पूनम शर्मा
बर्फ से ढकी चोटियों, कलकल बहती नदियों और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से सुसज्जित जम्मू और कश्मीर न केवल भारत का मुकुट है, बल्कि एक स्वप्नभूमि भी है। किंतु बीते तीन दशकों में यह स्वर्ग सशस्त्र संघर्षों और आतंक की काली छाया से जूझता रहा। अब एक नई सुबह की किरणें पहाड़ों की चोटियों पर दस्तक दे रही हैं — एक ऐसा युग जहाँ यह भूमि न केवल पर्यटन की, बल्कि निवेश और नवाचार की भी धरती बन रही है।
आज जम्मू और कश्मीर एक ऐसे रूप में उभरने को तत्पर है — जहाँ विकास केवल आर्थिक संकेत नहीं, बल्कि शांति, समावेशन और राष्ट्रीय एकता का पर्याय बन रहा है।
एक ऐतिहासिक मोड़: अनुच्छेद 370 का अंत
5 अगस्त, 2019 का दिन भारतीय इतिहास में मील का पत्थर बन गया, जब अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण हुआ। इस निर्णय से केवल जम्मू और कश्मीर को भारतीय संविधान के पूर्ण दायरे में आया , बल्कि प्रशासनिक और आर्थिक अवसरों की नई राह भी खोली। केंद्र शासित प्रदेश के रूप में इसका पुनर्गठन एक ऐसा निर्णय साबित हुआ, जिसने लोकतंत्र, कानून के शासन और जवाबदेही के सिद्धांतों को गहराई से समाहित किया।
आशाओं के बीच एक चेतावनी
जहाँ विकास की यह यात्रा नई रफ्तार पकड़ रही है, वहीं हाल की पहलगाम की आतंकी घटना — 22 अप्रैल, 2025 — एक सच्चाई की याद दिलाती है: आतंकवाद अब भी एक छाया की तरह मौजूद है। लेकिन इसके जवाब में भारत की स्थिति भी स्पष्ट है — सख्त, संयमित और रणनीतिक। पाकिस्तान की अस्वीकार्य करने की नीति और छद्म युद्ध के प्रयासों के बावजूद, भारत न केवल इस खतरे का सामना कर रहा है, बल्कि इसे अवसर में बदलने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है।
पर्यटन के पार: निवेश के नए क्षितिज
जम्मू और कश्मीर अब केवल पर्यटन का केंद्र नहीं, बल्कि भविष्य की संभावनाओं का उदय स्थल बन रहा है।
- डेटा सेंटर और टेक्नोलॉजी हब: प्राकृतिक रूप से ठंडी जलवायु और जलविद्युत की प्रचुरता इसे ऊर्जा-कुशल डेटा सेंटरों के लिए आदर्श बनाती है। श्रीनगर की ठंड का लाभ उठाया जा सकता है ।
- कृषि में नवाचार: केसर, सेब और जैविक खेती के माध्यम से किसान अब वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं, बशर्ते कि उन्हें कोल्ड चेन, प्रसंस्करण और प्रत्यक्ष विपणन की सुविधाएँ मिलें।
- रक्षा निर्माण: ऊँचाई वाले युद्धक्षेत्रों की विशिष्टताओं को देखते हुए, स्थानीय स्तर पर रक्षा उपकरणों के निर्माण और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ): IT/ITES, इलेक्ट्रॉनिक्स और ईवी बैटरी जैसे भविष्य के उद्योगों में निवेश की संभावनाएँ भी बेहद व्यापक हैं।
सुरक्षा: सिर्फ धारणा नहीं, अब आंकड़ों की सच्चाई
जम्मू और कश्मीर की “असंवेदनशील” और “सैन्यीकृत” छवि अब अतीत की बात होती जा रही है।
- पत्थरबाज़ी और बंद जैसे व्यवधान लगभग समाप्त हो चुके हैं।
- स्थानीय आतंकवादी भर्ती में 2018 के 199 से गिरकर 2023 में मात्र 12 पर आ जाना एक सामाजिक परिवर्तन की बानगी है।
- सुरक्षा बलों और नागरिकों की हानि में भी निरंतर गिरावट दर्ज की गई है।
यह बदलाव केवल सैन्य शक्ति से नहीं, बल्कि सूझबूझ भरी रणनीति, बेहतर खुफिया समन्वय और शासन की पारदर्शिता से संभव हुआ है।
विश्वास की राह: लोकतंत्र और सहभागिता
न्यायपालिका की ओर से भी स्पष्टता मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2023 को अनुच्छेद 370 को अस्थायी मानते हुए इसके निरस्तीकरण को वैध ठहराया।
राजनीतिक प्रतिनिधित्व में विविधता, परिसीमन द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए सीट आरक्षण, और स्थानीय निकाय चुनावों में बढ़ती भागीदारी लोकतंत्र की जड़ों को और मजबूत कर रही हैं। अलगाववाद के स्थान पर अब राष्ट्र की मुख्यधारा में लौटने की ललक देखी जा रही है।
आग्रह नहीं, आमंत्रण है यह
यह लेख केवल एक सरकारी प्रयास की बात नहीं करता, यह एक साझेदारी का प्रस्ताव है — उद्योगपतियों, निवेशकों और युवाओं से।
आज जम्मू और कश्मीर आपके लिए पुकार रहा है: “आओ, इस परिवर्तन के भागीदार बनो।”
यह केवल एक क्षेत्र की कहानी नहीं, यह भारत के भविष्य की दिशा है। इस बार के सैन्य शक्ति प्रदर्शन से यह साफ हो चला है कि अपनी सुरक्षा के विषय में कोई समझौता नहीं करेगा भारत । कट्टरता और हिंसा को पीछे छोड़, जम्मू और कश्मीर अब धर्मनिरपेक्षता, राष्ट्रवाद और आर्थिक समृद्धि की ओर अग्रसर है। चुनौतियाँ हैं, लेकिन दिशा स्पष्ट है, और क्षितिज उजला है।