समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,22अगस्त। शादी के लिए देखने गई मां ने समधन से कहा, “अंकुर मेरा एकलौता बेटा है, जैसा नाम वैसा गुण। जब-जब मैं दूसरा बच्चा न होने के लिए उदास होती, तो अजय कहते, ‘ईश्वर ने दस बेटों के गुण दिए हैं हमारे अंकुर में।’
लेकिन मेरा मन एक बेटी की चाहत में हमेशा कलपता रहा। सोचती थी बहू को ही बेटी का प्यार दूंगी। अपनी बहू की जो छवि मैंने सोची थी, अर्चना उसकी बिल्कुल विपरीत थी। उसकी मां ने ही हंसते हुए कहा, ‘अपने नाम के विपरीत है अर्चना! लड़कों की तरह वेशभूषा, हंसना, बोलना, अक्खड़पन भरा हुआ है उसमें। जाने अंकुर को क्या दिखा इसमें।’
जीन्स और टी-शर्ट में आकर उसने ‘हैलो आंटी’ कहा। मैंने भी प्रत्युत्तर में ‘हैलो’ ही कहा। तभी उसकी मां बोली, ‘आंटी के पैर छुओ बेटा।’ उसको असहज देखकर मैंने कह दिया, ‘रहने दो बेटा, इसकी कोई जरूरत नहीं है।’ बातों से एकदम बिंदास, खिलखिलाकर हंसने वाली, अपनी मां से हर बात पर तर्क-वितर्क करती ‘अर्चना’ मेरे बेटे ‘अंकुर’ की पसंद ही नहीं, प्यार भी थी।
शादी की रस्मों के बाद अर्चना हमारे घर आ गई, और अंकुर-अर्चना अपना हनीमून मना कर वापस भी आ गए।
अगले दिन से दोनों को ऑफिस जाना था। सुबह की नींद मुझे बहुत प्यारी थी, सोचती थी बहू आ जाएगी तो उसके हाथों की चाय पीकर अपनी सुबह की शुरुआत करूंगी। लेकिन अर्चना को देखकर मैंने अपना ये सपना भुला दिया और सुबह 6 बजे का अलार्म लगा कर सो गई।
पूजा की घंटियां सुन मेरी नींद खुली, अभी छह भी नहीं बजे थे। बाहर निकल कर देखा, अर्चना आरती की थाल लिए, पूरे घर में घूम रही थी। मुझे लगा मैं सपना देख रही हूं, तब तक वह पास आकर बोली, ‘मम्मा, प्रसाद लीजिए।’
फ्रेश होकर बाथरूम से निकली तो मैडम चाय के दो कप लिए हाजिर थीं। चाय पीने के बाद बोली, ‘मम्मा, मुझे नाश्ते में बस सैंडविच और चीला बनाना ही आता है। आप लोग नाश्ते में क्या खाते हैं?’ पीछे से अंकुर आकर बोला, ‘जो भी तुम बनाओगी, हम वही खाएंगे।’
अंकुर ने मेरा हैरान चेहरा देखकर पूछा, “क्या हुआ मां, चाय पसंद नहीं आई?”
“नहीं रे, इतनी अच्छी चाय तो खुद मैंने ही नहीं बनाई कभी!”
फिर मैंने अर्चना से कहा, “तुम्हें ऑफिस जाना है बेटा, तैयार हो जाओ। अभी मेड आ रही होगी, मैं उसके साथ मिलकर नाश्ता बना लूंगी।”
“अरे नहीं मम्मा, नाश्ता तो मैं ही बनाऊंगी। फिर तो मैं पूरा दिन ऑफिस में रहूंगी, तो घर पर सब आपको ही देखना पड़ेगा।”
अर्चना कभी कोई मौका नहीं देती थी कमी निकालने का। साड़ी बहुत कम पहनती है, वह हर रोज हमारे पैर भी नहीं छूती, उसकी आवाज भी धीमी नहीं है, उसे घर के काम भी नहीं आते, रोटी तो भारत के नक्शे जैसी बनाती है, और जब गुस्साती है तो… उफ्फ पूछिए ही मत! वह एक आदर्श बहू की छवि से बिल्कुल जुदा है, लेकिन ये कमी दूर हो सकती है।
खुशियों को भी कभी-कभी नजर लग जाती है! सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था कि अ
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जय को हार्ट अटैक आ गया। मैं उन्हें आईसीयू के बाहर से देख घंटों रोती रहती। उस समय मेरी अर्चना ने मुझे सास से बेटी बना दिया।
मुझे अपनी बाहों में भरकर चुप कराती, जबरदस्ती अपने हाथों से खाना खिलाती। हर वक्त यही कहती पापा बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। हॉस्पिटल के बिल, दवाइयों का खर्चा इस तरह से देती जैसे उसके अपने पापा का इलाज हो रहा हो।
अंकुर और मेरे सामने मजबूत चट्टान बनी मेरी अर्चना वास्तव में बहुत कोमल थी। घर आने के बाद भी अजय का ख्याल हम दोनों से ज्यादा रखती। अपनी नई नवेली शादी के बावजूद देर रात तक हमारे साथ बैठी रहती। मासूम गुड़िया सी बहू का सपना देखने वाली सास को एक मजबूत बेटी मिल गई थी, जिसका चोला पाश्चात्य था पर दिल एकदम देशी था।
आज मेरे जन्मदिन पर अंकुर ने कहा, “मां, तैयार हो जाइए, आपकी पसंद की साड़ी खरीदने चलते हैं।”
“मुझे कुछ नहीं चाहिए अंकुर! तूने अर्चना के रूप में मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा तोहफा दे दिया!” मेरी भीगी आंखें पोछ कर अंकुर ने पूछा, “वैसे है कहां आपकी दबंग बहू? जिसने अपनी दबंगई से आपका भी दिल जीत लिया!”
तब तक अर्चना ने मेरे गले में अपनी बाहें डालकर कहा, “हैप्पी बर्थडे मम्मा,” और एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा, “ये दुनिया की बेस्ट मम्मा के लिए।” पैकेट खोल कर देखा, तो उसमें कांजीवरम साड़ी थी, बिल्कुल वैसी ही जैसी मैं हमेशा से लेना चाहती थी!
मेरे आश्चर्यचकित चेहरे को देखकर बोली, “वो जब आप रेखा की तस्वीर गूगल पर सर्च करके घंटों देखती थीं, तभी मुझे समझ आ गया कि आप उनकी तस्वीरों में क्या देखती हैं!” अपनी जोरदार हंसी के साथ उसने फिर से मुझे गले लगा लिया। खुशी में बहते आंसुओं को पोछकर उसने कहा, “एक मां के दिल की बात एक बेटी तो समझ ही जाती है ना मम्मा!”
हां, मेरी अर्चना बेटी….
*प्रस्तुति -सरोज कुमारी