समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली 11 मई : तुर्की के पूर्व इस्तांबुल मेयर एकरेम इमामओग्लू की हालिया गिरफ्तारी ने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों के गंभीर हनन को उजागर कर दिया है। विपक्ष के प्रमुख नेता और रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (CHP) की ओर से संभावित राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार माने जाने वाले इमामओग्लू की गिरफ्तारी को राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन की सरकार द्वारा सत्ता विरोधियों को खत्म करने और अधिनायकवाद मजबूत करने की सोची-समझी रणनीति माना जा रहा है।
यह गिरफ्तारी उस समय हुई है जब एर्दोआन सरकार 2028 तक अगला राष्ट्रपति चुनाव टालने की कोशिश कर रही है। विश्लेषकों का कहना है कि यह राजनीतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर विरोध को दबाने का स्पष्ट प्रयास है। 2019 में इस्तांबुल नगर निकाय चुनाव में इमामओग्लू की ऐतिहासिक जीत ने एर्दोआन की पार्टी एकेपी (AKP) के वर्षों पुराने गढ़ को हिला दिया था, जिससे उनकी लोकप्रियता सत्ता के लिए बड़ा खतरा बन गई।
इस घटनाक्रम के बावजूद अमेरिका और यूरोपीय देशों जैसे प्रमुख लोकतंत्रों की चुप्पी बेहद चौंकाने वाली है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की चुप्पी बढ़ते तानाशाही शासन के प्रति नरम रुख दर्शाती है और इससे विश्व भर में लोकतांत्रिक मान्यताओं को नुकसान पहुंचता है।
भारत ने अब तक बाहरी आंतरिक मामलों में सतर्क रुख अपनाया है, लेकिन तुर्की की इस लोकतांत्रिक गिरावट के भू-राजनीतिक असर को नजरअंदाज करना अब संभव नहीं है। खासकर तब जब एर्दोआन और पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर के बीच रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं। सितंबर 2023 में दोनों की मुलाकात इस बात की पुष्टि करती है कि अंकारा-इस्लामाबाद धुरी भारत के खिलाफ वैश्विक मंचों पर संयुक्त रणनीति अपना सकती है, खासकर कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दों पर।
ऐसे में भारत को कूटनीतिक रूप से सक्रिय भूमिका निभानी होगी। खुफिया सहयोग, क्षेत्रीय साझेदारी और वैश्विक लोकतंत्र समर्थक देशों के साथ मजबूती से खड़ा होना आज की आवश्यकता है।
इमामओग्लू की गिरफ्तारी सिर्फ तुर्की का आंतरिक मामला नहीं है—यह वैश्विक लोकतंत्रों के लिए एक चेतावनी है। भारत के लिए अब सतर्कता कोई विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है।