पूनम शर्मा द्वारा
आज रविश कुमार का अनर्गल प्रलाप सुना जिसमें भारत सरकार की आलोचना करते हुए वह कह रहे थे कि पर्यटकों के लिए एडवाइज़री सरकार ने क्यों नहीं जारी की । यहाँ अब इन पत्रकार महोदय को कौन समझाए कि भाईसाहब एडवाइज़री एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जो सभी लोगों के लिए जारी किया जाता है यहाँ मात्र हिंदुओं की हत्या हुई है । नाम पूछ कर हत्या हुई है ,कपड़े उतारकर चिन्हित किया गया एवं गोली मारी गई उन्हें जो मुसलमान नहीं थे । जैसे यदि रविश कुमार अपना नाम बताते तो भी यही हो सकता था परंतु उन्हे कलमा पढ़ना अवश्य आता होगा उनकी प्राण रक्षा हो जाती । यहाँ एडवाइज़री का संदर्भ अब हिन्दू धर्म के लोगों से होना चाहिए भविष्य में अब यह दस्तावेज़ उन हिंदुओं के लिए इस बात को ध्यान में रखकर बनना होगा कि यदि किसी पर्यटक स्थल में हिन्दू भ्रमण हेतु जाएं तो उन्हें कलमा पढ़ना आना होगा अथवा उनका खतना होना होगा अन्यथा अपने ही देश में उन्हें प्राण गँवाने पड़ सकते हैं। भारत की सरकार हिंदुओं के धार्मिक स्थलों में जो सुरक्षा में करोड़ों व्यय करने को बाध्य है अब हर पर्यटक स्थल पर भी व्यय करे । यह किस तरह के भारत में रह रहे हैं हम ?
24 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला ने न केवल देश को झकझोरा, बल्कि एक ऐसी सच्चाई को उजागर किया जो रोंगटे खड़े कर देती है। असम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य, जो एक हिंदू ब्राह्मण हैं, ने अपनी जान बचाने के लिए उस समय ‘कलमा’ पढ़ा, जब आतंकी दाढ़ी देखकर उन्हें मुसलमान समझ बैठे और जान बख्श दी। उनकी पत्नी ने सिंदूर मिटाकर अपनी पहचान छुपाई, और फिर किसी तरह दोनों बच निकले।
अब यह सवाल उठता है — क्या हमारे पास ऐसे मोड़ पर पहुंचने का समय आ गया है जहाँ इस देश में, जो वेदों, उपनिषदों, ऋषियों और तपस्वियों की भूमि है, वहाँ एक हिंदू को अपनी जान बचाने के लिए इस्लामिक कलमा पढ़ना होगा? क्या यही वो धार्मिक आतंकवाद है जिसका सामना हमारे पूर्वजों ने किया था? क्या यह वही मानसिकता नहीं जिसने गुरु तेग बहादुर का शीश लिया, छत्रपति संभाजी की पीठ चीर दी, और लाखों हिंदुओं को बलपूर्वक इस्लाम कबूल करवाने के लिए यातनाएं दीं? और जब पाकिस्तान बना — धर्म के आधार पर, मुसलमानों के लिए एक अलग देश। लेकिन अब जब भारत अपने प्राचीन सांस्कृतिक गौरव को पुनः स्थापित करने की दिशा में अग्रसर है, तो क्या यह स्वीकार्य है कि यहां के मूल निवासी, हिंदू, अपने ही देश में भय और आतंक के साए में जीने को मजबूर हों?
यह मात्र हमला नहीं, चेतावनी है
पहलगाम का यह हमला किसी साधारण आतंकी कार्रवाई नहीं है। यह एक इस्लामिक धार्मिक हिंसा है, जिसमें मजहब के नाम पर पहचान पूछी गई, और जिनके पास ‘इस्लामिक पहचान’ नहीं थे, उन्हें गोली मार दी गई। यह साफ दिखाता है कि एक विशेष मानसिकता, जो भारत को इस्लामिक राष्ट्र में बदलना चाहती, सक्रिय है।
क्या मुसलमान भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं?
यह प्रश्न आज बहुत से लोगों के मन में गूंज रहा है। भारतीय संविधान सबको बराबरी का अधिकार प्रदान करता है, पर जब कोई समुदाय अपनी संख्या, संगठितता और कट्टरता के बल पर अन्य समुदायों को डराने, दबाने और मरने लगे, तो यह सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता नहीं रह जाती — यह कट्टर इस्लामी विस्तारवाद बन जाती है ।
लगातार बढ़ती भारत में मुस्लिम जनसंख्या, खुलेआम इस्लामिक नारों और झंडों का डिस्प्ले, सरकारी तंत्र में बढ़ता दबदबा, और अब पहलगाम जैसे हमलों में धर्म के आधार पर हत्या — ये सभी संकेत साफ-साफ एक एजेंडे की ओर इशारा करते हैं।
क्या हिन्दुओं को आत्मरक्षा की आवश्यकता है?
बिलकुल। और न केवल शारीरिक, बल्कि वैचारिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक स्तर पर भी। भारत की आत्मा सनातन संस्कृति है। अगर हिंदू यहां असुरक्षित हैं, तो यह राष्ट्र आत्मविहीन हो जाएगा।
अब हर आतंकी हमले के बाद ‘सभी धर्म एक समान हैं’, ‘आतंक का कोई मजहब नहीं’ जैसे जुमले दोहराने का समय समाप्त हो गया है। सच यही है कि जो लोग इस्लाम के नाम पर हथियार उठाते हैं, उनका एकमात्र उद्देश्य भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना है — और जो ऐसा नहीं मानता, वह या तो भोला है या डरपोक।
अब समय आ गया है — एक स्पष्ट नीति का
- घुसपैठियों की पहचान और निर्वासन: जो मुस्लिम बांग्लादेश, पाकिस्तान या म्यांमार से अवैध रूप से आए हैं, उन्हें वापस भेजा जाए।
- जनसंख्या नियंत्रण कानून: मुस्लिम आबादी पर नियंत्रण आवश्यक है, ताकि जनसांख्यिकीय असंतुलन न हो।
- कार्रवाई: मदरसों और इस्लामिक संस्थानों की निगरानी की जाए, जहां से कट्टरता फैलाई जाती है।
- राष्ट्रीय पहचान की पुनःस्थापना: भारत को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में पुनर्परिभाषित करना अब विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन गई है।
- जो नहीं चाहते भारत में रहना: जो मुसलमान भारत के संविधान, संस्कृति और बहुलतावादी परंपरा को नहीं मानते, उन्हें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश जैसे इस्लामिक देशों में जाने दें।
इसका जवाब आज फिर से केवल सरकार या सुरक्षा विभागों पर निर्भर नहीं, हम सभी पर निर्भर करता है। अगर आज हम चुप रहे, तो कल हमारे बच्चे कलमा पढ़कर जान बचाएंगे या फिर उनकी कोई जान बचा नहीं पाएगा। यह तो मात्र आज कश्मीर की बात है यहाँ भारत में कई सौ कश्मीर बन रहे हैं कई सौ कश्मीर बन चुके हैं अब हर ऐसे राज्य में जहाँ जनसंख्या मुसलमानों की अधिक है उन स्थानों पर यदि अपनी जान बचानी हो तो के कलमा कंठस्थ होनी चाहिए ? ये वह लोग हैं जो वंदे मातरं नहीं बोल सकते भारत मात की जय नहीं बोल सकते । इस्लाम क्या आतंकवाद का पंथ है ? धर्म तो यह कहलाने योग्य ही नहीं है । धर्म का अर्थ ही न्याय ,दया और सत्य को अंतर्भुक्त करता है । हमेशा याद रखिए — इतिहास खुद को दोहराता है, लेकिन केवल तभी जब हम उसे भूल जाते हैं। गुरु तेग बहादुर, संभाजी, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी — इन सभी ने यह लड़ाई पहले लड़ी थी। अब यह हमारी बारी है।
भारत को भारत ही रहने दो — एक हिन्दू राष्ट्र, सनातन की भूमि।