“विज्ञान के सिद्धांतों की उत्पत्ति वेदों में हुई लेकिन उन्हें पश्चिमी खोजों के रूप में पुनः प्रस्तुत किया गया” : इसरो प्रमुख सोमनाथ
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27 अगस्त। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा की, “विज्ञान के सिद्धांतों की उत्पत्ति वेदों में हुई लेकिन उन्हें पश्चिमी खोजों के रूप में पुनः प्रस्तुत किया गया। ”
उन्होंने कहा, “बीजगणित, वर्गमूल, समय की अवधारणाएं, वास्तुकला, ब्रह्मांड की संरचना और यहां तक कि विमानन सबसे पहले वेदों में पाए गए थे, लेकिन वे अरब देशों के माध्यम से यूरोप तक पहुंचे, और बाद में पश्चिमी दुनिया के वैज्ञानिकों की खोजों के रूप में प्रस्तुत किए गए। ”
इसरो प्रमुख -“वैज्ञानिक सिद्धांतों की उत्पत्ति वेदों से हुई है। एक रॉकेट वैज्ञानिक होने के नाते मैं संस्कृत में एक पुस्तक से आकर्षित हुआ था जो सौर मंडल, समय-पैमाने और पृथ्वी के आकार और परिधि के बारे में बात करती है। इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के लिए संस्कृत के जैसे अच्छी डील है।
इसरो चेयरमैन ने किया बड़ा दावा
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) के चेयरमैन एस सोमनाथ उज्जैन में महर्षि पाणिनी संस्कृत और वैदिक यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए। इस दौरान अपने संबोधन में एस सोमनाथ ने उक्त बातें कही। एस सोमनाथ ने ये भी कहा कि उस समय के वैज्ञानिकों द्वारा संस्कृत भाषा का इस्तेमाल किया जाता था और इसके कोई लिखित दस्तावेज नहीं थे। लोग सुनकर इसे सीखते थे, जिसकी वजह से यह भाषा आज तक बची हुई है।
इसरो चेयरमैन ने कहा कि संस्कृत भाषा वैज्ञानिक विचारों को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल की जाती थी। कंप्यूटर की भाषा भी संस्कृत है और जो लोग कंप्यूटर और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सीखना चाहते हैं, उनके लिए संस्कृत भाषा काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। एस सोमनाथ ने कहा कि संस्कृत भाषा में लिखा भारतीय साहित्य दार्शनिक तौर पर काफी समृद्ध है। संस्कृत में संस्कृति, धर्म और विज्ञान के अध्ययन में ज्यादा अंतर नहीं है।
‘आठवीं सदी की किताब में हैं अंतरिक्ष विज्ञान की जानकारी’
सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान, चिकित्सा, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान आदि संस्कृत भाषा में लिखे गए थे लेकिन अभी तक इस पर ज्यादा रिसर्च नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष विज्ञान पर एक किताब है सूर्य सिद्धांत, यह किताब आठवीं शताब्दी की मानी जाती है और एक रॉकेट साइंस होने के नाते, मैं ये जानकर काफी आश्चर्यचकित हुआ कि उस किताब में सौर ऊर्जा और टाइम स्केल के बारे में बताया गया था। दीक्षांत समारोह के बाद एस सोमनाथ ने उज्जैन में महाकाल मंदिर में जाकर पूजन और दर्शन भी किए।