स्थानीय देवताओं के ‘कोप’को आमंत्रण देने से बचने के लिए , रंगों से दूर रहे कुमाऊं क्षेत्र के गांव, नहीं मनाई होली
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली ,9 मार्च। स्थानीय देवताओं के ‘कोप’ को आमंत्रण देने से बचने के लिए रंगों से दूर रहे कुमाऊं क्षेत्र केएक दर्जन गांवों को छोड़कर पूरे उत्तराखंड में होली हर्षोल्लास के साथ मनाई गई. मुनस्यारी के एक सामाजिक कार्यकर्ता पूरन पांडेय ने बताया कि पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी सब डिवीजन के तल्ला जोहार क्षेत्र के 12 गांवों में रंगों का त्योहार कभी नहीं मनाया जाता, क्योंकि माना जाता है कि इससे स्थानीय देवी-देवता रूष्ट हो जाएंगे. होली न मनाने वाले गांवों में हरकत, मटेना, पापरी, पैकुटी, बरनिया, रिंग, चुलकोट, होकरा, माणिक, गोला, जरथी और खोयाम शामिल हैं.
ग्रामीणों के अनुसार, उनके पूर्वज लगभग 100 साल पहले कुमाऊं क्षेत्र के अन्य गांवों के लोगों की तरह होली मनाते थे, लेकिन जब भी ग्रामीण रंग खेलने के लिए बाहर आते थे तो कुछ न कुछ ऐसा होता था जो उत्सव की दैवीय अस्वीकृति का संकेत देता था. उन्होंने बताया कि एक बार जब ग्रामीण होली खेल रहे थे, स्थानीय देवता भारती सैंण के मंदिर परिसर में दो सांपों में लड़ाई शुरू हो गई. बाद के वर्षों में भी स्थानीय देवताओं के मंदिरों में कुछ ऐसा देखा गया जिसने ग्रामीणों को होली मनाने के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया.
हरकोट गांव के एक बुजुर्ग खुशाल सिंह हरकोटिया ने बताया कि गांव वालों ने इन घटनाओं के बारे में उन लोगों से पूछा जिन पर समय-समय पर देवता आते थे. उन लोगों ने ग्रामीणों को बताया कि देवताओं को रंग पसंद नहीं है, इसलिए वे अपनी अस्वीकृति प्रदर्शित करने के लिए इस तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं. सिंह ने बताया कि गांवों के बाहर रहने वाले या अपने रिश्तेदारों के यहां जाने वाले ग्रामीण होली का त्योहार मना लेते हैं, लेकिन जब वे अपने गांवों में रहते हैं तो वे अपने माथे पर शगुन का टीका भी नहीं लगाते हैं.