”सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: साझा मंशा से किया गया दुष्कर्म, सभी होंगे दोषी”

मंशा थी, तो व्यक्ति दोषी सिद्ध

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4 मई, 2025: देश की सर्वोच्च न्यायपालिका ने 1 मई को सामूहिक दुष्कर्म से जुड़े एक प्रकरण में अत्यंत महत्त्वपूर्ण और दूरगामी प्रभाव डालने वाला निर्णय सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी सामूहिक दुष्कर्म प्रकरण में यह सिद्ध हो जाता है कि सभी आरोपियों की साझा आपराधिक मंशा थी, तो मात्र एक व्यक्ति द्वारा दुष्कर्म किया जाना ही शेष सभी को दोषी सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। यह निर्णय 1 मई 2025 को न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की खंडपीठ द्वारा पारित किया गया।

यह टिप्पणी मध्य प्रदेश में वर्ष 2004 में घटित एक महिला के अपहरण व गैंगरेप के मामले में की गई, जिसमें राजू और जलंधर कोल नामक दो व्यक्तियों पर आरोप सिद्ध हुआ। पीड़िता ने अपने बयान में स्पष्ट कहा कि दोनों आरोपियों ने संयुक्त रूप से उसे अपहृत कर अलग-अलग स्थानों पर अवैध रूप से बंधक बनाया तथा दुष्कर्म किया। ट्रायल कोर्ट ने दोनों को दोषी ठहराया—राजू को आजीवन कारावास तथा जलंधर को दस वर्ष का कठोर कारावास सुनाया गया। हाईकोर्ट ने इस निर्णय को यथावत् बनाए रखा।

राजू द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(द्द) के अंतर्गत यदि एक से अधिक व्यक्तियों ने साझा मंशा से अपराध में भाग लिया हो, तो प्रत्येक व्यक्ति द्वारा दुष्कर्म किया जाना सिद्ध करना आवश्यक नहीं।

इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया कि सामूहिक अपराधों में व्यक्तिगत कृत्य की अपेक्षा साझा मंशा को अधिक महत्व दिया जाएगा। यह निर्णय आने वाले समय में सामूहिक अपराधों के न्यायिक विश्लेषण की दिशा को नया आयाम देगा। यह बदलाव न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावी, द्रुतगामी और पीड़ित-केंद्रित बनाने में सहायक सिद्ध होगा।

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