“सनातन धर्म संस्कृति और युवा” सेमिनार में बोले प्रो. प्रवीण गर्ग- धर्म ईश्वर का मार्ग है’
स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज अर्थशास्त्र विभाग द्वारा "सनातन धर्म संस्कृति और युवा" विषय पर सेमिनार का आयोजन
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 03मई। 2 मई मंगलवार को “सनातन धर्म संस्कृति और युवा” विषय पर स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में इकोनॉमिक्स विभाग ने एक सेमिनार का आयोजन किया। इस अवसर पर प्राचार्य प्रोफेसर प्रवीण गर्ग ने धर्म के बारें में बताया और कहा कि धर्मराज युधिष्ठिर को हम उनके धर्म का पालन करने के कारण भी जानते हैं। ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग धर्म है। धर्म हमारे शरीर में रक्त की तरह कार्य करता है। परिवार के, समाज के बड़े लोगों के प्रति हमारे मन में विशेष सम्मान रहता है।
उन्होंने आगे कहा कि माता-पिता के आदेश का पालन करना भारतीय संस्कृति मे सदैव रहा है। यही हमारा धर्म है। लंबे समय तक धर्म की पराकाष्ठा बनी रहे। इसके लिए युवाओं की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है। आज के युवाओं के हाथ में देश की बागडोर है। नित्य सनातन रहने के कारण भारत अपने वैभव के लिए जाना जाता है। पूरा विश्व आज भारत की ओर नजरें लगाए बैठा है। इसलिए भी आज सदैव सनातन वाले धर्म की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
सेमिनार के मुख्य वक्ता ‘डॉ रत्नेश कुमार त्रिपाठी’ ने धर्म के बारें में बताते हुए कहा कि ‘जो धारण किया जाए वह धर्म है’। भारतीय धर्म जाति पंथ से जुड़ा हुआ नहीं है। सतपुरुष जिसका आचरण करते हैं उसे धर्म कहते हैं। भारतीय धर्म के लिए उस मानक पुरुष का पालन करना होगा जो सन्मार्ग पर चलकर हमें दिशा प्रदान करते हैं। हम भारतीय परंपरा अनुसार दसरथ राम को राजा के 51 गुणों से अवगत कराते हैं। उसके उपरांत ही गुरु वशिष्ठ होने राज्य अभिषेक के लिए आदेश देते हैं। धर्म की रक्षा के लिए वेदों में बताया गया है कि सत्य को आप विभिन्न तरीकों से कह सकते हैं। आजकल धर्म को रिलीजन के रूप में पढ़ाया जाता है। जो कि सही नहीं है।
डॉ त्रिपाठी ने आगे कहा कि जीवन का अनुशासन ही धर्म है। धर्म का पहला लक्ष्य है धैर्य ! दूसरा क्षमा है। जो दूसरे को क्षमा करता है वह बहादुर है। क्षमा करना और क्षमा मांगना व्यक्ति की श्रेष्ठता सिद्ध करता है। दम्भ, आपके अंदर किसी प्रकार का घमंड नहीं होना चाहिए। इस बात को बुद्ध के उपदेश से भी सीखा जा सकता है। फिर जो आपका नहीं है उसको ग्रहण करने के लिए आतुर नहीं होना। सब कुछ मुझे ही चाहिए ऐसा भाव गलत है। सम्यक ज्ञान, सम्यक वाणी जो देता है वह देव है। शुद्ध! धन गया तो कुछ नहीं गया। शरीर गया तो बहुत कुछ गया। और चरित्र गया तो सब कुछ चला गया। आचार्य महावीर ने अपनी इंद्रियों पर काबू पा लिया था। अर्थात आपके द्वारा किसी को हानि ना पहुंचाने का भाव भी धर्म है। मनसा, वाचा, कर्मणा ही धर्म के आधार हैं। इन तीनों से आपके द्वारा किसी को कष्ट न हो।
“ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ।।”
विद्या अर्थात अपने अंदर ग्रहण करने के गुणों को परिष्कृत करना। सत्य को कितने ही ढंग से बोला जाए वह हमेशा सत्य ही रहता है। यह सत्य है कि जो आया है, वह जाएगा। मनुष्य को क्रोध से बचना चाहिए। क्रोध उसका सबसे बड़ा शत्रु है। मनुष्य को अपने कर्म की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। जो व्यक्ति सृष्टि पर विद्या ग्रहण नहीं करता है, तप का ध्यान नहीं रखता है, दान इत्यादि से विमुख है, ज्ञान और शील इत्यादि गुणों से परे है, ना धर्म की परवाह करता है। वह इस सृष्टि पर पशु के समान है।
आप जिस धर्म मार्ग पर चल रहे हैं उस पर अनुशासन का पालन अगर नहीं करते तो अधर्म है। जन्म से सभी शूद्र पैदा होते हैं, किंतु अपने कर्मों के द्वारा ही मनुष्य जाना जाता है। पहले गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण के समय सभी समानता के आचरण को ग्रहण करते थे किंतु आज सब अलग-अलग वर्गों में, क्लास में विभाजित हैं। आश्रम व्यवस्था द्वारा जीवन को अनुशासन में बांटा गया है। चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के द्वारा मनुष्य के कर्मों को वर्गीकृत कर स्पष्ट किया गया है। सबसे पहले किसी भी आचरण पर स्वयं चलकर ही आप दूसरों को प्रेरित कर सकते हैं।
डॉ रत्नेश त्रिपाठी ने कहा कि भारत में रहने वाले सभी भौगोलिक दृष्टि से हिंदू हैं, सनातनी हैं। जैसे ही भारत भूमि को आप मातृभूमि कहते हैं तो आप इस भारत के पुत्र हो जाते हैं। भारतीय दर्शन में सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा स्पष्ट किया गया है कि सभी खानाबदोश हैं एक दूसरे के हिस्से का मार कर खाते हैं, किंतु भारत में ऐसा नहीं, हिंदी भाषा की तरह भारतीय संस्कृति भी कभी समाप्त नहीं होगी वह सनातन है। जिस प्रकार हिंदी सभी को अपने साथ मिला लेती है, कुछ शब्द उर्दू के, कुछ फारसी के, कुछ अंग्रेजी के सभी को समाहित कर लेती है। इसी कारण हिंदी कभी समाप्त नहीं हो सकती वह भारतीय संस्कृति के समान सनातन रहेगी।
इकोनॉमिक्स विभाग की प्राध्यापक डॉ. रचना जी ने पूरे कार्यक्रम का मंच संचालन बहुत ही सुंदर ढंग से किया और डॉ मंजू ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी को धन्यवाद दिया।