“क्या कोर्ट के नाम पर टूटी श्रद्धा ? मुंबई में जैन मंदिर विवाद गहराया” पूरा मामला क्या है ?

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मुंबई  20 अप्रैल 2025–  मुंबई  के विले पार्ले ईस्ट में 32 साल पुराने एक दिगंबर जैन मंदिर को तोड़े जाने की घटना ने न केवल जैन समुदाय को झकझोर दिया, बल्कि पूरे देश में एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है। इस घटना के बाद हजारों की संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए, आँखों में आंसू, हाथों में बैनर और दिलों में आस्था की टूटन लेकर। यह मंदिर कांबलीवाड़ी क्षेत्र में नेमिनाथ सहकारी आवास भवन के पास स्थित था। इसे मुंबई महानगरपालिका (BMC) ने 16 अप्रैल की सुबह कोर्ट के आदेश के तहत ध्वस्त कर दिया। लेकिन जिस तरीके से यह कार्रवाई की गई, उसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस मामले की शुरुआत इसलिए हुई क्योकि मंदिर जिस इमारत के पार्किंग क्षेत्र में बना था, उस ज़मीन को लेकर विवाद चल रहा था। मंदिर के ट्रस्टियों और ज़मीन के अन्य दावेदारों के बीच कोर्ट में मामला लंबित था। सत्र अदालत ने इस मामले में BMC को मंदिर गिराने का आदेश दिया था, जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी चार बार दोहराया। कोर्ट ने यहां तक कहा था कि अगर इस बार आदेश का पालन नहीं हुआ, तो अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी। BMC ने कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए पुलिस की निगरानी में 16 अप्रैल की सुबह मंदिर को गिरा दिया। लेकिन यही वक्त लोगों को चुभ गया क्योंकि उसी दिन सुबह 11 बजे इस मामले की फिर से सुनवाई होनी थी, और मंदिर सुबह 8 बजे ही ढहा दिया गया।
स्थानीय लोगो की नाराजगी साफ़ जाहिर हो रही हैं। सबका कहना है कि मंदिर को तोड़ने के दौरान श्रद्धालुओं को पूजा-पाठ तक करने का समय नहीं दिया गया। किसी को भी मूर्तियों, धार्मिक ग्रंथों या अन्य पवित्र वस्तुओं को ले जाने की अनुमति नहीं दी गई। महिलाओं को घसीटकर बाहर निकाला गया, और जूते पहनकर मंदिर में घुसकर कार्रवाई की गई—जो जैन धार्मिक भावनाओं के बिल्कुल खिलाफ है। प्रदर्शन में शामिल एक स्थानीय महिला, सुनीता जैन ने कहा, “हम पूजा कर ही रहे थे कि पुलिस ने अचानक अंदर आकर सब कुछ गिरा दिया। हमें अपनी आस्था की वस्तुएँ तक ले जाने नहीं दी गईं। क्या यही लोकतंत्र है?”
BMC ने अब तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। हालांकि कुछ अधिकारियों ने बताया कि मंदिर को लेकर पहले ही नोटिस जारी किया गया था, लेकिन ट्रस्टियों ने उसे अनदेखा कर दिया। इस कार्रवाई को अंजाम देने वाले ईस्ट वॉर्ड के वॉर्ड अधिकारी नवनाथ घाडगे को अब इस मामले में निलंबित कर दिया गया है। उन्हें सिर्फ 10 दिन पहले ही इस वॉर्ड में ट्रांसफर किया गया था।
इस घटना ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ ने BMC कमिश्नर भूषण गगरानी से बात की और आश्वासन प्राप्त किया कि विले पार्ले में उसी स्थान पर फिर से मंदिर का निर्माण कराया जाएगा। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह कार्रवाई सिर्फ मंदिर पर नहीं, बल्कि देश की धर्मनिरपेक्षता पर सीधा हमला है। यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन है।” उन्होंने यह भी कहा कि यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वो लोगों की आस्था का सम्मान करे।
अखिल भारतीय जैन अल्पसंख्यक महासंघ के अध्यक्ष ललित गांधी ने भी बीबीसी से बातचीत में अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की और सवाल उठाया कि जब कोर्ट की सुनवाई उसी दिन सुबह होनी थी, तो मंदिर को उससे पहले क्यों गिराया गया?
इस मामले की अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होनी है। जैन समाज की मांग है कि BMC इस घटना के लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगे, ज़िम्मेदार अधिकारियों को सज़ा दी जाए, और अपने खर्च पर नया मंदिर वहीं बनाया जाए।  फिलहाल, जैन समुदाय के लोग अपने टूटे मंदिर के मलबे के पास अस्थायी शेड बनाकर धरना कर रहे हैं और अपने देवताओं को फिर से स्थापित करने की कोशिश में लगे हैं क्योंकि आस्था को गिराया तो जा सकता है, लेकिन मिटाया नहीं जा सकता।

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