आदेश

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समग्र समाचार सेवा 

नई दिल्ली ,21 मईसुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अशोका विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दे दी। उनके खिलाफ हरियाणा पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (SIT) के गठन का भी आदेश दिया है। यह SIT महिला अधिकारी के नेतृत्व में होगी और पूरे प्रकरण की स्वतंत्र जांच करेगी।

प्रोफेसर महमूदाबाद को रविवार को उनके दिल्ली स्थित निवास से गिरफ्तार किया गया था। उन पर सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और उसमें शामिल महिला सैन्य अधिकारियों को लेकर कथित आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप है। हरियाणा महिला आयोग की अध्यक्ष रेनू भाटिया और सोनीपत के जठेड़ी गांव के सरपंच द्वारा की गई शिकायतों के आधार पर राय थाना में दो एफआईआर दर्ज की गईं थीं।

एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएं 152 (राष्ट्रीय एकता को खतरा पहुंचाना), 353 (सार्वजनिक शांति को भंग करने वाले बयान), 79 (महिला की गरिमा का अपमान) और 196(1) (धर्म के आधार पर वैमनस्य फैलाना) लगाई गई हैं।

सोशल मीडिया पर प्रोफेसर की पोस्ट का एक अंश इस प्रकार है:

मैं बहुत खुश हूं कि इतने सारे दक्षिणपंथी विचारधारा वाले लोग कर्नल सोफिया कुरैशी की तारीफ कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भीड़ हिंसा, बुलडोजर राजनीति और नफरत की राजनीति के शिकार लोगों के हक की भी उतनी ही जोर से मांग करनी चाहिए। दो महिला सैनिकों का सामने आना प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है, लेकिन प्रतीकात्मकता ज़मीन पर हकीकत में बदले, तभी वह सच्चा संदेश देती है।”

इस बयान को महिला अधिकारियों का अपमान और सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश मानते हुए कार्रवाई की गई। हालांकि, कई विशेषज्ञों और नागरिकों का मानना है कि उनके बयान को गलत समझा गया है और इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था।

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा पुलिस की त्वरित कार्रवाई पर सवाल उठाए, जबकि मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह द्वारा महिला अधिकारी के खिलाफ दिए गए सांप्रदायिक बयान की जांच में वहां की पुलिस की सुस्ती पर चिंता जताई।

इस बीच, सोनीपत की एक अदालत ने मंगलवार को प्रोफेसर को 27 मई तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद उन्हें अंतरिम राहत मिली है।

यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सत्ता का दुरुपयोग और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बन गया है। अब सभी की निगाहें SIT की जांच रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की अंतिम सुनवाई पर टिकी हैं।

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