|| दुःख सहना व सुख पचाना सीखें || 

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                                                                                           आज का भगवद् चिंतन          

 सुख व्यक्ति के अहंकार की परीक्षा लेता है तो दुःख व्यक्ति के धैर्य की परीक्षा लेता है। दोनों परीक्षा में उत्तीर्ण व्यक्ति का जीवन ही एक सफल जीवन कहलाता है। जीवन का एक साधारण सा नियम है कि सुख आता है तो वह अपने साथ अहंकार भी लेकर आता है। रावण, कंस अथवा दुर्योधनादि कौरव, इन सबके जीवन की एक ही कहानी है, कि जीवन में जितना सुख और विलास आया उतना अभिमान भी बढ़ता चला गया।

 

         दु:ख में बड़े-बड़े महारथियों का धैर्य टूटते देखा गया है। दुःखों के प्रवाह में धैर्य का बांध उसी प्रकार टूट जाता है जैसे बरसाती नदी के वेग में लकड़ी का छोटा सा पुल। सुख के क्षणों में अहंकार को जीतने वाला और दुख के क्षणों में धैर्य धारण करने वाला ही वास्तव में इस जीवन रूपी महासंग्राम का एक सफल योद्धा है। दु:ख सहना ही नहीं अपितु सुख पचाना भी जीवन की एक कला है।

  आचार्य पं. अशोक मिश्रा मुंबई

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