सन् १९४६-४७ में भारत के विभाजन के समय आसाम के सिलहट जिले को गोपीनाथ बोरदोलोई ने भारत में मिलाने की बात रखी। जनमत संग्रह किया जाना तय किया गया।
वोटिंग के दिन सारे मुसलमान सवेरे ही लाइनों में लग गये हिन्दू लाखों थे पर वे दोपहर तक सोने और ताश खेलने के बाद तीन बजे पोलिंग बूथ पर गए। उस समय लम्बी – लम्बी लाईनें लग चुकी थी। आधे हिन्दूओं की भीड़ तो दूर से ही लंबी लंबी लाइनें देखती रही ओर आधे हिन्दू लम्बी लम्बी लाईनों में लगने से बचते रहे और बिना वोट डाले वापस घर आ गये। करीब पचपन हजार वोटों से सिलहट जिला पाकिस्तान में चला गया। पूरे सिलहट जिले में लगभग एक लाख हिन्दू वोट ही नहीं डाल सके।
मुसलमानों के सारे वोट पड़े और हिन्दुओं के एक चौथाई वोट ही पड़े जिससे सिलहट जिला पाकिस्तान में चला गया। फिर जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के पैगाम पर हिन्दूओं की बहन बेटियों की आबरू लूटी गई उनका धन जान माल छीन लिया गया और सिलहट जिले के हिन्दू दुर्दशा भोगते हुए इस दुनिया से चले गये !!
लेकिन तब से आज तक हिन्दू सुधरा नहीं। जिस दिन मतदान होता है उस दिन हिन्दू छुट्टी मनाता है, १० बजे तक सो कर उठता है, नहा धोकर फ्रेश होकर घर के काम करता है फिर मूड होता है तो मतदान केन्द्र की तरफ जाता है। भीड़ ना हुई तो वोट डाल देता है और थोड़ी भीड़ हुई तो हेकड़ी दिखाते हुए सोचता है “अरे हम लाईन में खडे होने वाले नहीं हैं” और वापस घर चला आता है।
इतिहास से सीखें, वोट का मूल्य समझें
पनपा “गोरखपुरी”