अपवित्र होते हुए भी पवित्र: पाँच अनोखी वस्तुएँ

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4 फरवरी।
सनातन धर्म में कई ऐसी अवधारणाएँ हैं जो गहरी आध्यात्मिक और वैज्ञानिक सोच को दर्शाती हैं। उनमें से एक रोचक विषय है “पाँच ऐसी वस्तुएँ, जो अपवित्र होते हुए भी पवित्र मानी जाती हैं।” इसे शास्त्रों में निम्नलिखित श्लोक के माध्यम से बताया गया है—

उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं वमनं शवकर्पटम्।
काकविष्टा ते पञ्चैते पवित्राति मनोहरा॥

इस श्लोक में पाँच वस्तुओं का उल्लेख किया गया है, जो देखने में अपवित्र लग सकती हैं, परंतु इन्हें पवित्र माना गया है। आइए, इनके गूढ़ अर्थ और धार्मिक महत्व को समझते हैं।

1. उच्छिष्ट (गाय का दूध)

गाय का दूध तब तक नहीं निकाला जाता जब तक उसका बछड़ा उसे उच्छिष्ट (अंशतः ग्रहण) नहीं कर लेता। फिर भी यह अत्यंत पवित्र और सात्त्विक माना जाता है। गाय का दूध केवल पौष्टिक ही नहीं, बल्कि धार्मिक अनुष्ठानों और शिवलिंग अभिषेक में भी प्रयोग किया जाता है।

2. शिव निर्माल्य (गंगा जल)

शास्त्रों के अनुसार, शिव जी पर चढ़ी कोई भी वस्तु “निर्माल्य” कहलाती है और इसे दुबारा उपयोग में नहीं लिया जाता, लेकिन गंगा जल इसका अपवाद है। गंगा जी का प्रवाह शिव जी की जटाओं से होकर बहता है, फिर भी यह सर्वाधिक पवित्र और पूजनीय है। हिंदू धर्म में गंगा जल को मोक्षदायी और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।

3. वमन (शहद)

शहद का निर्माण मधुमक्खियाँ फूलों से रस ग्रहण कर करती हैं, और फिर उसे अपने मुख से वमन (उल्टी) करती हैं। यह प्रक्रिया देखने में अपवित्र लग सकती है, परंतु शहद को सर्वाधिक सात्त्विक और औषधीय गुणों से भरपूर पदार्थ माना जाता है। धार्मिक अनुष्ठानों और आयुर्वेद में इसका विशेष महत्व है।

4. शवकर्पट (रेशमी वस्त्र)

शुद्धता और धार्मिक कार्यों के लिए रेशमी वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। लेकिन रेशम बनाने की प्रक्रिया में रेशम के कीड़ों को उबलते पानी में मारकर उनके कोकून से धागे निकाले जाते हैं। यह प्रक्रिया किसी मृत शरीर से वस्त्र प्राप्त करने जैसी लग सकती है, फिर भी रेशमी वस्त्र पूजा-पाठ, मंत्रोच्चार और धार्मिक अनुष्ठानों में पवित्रता का प्रतीक माने जाते हैं।

5. काक विष्टा (कौए की विष्टा)

कौवा अपनी विष्टा के माध्यम से पीपल के बीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाता है। यही कारण है कि पीपल के पेड़ प्राकृतिक रूप से जंगलों में कम, बल्कि घरों और मंदिरों के पास स्वतः उगते हैं। पीपल को पवित्र, देववृक्ष और जीवनदायी माना गया है, जो प्राणवायु (ऑक्सीजन) प्रदान करता है। अतः कौए की विष्टा, जो देखने में अपवित्र लगती है, वास्तव में एक पवित्र प्राकृतिक प्रक्रिया का हिस्सा है।

शास्त्रों में छिपा गूढ़ संदेश

इन पाँच वस्तुओं का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और नैतिक शिक्षा भी देता है—

  • हर चीज़ को बाहरी स्वरूप से नहीं आंकना चाहिए।
  • जो चीज़ देखने में अपवित्र लगती है, वह किसी न किसी रूप में उपयोगी और पवित्र हो सकती है।
  • प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझकर ही किसी वस्तु का महत्व निर्धारित करना चाहिए।

निष्कर्ष

सनातन धर्म की विशेषता यही है कि वह हर चीज़ के गहरे अर्थ और वैज्ञानिक पक्ष को समझाता है। उपरोक्त पाँच वस्तुएँ हमें यह सिखाती हैं कि “पवित्रता केवल बाहरी रूप में नहीं, बल्कि उपयोगिता और गुणों में होती है।” इसलिए हमें किसी भी वस्तु, व्यक्ति या परंपरा को केवल सतही दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, बल्कि उसके आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष को समझने का प्रयास करना चाहिए।

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