
सांगोल क्या है? और यह कहां से आया? इसकी सच्ची कहानी यह है। लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से पूछा की सत्ता के स्थानांतरण का कोई प्रतीक भारत में है? नेहरू को इसका ज्ञान नही था। उन्होंने सी राजगोपाला चारी, जिन्हे राजा जी के नाम से भी जाना जाता है, से यह प्रश्न किया। राजा जी विद्वान थे। उन्होंने शोध करके बताया कि भारत में चोल परंपरा के अनुसार जब नया राजा चुना जाता है तो पुराना राजा संगोल (राज दंड) नए राजा को देता है। भारतीय परंपरा में, प्राचीन काल में भी किस प्रकार सभ्य तरीके से सत्ता का स्थानांतरण एक राजा से दूसरे राजा का होता था। यह प्रजा तंत्र का प्रतीक था। अब इस प्रकार की प्रक्रिया विदेशी अकंताओ में नही ही क्योकिं वहां सत्ता का स्थांतरण राज परिवार में ही भाई की भाई द्वारा हत्या किए जाने या पिता को कैद करने से होता था। इस प्रकार के स्थानांतरण एक आध बार कुछ अन्य घरानों में हुआ किंतु यह अपवाद ही रहा।
क्योकिं अंग्रेजो से सत्ता का स्थानांतरण सभ्य और विधिपूर्वक तरीके से हो रहा था इस प्रकार की प्रतीकों का महत्व अनिवार्य था। इंग्लैंड में भी जब सत्ता परवर्तन होता है तो नए राजा को ताज तो पहनाया जाता है साथ में हाथ में एक राज दंड भी पादरी द्वारा थमाया जाता है। यही नहीं इंग्लैंड में तो उनके हाथ में एक गोल गेंद जिस पर क्रॉस बना होतनहाई भी थमाया जाता है क्योंकि इंग्लैंड का राजा चर्च ऑफ इंग्लैंड का भी अध्यक्ष माना जाता है। कॉमनवेल्थ के सभी देशों को स्वतंत्रता मिली पर किसी भी देश का विभाजन नहीं हुआ। भारत का विभाजन धार्मिक कारणों से हुआ था तो ऐसा माना जा रहा था कि पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र होगा और भारत एक हिंदू राष्ट्र। अब जिस देश के बड़े नेताओं में एक महात्मा हो और दूसरा पंडित और क्या अपेक्षा की का सकती थी। तब तमिलनाडु (तब इसका नाम मद्रास प्रोविंस था) के एक जाने माने स्वर्णकार को इसे बनाने का आदेश दिया गया। राज दंड या संगोल का निर्माण चांदी में हुआ और इस पर सोने का वर्क चढ़ाया गया। जब संगोल बन कर दिल्ली आया तो सभी को भाया। यह दक्षिण भारत की संस्कृति के आदर्नका भी प्रतीक था। चोला काल के दौरान दक्षिण भारत व वह की संस्कृति का बहुत विकास हुआ।
क्या आपने कभी सोचा की भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता 15 अगस्त की मध्यरात्रि को ही क्यों मिली और पाकिस्तान को 14 अगस्त को क्यों? क्योंकि हमारे यहां पंचांग देख कर मुहूर्त निकल कर ही ताजपोशी करने की परंपरा रही है।
जिन्ना यह सब नही मानते थे तो उन्होंने जब सत्ता मिली ले ली। किंतु भारत में सही दिन और समय पंचांग देख कर एक पुरोहित द्वारा चुना गया और वह था 15 अगस्त मध्य रात्रि। इसलिए फ्रीडम एट मिड नाइट नामक पुस्तक भी लिखी गई। पंडित जवाहरलाल नेहरू जी का प्रसिद्ध भाषा भी इसी का व्याखान करता है। किंतु सत्ता का स्थंतरण दिन के समय हो गया था। डॉ राजेंद्र प्रसाद के घर पर हिंदू परंपरा के अनुसार मंत्र उच्चारण द्वारा किया गया। तमिलनाडु से एक गायक भी राज दंड के साथ आया था। उसका गीत राजा को उसके कर्तव्य याद करवाता है। उसे यह समझाया जाता है कि हे राजन तुम शिव भगत हो, और तुम्हे अब ऐसे राज करना है जैसे की स्वर्ग में शिव का शासन चलता है। हमे नही भूलना चाहिए कि राष्ट्र सिद्धांत भी सत्यम शिवम सुंदरम है। इसी सिद्धांत के स्वरूप नेहरू जी को कांग्रेस वर्किंग कमिटी में सरदार पटेल से हार जाने के पश्चात भी गांधी जी के आग्रह पर शांतिपूर्वक सत्ता सौंप दी गई। याद रहे नेहरू जी को केवल एक वोट मिला था। सभी कांग्रेसी सरदार पटेल को प्रधान मंत्री बनाना चाहते थे। खेला ममता बनर्जी ही करे यह जरूरी तो नहीं। गांधी जी ने भी कर ही दिया था। आज कल जो इल्जाम अमित शाह पर लगते हैं उनकी तुलना इस से करो।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह संगोल माओंटब्रेट की और से नेहरू जी को एक उपहार था? नही। यह सभ्यरूप से सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था। यह भारत की प्राचीन संस्कृति का भी प्रतीक था जहां इसी प्रकार शांतिपूर्वक सत्ता का परिवर्तन होता था। यह भारत की विविधता और उसकी एकता का प्रतीक है। यह उत्तर और दक्षिण भारत के समन्वय का भी प्रतीक है।
याचूरी कहते हैं कि यह सामंतवादी है। सामंतवाद मध्यकालीन यूरोप का एक प्रगतिवादी कदम था जहां सामंतो को अंकित कर सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया था ताकि जनता को ठीक सुविधा स्थानीय आवश्यकता के अनुसार सुविधाएं दी जा सके। अब वामपंथ ने प्रत्येक चीज का अर्थ ही बदल दिया। उन्होंने पश्चिम की सभ्यता का एक विकृत रूप भारत में लगी किया। स्वतंत्रता के समय भारत धर्मनिरपेक्ष (मतनिरपेक्ष) राज्य नही था। यदि ऐसा होता तो द्विराष्ट्र का सिद्धांत ही लागू नहीं होता। यदि पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र था तो भारत स्वायसर्थकता के कारण हिंदू राष्ट्र माना ही जा रहा थे। वैसे भी हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान का नारा बुलंद था। अभी तो संविधान बना भी नही था। और संविधान में भी कैसे “धर्मनिष्पेक्ष” और “समाजवादी” शब्द अजनतंत्रवादी और निरंकुश विधि से जबरदस्ती बिना किसी जनतांत्रिक प्रक्रिया के संविधान में घुस गए वह एक अन्य लेख का विषय है।
प्रश्न यह उठता है कि संगोल को इलाहाबाद में क्यों मिट्टी पड़ने के लिए छिपा दिया गया। बचपन में जब पिताजी के साथ आनंदभवन देखने गया था तब वह नेहरू जी की सोने की छड़ी देखी थी। तब लगा जिस व्यक्ति के कपड़े पेरिस से आते थे और ड्राई क्लीन होने लंदन जाते थे उसके लिए सोने की छड़ी तो छोटी से बात होगी। किंतु तब यह नहीं पता था कि इसके पीछे तो इतना बड़ा इतिहास छिपा है। नेहरू वह व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था मैं शिक्षा से ईसाई हूं, संस्कृति से मुस्लिम और दुर्भाग्य से हिंदू हूं। वह किस प्रकार हिंदू मूल्यों को स्वतंत्र भारत में पनपने देता? कैसे पूजा पाठ के साथ सत्ता परिवर्तन किया जाता? वामपंथी भी यही चाहते थे। किंतु दोनोन्येह भूल गए की जहां की पनपी विचारधारों का वह उन्मूलन कर रहे है, उस देश में आज भी प्रमुख पादरी द्वारा ही सत्ता का हस्तांतरण किया।
वहां भी पूजा पाठ होता है, हां ईसाई पद्धति द्वारा। मतनिरपेक्ष राष्ट्र का यह अर्थ नही की वह नास्तिक राष्ट्र है। वैसे भी भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है तुषिकर्ण है तो वहा संगोल के लिए स्थान कहां हो सकता है।
मोदी जी ने इस ऐतिहासिक राज दंड को दोबारा नए संसद भवन में स्थापित कर न केवल उपनिवेशी सोच को पिछड़ा है बल्कि भारत की संस्कृति, सोच और विचारधारा को पुनर्जीवित कर दिया है। उन्होंने भारत को उपनिवेश सोच से बाहर निकाला है जिस से बहुत से राज नेता अभी तक ग्रसित हैं। यह एक सराहनीय कदम है। #मेरी संसद मेरा गर्व
*लेखक परिचय- श्री आलोक लाहड स्पेन स्थित मशहूर वरिष्ठ पत्रकार व लेखक है -स्पेन के बार्सिलोना शहर में रहते है।