क्रोध का प्रतिरूप

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सुन्दर धारीवाल

क्रोध और रोष के मध्य क्या अंतर है.
बहुत कम लोग जानते हैं.
क्रोध एक भाव है.
जिस प्रकार प्रसन्नता, दुःख आदि भाव हैं.
परन्तु रोष क्रोध की भांति भाव न होकर एक क्रियात्मक संप्रत्यय है.
क्रोध जब हद से बढ़ जाता है तो रोष में बदल जाता है.
जब कुछ गलत होता है. या अन्यायपूर्ण होता है तो क्रोध आना स्वाभाविक है.
इस दृष्टि से क्रोध सकारात्मक भी होता है.
क्योंकि इससे मन के अंदर चल रही उथल पुथल शांत हो जाती है.
परन्तु रोष अधिक हानिकारक है.
क्रोध पर काबू पाया जा सकता है.
रोष पर काबू पाना अत्यंत कठिन है.
क्रोध का हिंसक प्रतिरूप रोष है.
क्रोध कुछ समय तक रहता है. एक दिन, दो दिन परन्तु
यदि क्रोध लम्बे समय तक बना रहे तो रोष में बदल जाता है.
रोष एक पूर्णतया विवेकहीनता की स्थिति है.
रोष हिंसक कृत्य को अंजाम देनें पर भी विवश कर सकता है.
इसलिए अधिक खतरनाक है.
रोष के मूल में क्रोध निहित रहता है पर क्रोध और रोष में पर्याप्त अंतर है.
आज के दौर में लोगों में रोष अधिक पाया जाता है.
हिंसक घटनाओं के बढ़ने का कारण यही रोष है.
रोष में भय, क्रोध, और मानसिक असंतुलन का सम्मिश्रण होता है.
जो बुद्धि का नाश कर देता है.
व्यक्ति सोचने समझने की स्थिति में पहुंचे उससे पहले ही कुछ बुरा हो चुका होता है.
क्रोध की प्रतिक्रिया है रोष अतः क्रोध कीजिये पर उसे रोष में न बदलने दीजिये अन्यथा परिणाम बहुत घातक हो सकते हैं.

सुन्दर धारीवाल

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