उस रात की कहानी जब सरकार को दांव पर लगाकर मनमोहन सिंह ने अमेरिका से न्यूक्लियर डील फाइनल की

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,27 दिसंबर।
भारत की राजनीति और कूटनीति के इतिहास में जुलाई 2008 की वह रात एक मील का पत्थर है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी सरकार को दांव पर लगाते हुए भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील को फाइनल किया। यह डील न केवल भारत के ऊर्जा क्षेत्र को नई दिशा देने वाली थी, बल्कि इसके साथ कई राजनीतिक जोखिम भी जुड़े हुए थे।

क्या थी न्यूक्लियर डील?

यह समझौता भारत और अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए किया गया था। इसके तहत अमेरिका ने भारत को नागरिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में तकनीकी सहयोग और ईंधन आपूर्ति का वादा किया। बदले में भारत ने अपने परमाणु कार्यक्रम में पारदर्शिता लाने और अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की निगरानी स्वीकार की।

राजनीतिक संकट का सामना

इस डील को लेकर भारत की राजनीति में उथल-पुथल मच गई थी। वामपंथी दल, जो यूपीए-1 सरकार को समर्थन दे रहे थे, इस समझौते के खिलाफ थे। उनका कहना था कि यह डील भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को कमजोर कर देगी और देश को अमेरिकी प्रभाव में धकेल देगी। वामपंथी दलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिससे यूपीए सरकार अल्पमत में आ गई।

डॉ. मनमोहन सिंह का दृढ़ निश्चय

डॉ. मनमोहन सिंह ने इस डील को देश के ऊर्जा और रणनीतिक हितों के लिए अनिवार्य माना। उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यह समझौता भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई ऊंचाई देने के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा, “अगर हमें सत्ता छोड़नी पड़े, तो भी हम यह डील करेंगे।”

विश्वास मत का परीक्षण

22 जुलाई 2008 को सरकार ने संसद में विश्वास मत हासिल किया। यह मतदान भारतीय राजनीति के सबसे नाटकीय क्षणों में से एक था। विपक्ष ने डील को “राष्ट्रीय स्वाभिमान” के खिलाफ बताया, जबकि सरकार ने इसे “आर्थिक और रणनीतिक स्वतंत्रता” की दिशा में बड़ा कदम बताया। मनमोहन सिंह की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक कौशल के कारण सरकार ने यह विश्वास मत जीत लिया।

न्यूक्लियर डील के प्रभाव

इस डील ने भारत को अंतरराष्ट्रीय परमाणु क्लब में प्रवेश दिलाया। इसके परिणामस्वरूप भारत को वैश्विक ऊर्जा संकट से निपटने के लिए अत्याधुनिक तकनीक और ईंधन तक पहुंच मिली। भारत-अमेरिका संबंधों में यह समझौता एक नया अध्याय साबित हुआ।

विरासत और आलोचनाएं

हालांकि, इस डील की आलोचना भी हुई। कई लोगों ने इसे अमेरिका के प्रति झुकाव माना। लेकिन आज, जब भारत का ऊर्जा क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान मजबूत हो रही है, यह स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह का यह कदम दूरदर्शिता से भरा हुआ था।

उस रात की कहानी का संदेश

यह कहानी भारतीय राजनीति में दृढ़ निश्चय और जोखिम उठाने की क्षमता का उदाहरण है। डॉ. मनमोहन सिंह ने न केवल एक ऐतिहासिक समझौता किया, बल्कि यह भी दिखाया कि एक नेता के लिए देशहित सर्वोपरि होना चाहिए, चाहे इसके लिए कितनी भी बड़ी राजनीतिक कीमत क्यों न चुकानी पड़े।

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