आजीवन अयोग्यता के खिलाफ केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में दिया जवाब

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,27 फरवरी।
केंद्र सरकार ने दोषी ठहराए गए सांसदों और विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की याचिका का विरोध किया है। सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कहा कि निर्धारित अवधि की अयोग्यता (disqualification) एक संतुलित दंड प्रणाली का हिस्सा है, जो दोषियों को चुनाव लड़ने से रोकने के साथ-साथ उन्हें समाज में पुनः शामिल होने का अवसर भी देता है।

क्या कहा सरकार ने?

सरकार ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का बचाव करते हुए कहा कि दोषी ठहराए गए जनप्रतिनिधियों को उनकी सजा पूरी करने के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान पहले से ही मौजूद है। यह प्रावधान तर्कसंगत और न्यायोचित है तथा इसका निर्धारण संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।

सरकार के हलफनामे में कहा गया:
“दोषियों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय संसद की नीति के अंतर्गत आता है। इसे आजीवन प्रतिबंध में बदलने से कानून के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन होगा और यह असंगत रूप से कठोर दंड होगा।”

मामले की पृष्ठभूमि

यह याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिसमें जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 और 9 को चुनौती दी गई। याचिका में सजा पाए गए विधायकों और सांसदों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने 10 फरवरी 2025 को इस मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया था कि अयोग्यता केवल छह साल तक ही क्यों सीमित होनी चाहिए? अदालत ने यह भी कहा था कि “एक अपराधी को कानून बनाने की अनुमति देना नैतिक रूप से उचित नहीं लगती।”

कानूनी प्रावधान और बहस

  1. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8:

    • यदि किसी जनप्रतिनिधि को ऐसे अपराध में दोषी ठहराया जाता है, जिसमें दो वर्ष या अधिक की सजा का प्रावधान है, तो उसे सजा पूरी होने के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने से अयोग्य माना जाता है
  2. धारा 9:

    • यदि किसी व्यक्ति को भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति अविश्वास के कारण सरकारी सेवा से बर्खास्त किया जाता है, तो उसे पांच वर्षों तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है

सरकार ने दलील दी कि समय-सीमा आधारित दंड एक स्थापित कानूनी सिद्धांत है और जो व्यक्ति अपनी सजा पूरी कर लेता है, उसे समाज में पुनः शामिल होने का अधिकार होना चाहिए।

क्या होगा आगे?

  • सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च 2025 को करेगा, जिसमें महान्यायवादी आर. वेंकटरमणी सरकार की ओर से दलील पेश करेंगे।
  • चुनाव आयोग को भी इस पर अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा गया है, क्योंकि राजनीति के अपराधीकरण को लेकर चिंता लगातार बढ़ रही है।

गौरतलब है कि देश में वर्तमान में 5,000 से अधिक सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट यह भी जांच कर रहा है कि 2015 के उसके निर्देशों का पालन हो रहा है या नहीं, जिसमें जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मामलों का एक वर्ष के भीतर निपटारा करने के लिए त्वरित सुनवाई (day-to-day trial) का आदेश दिया गया था।

निष्कर्ष

इस मामले को राजनीति के अपराधीकरण से जोड़कर देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आगामी फैसले से यह तय होगा कि क्या दोषी जनप्रतिनिधियों पर आजीवन प्रतिबंध लगेगा या मौजूदा छह साल की अयोग्यता बनी रहेगी। अब सबकी नजरें 4 मार्च की सुनवाई पर टिकी हैं।

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