MP में सियासी भूचाल: मंत्री विजय शाह के विवादित बयान की जांच के लिए चुने गए 3 IPS अफसर, जानिए कौन हैं ये सच्चाई के शिकारी !
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,20 मई । मध्य प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री विजय शाह के कथित विवादित बयान ने जहां सत्ता पक्ष को मुश्किल में डाल दिया है, वहीं अब इस बयान की गंभीर जांच के लिए तीन दिग्गज IPS अफसरों की तैनाती की गई है। इन अफसरों को सौंपी गई है सच का पर्दाफाश करने की जिम्मेदारी — और इनके नाम सामने आते ही प्रशासनिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है।
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दीपक वर्मा (ADG, इंटेलिजेंस)
खुफिया तंत्र के मास्टरमाइंड माने जाने वाले दीपक वर्मा उन गिने-चुने अधिकारियों में से हैं, जिनकी पकड़ प्रदेश की राजनीतिक गतिविधियों पर बेहद मजबूत है। शांत स्वभाव के पीछे छुपी鋭 निगाहें किसी भी झूठ को चीर सकती हैं। -
रुचि सिंह (IG, क्राइम ब्रांच)
तेज-तर्रार, बेधड़क और निष्पक्ष — IG रुचि सिंह की छवि एक सख्त और ईमानदार अफसर की है। उन्हें महिला अपराधों और हाई-प्रोफाइल केसों की जांच में विशेष अनुभव है। विजय शाह के बयान के निहितार्थ और संभावित अपराधिक प्रभावों की पड़ताल अब उनके जिम्मे है। -
अरुण चौबे (DIG, लोक व्यवस्था)
बड़े दंगों और राजनीतिक आंदोलनों को संभालने का लंबा अनुभव रखने वाले अरुण चौबे अब इस राजनीतिक आग की जांच में कूद चुके हैं। उनकी रणनीतिक सूझबूझ और मैदानी पकड़ उन्हें इस टीम का अहम सदस्य बनाती है।
मंत्री विजय शाह पर आरोप है कि उन्होंने एक जनसभा के दौरान संवेदनशील और भड़काऊ भाषा का प्रयोग किया, जिससे जातीय और सामाजिक तनाव पैदा हो सकता था। वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मामला तूल पकड़ गया, और विपक्ष ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” करार दिया।
सूत्रों की मानें तो यह टीम:
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मंत्री के भाषण का फोरेंसिक ऑडियो विश्लेषण कराएगी,
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वीडियो की सत्यता की डिजिटल जांच करेगी,
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कार्यक्रम में मौजूद गवाहों के बयान दर्ज करेगी,
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और अंततः यह तय करेगी कि बयान ने किसी कानून का उल्लंघन किया या नहीं।
इस जांच की खबर सामने आते ही सत्तापक्ष में बेचैनी और विपक्ष में उत्साह देखा जा रहा है। कांग्रेस ने मांग की है कि जांच न्यायिक निगरानी में हो और दोषियों को “मंत्री पद नहीं, जेल की हवा” खिलाई जाए।
अब पूरे प्रदेश की नजरें इन तीन आईपीएस अफसरों पर टिकी हैं। क्या ये अफसर सत्ता की दीवारों के पार जाकर सच सामने लाएंगे? या यह जांच भी “फाइलों के जंगल” में गुम हो जाएगी?
एक मंत्री, एक बयान और तीन अफसर —
क्या उजागर होगा सियासी सच या फिर से दबा दिया जाएगा लोकतंत्र का ज़मीर?