SIT नहीं करेगी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की जांच, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की ‘घोटाले’ का दावा करने वाली याचिका
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 2अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लेकर दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में चुनावी बॉंड के जरिए हुए कथित घोटालों की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) के गठन की मांग की गई थी। दो गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा दायर जनहित याचिका (PIL) में आरोप लगाया गया था कि राजनीतिक दलों, निगमों और जांच एजेंसियों के बीच ‘स्पष्ट रूप से बदले की भावना’ का माहौल है और चुनावी बॉंड योजना को एक ‘घोटाला’ करार दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉंड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया था। 15 फरवरी को, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा था कि यह योजना ‘अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।’ अदालत ने टिप्पणी की थी कि राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी फंडिंग की जानकारी सार्वजनिक के लिए आवश्यक है।
याचिका में लगाए गए आरोप
याचिका में यह भी दावा किया गया था कि कुछ शेल कंपनियां और घाटे में चल रही कंपनियां इलेक्टोरल बॉंड के जरिए अलग-अलग राजनीतिक दलों को चंदा दे रही हैं। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर इन कंपनियों को मिलने वाले धन का स्रोत जानने के लिए अधिकारियों से जांच करने की मांग की गई थी। याचिका में यह भी कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉंड घोटाले में 2जी घोटाले या कोयला घोटाले की तरह धन का लेन-देन करने का कोई प्रमाण नहीं है।
2018 में पेश की गई योजना
चुनावी बॉंड योजना को 2018 में पेश किया गया था, और इसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को नकद दान के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया गया था। याचिका में आरोप लगाया गया है कि कई कंपनियों ने जो जांच के दायरे में थीं, ने सत्तारूढ़ पार्टी को बड़ी रकम का दान दिया है ताकि जांच के नतीजों को प्रभावित किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मामले में कोई ठोस आधार नहीं है, और इसलिए SIT से जांच की कोई आवश्यकता नहीं है। इस निर्णय से यह साफ हो गया है कि इलेक्टोरल बॉंड स्कीम के खिलाफ याचिका में उठाए गए मुद्दों को अदालत ने अस्वीकार कर दिया है।
इस फैसले के बाद, राजनीतिक और कानूनी हलकों में इस स्कीम को लेकर चल रही बहस और अधिक तूल पकड़ सकती है।