नई दिल्ली | 22 अप्रैल – आज जब देश की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं, नागरिक सेवकों की भूमिका एक बार फिर सबकी नज़र में आ गई है। वे संघीयता के वास्तविक प्रहरी हैं, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को मजबूती से थामे रखते हैं। लेकिन क्या हम उनके दायित्व और जिम्मेदारियों को सही से समझ पा रहे हैं? अगर नागरिक सेवक राजनीति, व्यापार, उद्योग या अन्य शक्तिशाली समूहों से जुड़ जाते हैं, तो यह न केवल प्रणाली के लिए खतरनाक है, बल्कि संघीय राजनीति के लिए भी एक बड़ा संकट बन सकता है।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण राष्ट्र में, नागरिक सेवक केवल प्रशासन के कार्यों के निर्वहन तक सीमित नहीं होते। उनका काम संविधान और नियमों के अनुसार शासन चलाने का होता है, और वे सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी राज्य या केंद्र के किसी भी आदेश का उल्लंघन न हो। उनका कर्तव्य सिर्फ सरकार के आदेशों को लागू करना नहीं, बल्कि संविधान की रक्षा करना और प्रशासन में निष्पक्षता बनाए रखना है।
इस दिन हम नागरिक सेवकों से अपेक्षाएं रखते हैं कि वे न केवल न्यायपूर्ण निर्णय लें, बल्कि प्रणालीगत कार्यप्रणाली का पालन करें और नियमों का पालन करें, ताकि लोकतंत्र में एक व्यवस्थित और ईमानदार प्रशासन स्थापित हो सके।
यह सच है कि राजनीतिक और प्रशासनिक वर्ग के बीच सीमाएँ हमेशा धुंधली रही हैं, लेकिन जब नागरिक सेवक उन सीमाओं को पार करते हैं, तो यह पूरे सिस्टम को कमजोर कर सकता है। जब प्रशासनिक अधिकारी राजनीतिक सत्ता या किसी उद्योगपति से मिलकर काम करते हैं, तो सिस्टम में भ्रष्टाचार और अन्याय की संभावना बढ़ जाती है, जो भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
नागरिक सेवक यदि अपनी स्वतंत्रता खो बैठते हैं, और सत्ता के गलियारों या व्यापारिक मंडलों के दबाव में काम करने लगते हैं, तो यह केवल लोकतंत्र की छवि को धूमिल करता है, बल्कि संविधान की शक्ति को भी कमजोर कर देता है। ऐसे समय में जब भारतीय संघीय व्यवस्था अपनी जड़ों को तलाश रही है, यह सिस्टम को अस्थिर कर सकता है और राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना को बढ़ा सकता है।
सत्ता का संतुलन, जो भारत के संघीय ढांचे का मूल है, तभी तक सुरक्षित रहता है जब तक नागरिक सेवक निष्पक्ष और ईमानदार रहते हैं। यदि वे किसी राजनीतिक दल, उद्योगपति या व्यापारिक लॉबी से प्रभावित होते हैं, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी कमजोर कर सकता है। उनके इस कदम से न केवल प्रशासनिक प्रणाली ढह सकती है, बल्कि संविधान का उल्लंघन हो सकता है।
जब नागरिक सेवक सिर्फ अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो वे संविधान की रक्षा करते हैं। यही उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण संकल्प होना चाहिए। उन्हें नहीं करना चाहिए समझौता चाहे वह किसी भी दल, व्यापारी वर्ग या बाहरी दबाव के तहत हो। यह शासन की साख और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
इस महत्वपूर्ण दिन पर, हमें सभी नागरिक सेवकों से एक सख्त संकल्प की आवश्यकता है –
“हम संविधान और न्यायपालिका के प्रति अपनी निष्ठा बनाए रखेंगे, और किसी भी दबाव या व्यक्तिगत लाभ के कारण अपने कर्तव्यों से समझौता नहीं करेंगे।”
यह संकल्प केवल उनके लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण संघीय प्रणाली के भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। जब तक नागरिक सेवक अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार और निष्पक्ष रहेंगे, तब तक संविधान और लोकतांत्रिक मूल्य सुरक्षित रहेंगे।
यह समय है जब नागरिक सेवक अपने कर्तव्यों की पवित्रता को समझें, और अपने कार्यों को हमेशा संविधान, नियमों और न्याय की कसौटी पर परखें। अगर वे राजनीतिक दबावों और व्यापारिक लाभों से परे रहते हुए निष्पक्ष रूप से कार्य करेंगे, तो यह लोकतांत्रिक शासन और संघीय व्यवस्था के लिए एक स्थिर भविष्य सुनिश्चित करेगा।