समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 नवंबर। समय के साथ भारतीय सिनेमा में महिलाओं की भूमिका में बहुत बदलाव आया है। अब वे महज कलाकार से निर्देशक, निर्माता, संपादक, पटकथा लेखक और तकनीशियन तक बन चुकी हैं। लेकिन इस 21वीं सदी में भी, क्या हमारे देश में फिल्म उद्योग, महिला-पुरुष समानता के संदर्भ में समान अवसर प्रदान करता है?
भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में आज ‘भारतीय सिनेमा में महिला शक्ति’ विषय पर आयोजित ‘इन कन्वरसेशन’ सत्र में इस पैने सवाल का जवाब तलाशने का प्रयास किया गया। कलाकार, फिल्म निर्माता और लेखिका अश्विनी अय्यर तिवारी और फिल्म संपादक श्वेता वेंकट मैथ्यू, प्रसारण पत्रकार और पूर्व संपादक, एनडीटीवी पूजा तलवार द्वारा संचालित इस प्रेरक वार्तालाप में सम्मिलित हुईं।
फिल्म उद्योग में महिलाओं के संबंध में बदलती धारणा पर जोर देते हुए अश्विनी अय्यर तिवारी ने कहा, “शुरुआत में, ‘महिला फिल्म निर्देशक’ या ‘महिला फिल्म संपादक’ के टैग का कीर्तिगान करना महत्वपूर्ण था, लेकिन अब, जैसे-जैसे महिलाएं आगे आ रही हैं, तो समय आ गया है कि इन लेबलों को हटा दिया जाए।”
फिल्म उद्योग की प्रगति पर विचार करते हुए युवा फिल्मकार ने कहा कि फिल्म, संपादन और पटकथा लेखन सिखाने वाले अधिक स्कूलों के आगमन के साथ फिल्मों में महिलाओं की भागीदारी में काफी वृद्धि हुई है। उन्होंने जोर देकर कहा, “फिल्म उद्योग में निर्णय लेने वाली संस्थाओं में और अधिक महिलाओं की आवश्यकता है। हमें ऐसे और अधिक पुरुषों की जरूरत है जो फिल्म के बारे में निर्णय लेने वाले मंचों पर महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करें।”
ओटीटी प्लेटफार्मों द्वारा महिलाओं के लिए अवसरों के मार्ग प्रशस्त करने के बारे में पर चर्चा करते हुए अश्विनी ने उम्मीद जताई कि थिएटर और ओटीटी प्लेटफॉर्म दोनों का अस्तित्व साथ-साथ बना रहेगा। उन्होंने इंगित किया कि फिल्म ट्वेल्थ फेल को हाल में मिली सफलता दर्शाती है कि मंच चाहे कोई भी हो, दिलचस्प कहानी दर्शकों को आकर्षित कर सकती है।
फिल्म उद्योग में महत्वाकांक्षी महिलाओं को सलाह देते हुए बहुआयामी निर्देशक ने उन्हें अपनी भूमिकाओं के बारे में अनावश्यक न सोचने के लिए प्रोत्साहित किया और फिल्म निर्माण की सहयोगात्मक प्रकृति पर जोर दिया। उन्होंने यात्रा और विविध सामाजिक संरचनाओं से जुड़कर वास्तविक जीवन की कहानियों को समझने के महत्व पर भी जोर दिया।
अनुभवी फिल्म संपादक श्वेता वेंकट मैथ्यू ने महिलाओं द्वारा कहानी बयान करने के अनूठे दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने उद्योग में महिला प्रतिनिधित्व में वृद्धि के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “महिलाओं की नजर स्क्रिप्ट से स्क्रीन तक रुपांतरण में खोई हुई बारीकियों को पकड़ लेती है।”
श्वेता ने इस बात पर जोर दिया कि जेंडर- केंद्रित चिंतन के बजाय काम की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। ओटीटी प्लेटफार्मों के प्रभाव के संबंध में उन्होंने आशा व्यक्त की कि ओटीटी प्लेटफार्म जेंडर और उम्र की परवाह किए बिना तकनीशियनों के लिए अधिक अवसर प्रस्तुत करेंगे।
वेतन में असमानता के मुद्दे पर दोनों महिला तकनीशियनों ने अलग-अलग दृष्टिकोण व्यक्त किया। जहां एक ओर अश्विनी ने अपने निर्माताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्हें अपने पेशेवर करियर में असमान वेतन की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा, वहीं श्वेता वेंकट मैथ्यू ने चर्चा की शुरुआत में कहा कि उन्हें और उनके पुरुष समकक्षों को जो दिया जा रहा था, उसमें काफी अंतर था। अश्विनी ने कहा कि महिला फिल्म पेशेवर आमतौर पर अपनी प्रतिभा को स्वीकार नहीं करती हैं; उन्हें अपने योगदान के आधार पर उचित मुआवजे के लिए बेहतर ढंग से बातचीत करने की आवश्यकता है। इस गहन बातचीत ने भारतीय फिल्म उद्योग में महिलाओं की प्रगति और चुनौतियों को रेखांकित करते हुए निरंतर सहयोग, प्रतिनिधित्व और निष्पक्ष पहचान की आवश्यकता पर जोर दिया।
Since cinema's inception, women have played a key role in its development. In this session, @ashwinyiyer, Shweta Venkat Mathew, and @talwar_puja discuss "Women power in Indian Cinema". Catch glimpses from this dazzling all women panel in Kala Academy at #IFFI54 ! pic.twitter.com/6lrUqtBtEf
— International Film Festival of India (@IFFIGoa) November 27, 2023