समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,29 अप्रैल। कल्पना कीजिए — एक ओर दुनिया जल रही है, जंगलों में आग धधक रही है, फसलें सूख रही हैं, बाढ़ और सूखे से लाखों लोग जूझ रहे हैं… और दूसरी ओर कुछ अरबपति, अंतरिक्ष में ‘मज़ेदार सैर’ पर निकल पड़ते हैं — चंद मिनटों की वज़नहीनता के लिए।
स्वागत है उस नए युग में जहां अंतरिक्ष पर्यटन, जलवायु संकट के बीच उड़ती हुई असमानता का प्रतीक बन चुका है।
उपकक्षा में एक छोटी सी उड़ान — कुछ मिनटों का रोमांच, पृथ्वी का अद्भुत नज़ारा, और एक ऐसा टिकट जिसकी कीमत आम लोगों की पूरी ज़िंदगी की कमाई से भी ज्यादा होती है। लेकिन यह ‘स्पेस जॉयराइड’ जितनी दिखने में ग्लैमरस है, उतनी ही विनाशकारी भी।
प्रति यात्री एक स्पेस ट्रिप से निकलने वाला कार्बन उत्सर्जन एक अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट के मुकाबले 50 से 100 गुना अधिक होता है। और इससे भी बुरा — रॉकेट के ज़रिए उत्सर्जित काला कार्बन (ब्लैक सूट) ऊपरी वायुमंडल में वर्षों तक बना रहता है, जहां यह ज़मीन के प्रदूषण की तुलना में कहीं अधिक असरदार ढंग से पृथ्वी को गर्म करता है।
रॉकेट लॉन्च न सिर्फ प्रदूषण फैलाते हैं, बल्कि ओज़ोन परत को भी नुकसान पहुंचाते हैं — वो पतली परत जो सूरज की खतरनाक UV किरणों से हमारी ढाल है। हर एक भव्य लॉन्च हमें उस दुनिया की ओर और करीब ले जाता है, जहां सांस लेना तक मुश्किल होगा।
सबसे कड़वी सच्चाई यह है कि अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले लोग उस जलवायु संकट की असली कीमत नहीं चुका रहे। वो लोग जो सबसे कम ज़िम्मेदार हैं, यानी ग्लोबल साउथ के गरीब देश — वे सूखे, बाढ़ और भुखमरी से जूझ रहे हैं। उनके लिए स्पेस टूरिज़्म कोई बहस का विषय नहीं, बल्कि जीवित रहने की जद्दोजहद ही हर दिन की लड़ाई है।
स्पेस टूरिज़्म दरअसल एक चेतावनी है — यह हमें दिखाता है कि किस तरह जलवायु संकट की लागत असमान रूप से बांटी गई है। समर्थ सपने देखते हैं, और उसकी कीमत वंचित चुकाते हैं।
हाल ही में एक प्राइवेट मिशन ने 10 प्रसिद्ध महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजा। हेडलाइंस ने इसे “नारी सशक्तिकरण का ऐतिहासिक क्षण” बताया। लेकिन ज़रा गहराई से देखिए — जब ‘सशक्तिकरण’ का इस्तेमाल पृथ्वी को नुकसान पहुंचाने वाले कामों को ढकने के लिए किया जाए, तो यह नारीवाद नहीं, बल्कि खतरनाक पर्यावरणीय पाखंड है।
सच्चा फेमिनिज़्म बराबरी, न्याय और सतत भविष्य की बात करता है — ना कि चंद अमीर महिलाओं के स्पेस फैंटेसी पूरे करने को ‘क्रांति’ कहकर मनाने की।
रॉकेट के चमकते लॉन्च पैड और अंतरिक्ष यात्रियों की मुस्कानें हमें एक स्वप्नलोक दिखाती हैं। लेकिन हर लॉन्च के पीछे एक दम घुटती दुनिया है।
मीडिया, सरकारें और कॉर्पोरेशन — सभी की नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वे सच्चाई दिखाएं — सिर्फ चकाचौंध नहीं।
अगर हम बिना सवाल किए स्पेस टूरिज़्म का जश्न मनाते रहेंगे, तो हम खुद उसी जलवायु संकट को बढ़ावा देंगे जिससे हम लड़ने का दावा करते हैं।
सच्चाई ये है — धरती पर रह रहे अधिकतर लोगों के पास कोई “प्लैनेट बी” नहीं है। यह नीला ग्रह ही हमारा एकमात्र घर है।
तो क्या हमें सितारों का पीछा करने से पहले, ज़मीन को जलने से नहीं बचाना चाहिए?
स्पेस टूरिज़्म भविष्य की तरह लग सकता है — लेकिन एक जलती हुई दुनिया में, सबसे साहसिक कार्य यही होगा कि हम यहीं रुकें… और इस धरती को ठीक करें।