कर्नाटक के  पूर्व डीजीपी की हत्या -पत्नी की स्वीकारोक्ति  

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कर्नाटक के पूर्व डीजीपी ओमप्रकाश की सनसनीखेज हत्या पूरे पुलिस महकमे को झकझोर कर रख दिया है। इस वारदात ने न सिर्फ एक प्रतिष्ठित पुलिस अधिकारी की दर्दनाक मौत को सामने लाया है, बल्कि उसके पीछे छिपे घरेलू झगड़े, मानसिक अस्थिरता और संपत्ति विवाद की परतें भी खोल दी हैं।

हत्या के तुरंत बाद उनकी पत्नी पल्लवी ने एक रिटायर्ड डीजीपी की पत्नी को वीडियो कॉल कर यह कहकर चौंका दिया-“मॉन्स्टर को खत्म कर दिया।”  इस कॉल के बाद जैसे ही पुलिस को जानकारी मिली, एक टीम तुरंत उनके बेंगलुरु स्थित आवास पर पहुंची।किन्तु जो हुआ, उसने सबके होश उड़ा दिए ।  दरवाजा नहीं खोला, और अंदर खून से सना था मंज़रजब पुलिस दरवाजे तक पँहुची , पल्लवी ने दरवाजा खोलने से अच्छी तरह से नकार दिया। यह बहुत संदिग्ध सी हरकत थी और पुलिस ने जबरदस्ती घर में घुस गए। अंदर का वाक्य शोकाजना था—फर्श पर चारों ओर रक्त फैला हुआ था और ओमप्रकाश का शव रक्त से लथपथ पड़ा हुआ था। किनारे पर एक चाकू पूरा लाल हाथों से भरा पड़ा था, जो पकड़ा जा सकता था।

शुरुआती जांच में यह खुलासा हुआ कि इस हत्या के पीछे घरेलू तनाव और संपत्ति के विवाद मुख्य कारण थे। ओमप्रकाश अपनी सारी संपत्ति बेटे के नाम करना चाहते थे, जिससे पत्नी नाराज़ चल रही थीं।सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि ओमप्रकाश ने करीब छह महीने पहले कुछ रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों से अपनी जान को खतरा होने की बात कही थी। उन्होंने साफ तौर पर संकेत दिया था कि घर में स्थिति असामान्य हो रही है और उन्हें कुछ अनहोनी की आशंका है।

पड़ोसियों और रिश्तेदारों ने भी पुष्टि की कि पिछले कुछ हफ्तों से घर में झगड़े काफी बढ़ गए थे। कई बार पल्लवी का गुस्सा नियंत्रण से बाहर हो जाता था।  पुलिस ने अब तक पल्लवी और उसकी बेटी को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की टीम पल्लवी की स्थिति का आकलन कर रही है, क्योंकि हत्या के बाद की उसकी हरकतें मानसिक असंतुलन की ओर इशारा करती हैं।

वहीं पुलिस पहली बार यह औपच्यायिक रूप से नहीं कहा है कि पल्लवी मानसिक रूप से अस्थिर थीं, लेकिन उनके व्यवहार और वीडियो कॉल के बाद दिए गए बयानों कुछ इस संभावना को बल देते हैं।ओमप्रकाश, ओडिशा कैडर के 1981 बैच के आईपीएस अधिकारी थे और बिहार के चंपारण जिले से ताल्लुक रखते थे। 2015 में उन्हें कर्नाटक के डीजीपी के रूप में नियुक्त किया गया था। रिटायरमेंट के बाद वह बेंगलुरु में ही परिवार के साथ रह रहे थे।उनकी सख्त इमेज, ईमानदारी और सेवा के प्रति समर्पण के लिए वे जाने जाते थे। एक ऐसा अधिकारी, जो दूसरों को सुरक्षा प्रदान करता था, खुद अपने ही घर में असुरक्षित निकला। 

इस दर्दभरी घटना ने अनेक प्रश्न  खड़े कर दिए हैं। अगर ओमप्रकाश पहले ही अपनी जान को खतरा बता चुके थे, तो क्या उनकी बात को किसने गंभीरता से नहीं मानी? क्या पुलिस महकमे को अपने रिटायर्ड अधिकारियों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक सावधानी से नहीं विचार करना चाहिए?

यह केवल एक हत्या का मामला नहीं है, लेकिन पूरे सिस्टम को आईना दिखाता है कि एक अधिकारी, जिसने पूरा जीवन कानून-व्यवस्था बनाए रखने में लगा दिया, खुद अपने ही घर में कानून का शिकार बन गया।पुलिस ने जांच तेज कर दी है और फोरेंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत इकट्ठा लिए हैं। इस केस से एक सीख जरूर मिलती है—घर अगर शांति का स्थान नहीं रहा, तो सबसे बड़ा अपराध वहीं जन्म लेता है।

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