नजरिया,अपना अपना !!

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प्रस्तुति -: कुमार राकेश
एक दिन एक अमीर व्यक्ति अपने बेटे को एक गाँव की यात्रा पर ले गया। वह अपने बेटे को यह बताना चाहता था कि वे कितने अमीर और भाग्यशाली हैं जबकि गाँवों के लोग कितने गरीब हैं।

उन्होंने कुछ दिन एक गरीब के खेत पर बिताए और फिर अपने घर वापस लौट गए। घर लौटते वक्त रास्ते में उस अमीर व्यक्ति ने अपने बेटे को पूछा– “तुमने देखा लोग कितने गरीब हैं और वे कैसा जीवन जीते हैं? बेटे ने कहा– “हां मैंने देखा।

“हमारे पास एक कुता है और उनके पास चार है”।

“हमारे पास एक छोटा सा स्वीमिंग पूल है और उनके पास एक पूरी नदी है।” “हमारे पास रात को जलाने के लिए विदेशों से मंगाई हुई कुछ महँगी लालटेन है और उनके पास रात को चमकने वाले अरबों तारें हैं।”

“हम अपना खाना बाज़ार से खरीदते हैं जबकि वे अपना खाना खुद अपने खेत में उगाते हैं। हमारा एक छोटा सा परिवार है जिसमें पांच लोग हैं, जबकि उनका पूरा गाँव, उनका परिवार है।

“हमारे पास खुली हवा में घूमने के लिए एक छोटा सा गार्डन है और उनके पास पूरी धरती है जो कभी समाप्त नहीं होती।”

“हमारी रक्षा करने के लिए हमारे घर के चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवारें हैं और उनकी रक्षा करने के लिए उनके पास अच्छे-अच्छे दोस्त हैं।”

अपने बेटे की बातें सुनकर अमीर व्यक्ति कुछ बोल नहीं पा रहा था। बेटे ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा– “धन्यवाद पिताजी, मुझे यह बताने के लिए की हम कितने गरीब हैं..!!”

*उपर्युक्त प्रसंग से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति जैसा सोचता है, उसे सब कुछ वैसा ही नजर आता है। सब अपने देखने के नजरिये पर ही निर्भर करता है।
प्रस्तुति -कुमार राकेश

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