भोपाल में “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाने वालों की पुलिस ने निकाली परेड, देशद्रोही मानसिकता पर गरमाया माहौल

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समग्र समाचार सेवा 

भोपाल, 12 मई — जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पूरा देश शोक और आक्रोश में डूबा हुआ है। ऐसे संवेदनशील माहौल में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाए जाने की घटना सामने आई है। इस घटना ने देशवासियों की भावनाओं को आहत किया है और सोशल मीडिया पर भी तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।

घटना का वीडियो सबसे पहले जीतेंद्र प्रताप सिंह नामक एक सोशल मीडिया यूजर ने पोस्ट किया, जिसमें कुछ युवक “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाते नजर आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि इन युवकों ने व्हाट्सएप पर भी पाकिस्तान समर्थक स्टेटस लगाए थे। जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ, भोपाल पुलिस हरकत में आ गई और देशविरोधी हरकतों में शामिल इन युवकों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया।

पुलिस ने सिर्फ गिरफ्तार ही नहीं किया, बल्कि इन आरोपियों की सार्वजनिक परेड भी कराई। यह परेड इलाके में निकाली गई ताकि समाज को यह संदेश दिया जा सके कि देश विरोधी गतिविधियों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भोपाल पुलिस की इस कार्रवाई की आम जनता और देशभक्त नागरिकों ने जमकर सराहना की है।

भोपाल के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “यह सिर्फ कानून व्यवस्था का मामला नहीं है, यह राष्ट्रीय अस्मिता और एकता का सवाल है। देश के खिलाफ नारे लगाने वालों को यह समझना होगा कि भारत में ऐसी मानसिकता की कोई जगह नहीं है।”

इस पूरे मामले के बाद सोशल मीडिया पर भी लोगों ने आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की है। कई यूजर्स ने इन युवकों पर देशद्रोह का मामला चलाने की मांग की है, जबकि कुछ ने इनकी नागरिकता पर सवाल उठाए हैं।

जहां एक ओर भारतीय सेना पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन ‘सिंदूर’ चला रही है, वहीं दूसरी ओर देश के अंदर बैठे कुछ लोग खुलेआम पाकिस्तान प्रेम दिखा रहे हैं। यह घटना न केवल निंदनीय है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था, समाज और कानून ऐसे मानसिकता के लोगों को पहचानने और सुधारने में विफल हो रहे हैं?

इस घटना ने देशवासियों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ अब केवल नाराजगी नहीं, बल्कि ठोस और सार्वजनिक कार्रवाई की आवश्यकता है। क्या यही वक्त है जब देशद्रोह की परिभाषा पर दोबारा विचार किया जाए?

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