उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता: प्रगतिशील कदम या अतिरेक?

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
देहरादून, 27 जनवरी।
उत्तराखंड ने आज एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू कर दिया है, जिससे यह गोवा के बाद देश का दूसरा राज्य बन गया है जहां विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और संपत्ति से जुड़े सभी कानून समान रूप से लागू होंगे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 2022 के विधानसभा चुनावों में UCC लागू करने का वादा किया था, जिसे अब साकार किया गया है। इस कदम को सामाजिक और कानूनी समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।

एक ऐतिहासिक सुधार

समान नागरिक संहिता के तहत कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जो व्यक्तिगत कानूनों को सुव्यवस्थित करने और लैंगिक समानता सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं। इसमें निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं:

  • विवाह और लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण
  • सभी नागरिकों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित
  • बहुविवाह, बाल विवाह और तीन तलाक जैसी प्रथाओं पर प्रतिबंध
  • लिव-इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चों को कानूनी अधिकार और उत्तराधिकार देने का प्रावधान

इन बदलावों से न केवल समाज में बढ़ते बदलावों को कानूनी रूप से मान्यता मिलेगी, बल्कि न्याय, समानता और समावेशिता को भी बढ़ावा मिलेगा।

विवादित प्रथाओं पर रोक

UCC का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू निकाह हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को समाप्त करना है, जिन्हें अक्सर लैंगिक भेदभाव के रूप में देखा जाता है। इस संहिता के जरिए सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि महिलाओं को सभी समुदायों में समान अधिकार मिलें। हालांकि, अनुसूचित जनजातियों (STs) को इससे बाहर रखना इसके समावेशी होने पर सवाल खड़े करता है।

विवादास्पद प्रावधान

हालांकि UCC को व्यापक समर्थन मिल रहा है, लेकिन कुछ प्रावधानों पर विवाद भी है:

  • लिव-इन रिलेशनशिप का अनिवार्य पंजीकरण, विशेष रूप से 21 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तियों के लिए
  • गलत घोषणा या देरी पर दंडात्मक कार्रवाई, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकती है
  • इन प्रावधानों को लेकर आलोचकों का कहना है कि यह युवा जोड़ों पर अनुचित कानूनी बोझ डाल सकता है और उनकी स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है।

परंपरा बनाम आधुनिकता

UCC लागू होने से भारत में व्यक्तिगत कानूनों की एकरूपता को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन यह परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष को भी उजागर करता है। जहां समर्थक इसे राष्ट्रीय एकीकरण को मजबूत करने वाला कदम बता रहे हैं, वहीं विरोधियों का तर्क है कि यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता पर एकरूपता थोपने जैसा हो सकता है।

राष्ट्रीय स्तर पर बहस की शुरुआत

उत्तराखंड का यह कदम राष्ट्रीय स्तर पर समान नागरिक संहिता पर बहस को तेज कर सकता है। सवाल यह है कि क्या यह सुधार अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श बनेगा या विविधता वाले समाज में जटिलताओं को जन्म देगा?

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह न्याय और समानता को बढ़ावा देता है या सामाजिक टकराव को जन्म देता है।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.