भारतीय संस्कृति का आर्तनाद

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पूनम शर्मा
पूनम शर्मा

*पूनम शर्मा
विचर रही थी कि,
मिली मुझे
एक दिवस
सूखे अधर,
कृशकाय,
मरणासन्न सदृश,
भान हुआ कहीं देखा,
मिली अवश्य,
मैंने कौतूहल वश,
पूछ लिया,
यह कष्ट असाध्य ,
पीड़ा दर्द
सबकुछ ,
किसने,
कैसे तुम्हें दिया,
तार तार,
आँचल गिरता ,
उड़ता
कम्पित उंगलियों के,
मध्य आधा सम्भलता,
जर्जर अवस्था थी,
नख शिख,
उलझे केश,
निर्माणाधीन जटाएँ
कर पगतल,
सब शुष्क,
देख,
क्षुब्ध हो रहा था,
हृदय मेरा ,
पुनरावृत्ति प्रश्नों की मेरी,
शीघ्र बताएँ ,
कौन जना है जिसने,
किया निराश्रित ,
मुझसे कहें ,
कौन?
जिसने किया निर्वासित,
अपने अनुत्तरित प्रश्नों पर,
मैं खीझी थी,
उसका सन्ताप देख,
वेदना में डूबी थी,
अधरों की वे रेखाएँ ,
मनमोहक,
आकार लिए सूखे नयन ,
आकर्षक अवश्य था,
रहा कभी व्यक्तित्व ,
अपना ले,
वह सूखा तन ,
बैठ गई,
वह चीथड़ों को समेटकर ,
मैं भी निकट जा लगी,
उसके सिमटकर,
मेरे प्रश्नों पर ,
जताया न उसने कोई प्रतिरोध,
कारण,
उसने जो बताया था क्या अवरोध,
उसके जीर्ण शीर्ण जर्जर से तन से,
विस्मृत हुई मैं सुन कर,
ओजस्वी गूँजती वाणी ,
निकली थी जो मन से,
बोल उठी थी वह,
हाँ ,मैं परिचित हूँ तुम्हारी,
वयस मेरी अनादि काल से,
है तुम्हारा अस्तित्व,
मुझसे ,
मेरा नाम संस्कृति है,
अचंभित सुन रही थी,
हर वाक्य मैं ,
फिर उसने कहा ,
भारत मेरा,
मैं ही,
भारत की संस्कृति हूँ,
निर्वासित ,निराश्रित,
प्रत्येक गृह से निकाली जा रही हूँ ,
दर दर भटकती जा रही हूँ,
रीतियों,
सामाजिक व्यवहारों से,
त्योहार ,
जन्म ,विवाह ,मृत्यु
की प्रथाओं से ,
साहित्य ,संगीत,कला ,
घोषित जीवन शैली के साथ,
खान -पान की
नियमावली से भी
जा रही हूँ धकेली ,
सहस्रों पुत्र, पौत्रों,पौत्रियों,
की सहकारिता से ,
नतमस्तक हो चुके जो अज्ञानता को ,
अन्धकार जिनका है नव देवता,
है किया जा रहा रूपान्तरण,
मेरी अस्मिता का ,
मैं संस्कृति हूँ ,
भारत की,
छोड़ी जा रही हूँ,
जर्जर देह से मेरी,
न लगाओ अनुमान
मेरे अपने ही,
मुझे लाख मिटाएँ करें,
अपमान,
मैं संस्कृति हूँ,
न हन्यते,आत्मा हूँ,
चिर पुरातन,
नित नूतन,
चिरंतन,
मैं ही सनातन हूँ,
असंख्य आमंत्रण मेरे ,
अनेक अनुरागी
प्रतिपल,
अनगिनत,
नूतन निमंत्रण,
पर भारत से,
विरह न सह पाऊँगी ,
यही ऐसे ही रह जाऊँगी?
सबसे आह्ववान ,
मनुहार,
आत्मनिवेदन,
भारत ही मेरा,
मैं भारत की ही संस्कृति हूँ।

 

कवियित्री परिचय -:
श्रीमती पूनम शर्मा
देश की प्रसिद्द कवियित्री, कथाकार,इतिहासकार व शोधार्थी हैं.
अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना से जुडी है.
असम के गुवाहाटी में रहकर शिक्षण कार्य करती हैं.

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