सुप्रीम कोर्ट ने दी 27 हफ्ते की गर्भवती महिला को गर्भपात की इजाज़त, बच्चे को गोद देने की जिम्मेदारी सरकार की होगी

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने 27 हफ्ते की गर्भवती महिला को गर्भपात की इजाज़त दी. मेडिकल रिपोर्ट में इस स्टेज पर भी महिला की सुरक्षित तरीके से प्रेगनेंसी टर्मिनेट की बात कही गई थी. सुप्नीम कोर्ट ने कहा कि अगर भ्रूण जीवित रहता है तो हॉस्पिटल बच्चे को इनक्यूबेशन में रखकर सुनिश्चित करेगा कि वो जी सके. सरकार की जिम्मेदारी होगी कि क़ानून के मुताबिक बच्चे को गोद दिया जा सके. महिला गुजरात की है.

सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को अपनी गर्भावस्था समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा कि शादी के बाहर गर्भावस्था अवांछित होने पर महिला के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है.

सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को विशेष बैठक में दुष्कर्म पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसकी दोबारा मेडिकल जांच का आदेश दिया था और अस्पताल से 20 अगस्त तक रिपोर्ट मांगी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट द्वारा बलात्कार पीड़िता की 26 सप्ताह की गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की याचिका को स्थगित करने पर भी नाराजगी व्यक्त की और कहा कि मामले के लंबित रहने के दौरान कीमती समय बर्बाद हुआ.

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए, न कि मामले को स्थगित करने की.

याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 25 वर्षीय महिला ने 7 अगस्त को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और मामले की सुनवाई अगले दिन हुई थी.

उन्होंने आगे कहा कि हाईकोर्ट ने 8 अगस्त को गर्भावस्था की स्थिति के साथ-साथ याचिकाकर्ता की स्वास्थ्य स्थिति का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने को कहा था. जांच के बाद मेडिकल कॉलेज ने 10 अगस्त को रिपोर्ट भेजी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट को हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को रिकॉर्ड पर लिया था, लेकिन अजीब बात है कि मामले को 12 दिन बाद यानी 23 अगस्त को लिस्ट किया गया था। इस तथ्य को नजरअंदाज किया गया कि मामले में हर दिन महत्वपूर्ण है.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने उनके संज्ञान में लाया कि याचिका 17 अगस्त को हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी, लेकिन अदालत में इसका कोई कारण नहीं बताया गया था. हाईकोर्ट की वेबसाइट पर ऑर्डर भी अभी तक अपलोड नहीं किया गया है.

अदालत ने कोर्ट के सिक्रेटरी जनरल को गुजरात हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से पूछताछ करने को कहा और ये पता लगाने का निर्देश दिया कि विवादित आदेश अपलोड किया गया है या नहीं.

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