आइये पत्तल की परंपरा को पुनर्जिवित करें

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 19सितंबर। भारत में सदियों से विभिन्न वनस्पतियों के पत्तों से बने पत्तल संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं. ये पत्तल अब भले विदेशों में लोकप्रिय हो रहा है भारत में तो कोई भी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक उत्सव इनके बिना पूरा नहीं हो सकता था. इन समारोहों में आने वाले अतिथियों को इन पत्तलों पर ही भोजन परोसा जाता था. लेकिन अब ये पत्तल खत्म होने लगी हैं.

असंगठित क्षेत्र के पत्तल उद्योग से लाखों मजदूरों की आजीविका जुड़ी है. बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और राजस्थान जैसे राज्यों में भी अब पत्तों से बने पत्तलों का चलन धीरे-धीरे कम होने लगा है. ग्रामीण इलाकों में तो पत्तलों पर भोजन की परंपरा अब भी कुछ हद तक बरकरार है लेकिन शहरों में इसकी जगह कांच या चीनी मिट्टी की प्लेटों ने ले ली है. विभिन्न समारोहों में बुफे पार्टी का प्रचलन बढ़ने की वजह से भी पत्तों से बने पत्तल अप्रासंगिक होते जा रहे हैं.

पत्तलों से लाभ
1. सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है।
2. न पानी नष्ट होगा।
3. न ही कामवाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा।
4. न केमिकल उपयोग करने पड़ेंगे l
5. न केमिकल द्वारा शरीर को आंतरिक हानि पहुंचेगी।
6. अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे कि अधिक आक्सीजन भी मिलेगी।
7. प्रदूषण भी घटेगा।
8. सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर, खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिटटी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है।
9. पत्तल बनाने वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा।
10. सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगा। जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है।
आजकल हर जगह भंडारे, विवाह शादियों , जन्मदिन पार्टियों में डिस्पोजेबल की जगह इन पत्तलों का प्रचलन करना चाहिए।
*संजय नायक भगत

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