अध्यात्म में बढ़ता पाखंड: सनातन धर्म में अंधश्रद्धा और ढोंग का सच

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पूनम शर्मा 
हिन्दू सनातन धर्म एक अत्यंत प्राचीन, गूढ़ और व्यापक धार्मिक प्रणाली है, जिसका मूल उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति है। परंतु आजकल जिस प्रकार से “अध्यात्म” के नाम पर पाखंड, दिखावा और व्यावसायिकता बढ़ रही है, वह चिंता का विषय है। शुद्ध ज्ञान और साधना के मार्ग को छोड़कर लोग अब तड़क-भड़क, चमत्कारों और अंधभक्ति की ओर मुड़ रहे हैं। सवाल उठता है – क्या यह सच्चा अध्यात्म है या एक दिखावटी नाटक?

पाखंड के प्रमुख कारण

  1. धर्म का व्यवसायीकरण
    आजकल अध्यात्म एक “उद्योग” बन चुका है। टीवी चैनलों, यूट्यूब, सोशल मीडिया पर “बाबाओं” और “गुरुओं” की बाढ़ आ गई है, जो चमत्कारों का दावा करते हैं, लेकिन असल में लोगों की भावनाओं और आस्था का व्यापार करते हैं। सत्य साधना को छोड़कर धन, प्रसिद्धि और राजनीतिक प्रभाव मुख्य उद्देश्य बन चुका है।
  2. अज्ञानता और अंधश्रद्धा
    बहुसंख्यक लोग वेद, उपनिषद या भगवद गीता जैसे ग्रंथों का अध्ययन नहीं करते, जिससे उन्हें अध्यात्म का वास्तविक स्वरूप समझ में नहीं आता। इसी अज्ञानता का फायदा उठाकर ढोंगी गुरु और पाखंडी लोग उन्हें भ्रमित करते हैं। श्रद्धा जब विवेकहीन हो जाती है, तब वह अंधश्रद्धा में बदल जाती है।
  3. चमत्कारों की भूख
    लोग अब ईश्वर को साधने के लिए नहीं, बल्कि तात्कालिक समस्याओं का “जादुई हल” पाने के लिए धर्म की शरण में जाते हैं। कोई नौकरी चाहता है, कोई संतान, कोई कोर्ट केस जीतना चाहता है – और ढोंगी बाबा ऐसे ही उपायों के नाम पर उन्हें भ्रमित करते हैं।
  4. मूल ग्रंथों से दूरी
    हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथ – वेद, उपनिषद, भगवद गीता – गूढ़ हैं और अभ्यास व साधना की मांग करते हैं। जबकि आज के अधिकांश लोग आसान और त्वरित समाधान चाहते हैं। इस मानसिकता ने सच्चे ज्ञान के स्थान पर पाखंड को जन्म दिया है।

समाधान क्या है?

  • लोगों को अपने धर्म के मूल स्रोतों का अध्ययन करना चाहिए।
  • विवेकशील श्रद्धा विकसित करनी चाहिए – जहां तर्क और भक्ति का संतुलन हो।
  • ढोंगी बाबाओं और उनके चमत्कारों के पीछे भागने के बजाय जीवन में साधना, सेवा और सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए।
  • सरकार और समाज को मिलकर ऐसे पाखंडियों के विरुद्ध कार्रवाई करनी चाहिए।

निष्कर्ष
सनातन धर्म एक वैज्ञानिक, तर्कसंगत और आत्मानुशासन पर आधारित धर्म है। लेकिन आज उसमें जो पाखंड घुल चुका है, वह हमारे अपने दृष्टिकोण और आलस्य का परिणाम है। यदि हम सच में अध्यात्म को समझना चाहते हैं, तो हमें अपनी आस्था को ज्ञान से जोड़ना होगा, न कि अंधश्रद्धा से। तभी धर्म अपने वास्तविक स्वरूप में समाज का कल्याण कर सकेगा।

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