समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 18नवंबर। हम लोग अपनी दैनिक दिनचर्या में ऐसे कई काम करते है जो जिनका समय अगर निर्धारित करके करे तो वह ज्यादा फायदेमंद होता है। हम प्रतिदिन भोजन तो करते है लेकिन कब कितना भोजन खाना चाहिए और उसके पहले व बाद में क्या करना चाहिए इसकी जानकारी हिन्दू जन जागृति के इस लेख में देख सकते है जो वाकई दैनिक दिनचर्चा का सरल और स्वस्वथ्य बनाने का बेहतरिन माध्यम है।
1. रात्रि के भोजन एवं शयन में न्यूनतम 1 से 2 घंटे का अंतर हो ।
आहार ग्रहण करने एवं निद्रा में न्यूनतम 1 से 2 घंटे का अंतर आवश्यक है; क्योंकि उदर में गया अन्न उतने समय में थोडा तो पच जाता है ।
आहार के उपरांत तत्काल निद्राधीन होने पर देह में तमोगुण का संचार बढकर अन्नपाचन प्रक्रिया में बाधा आना : नींद की मुद्रा तमोगुणी है, इसलिए आहार के उपरांत तत्काल निद्राधीन होने से देह में तमोगुण का संचार बढकर अन्नपाचन प्रक्रिया में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं । परिणामस्वरूप रज-तमात्मक सूक्ष्म तरंगों की संभाव्य निर्मिति स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध होती है । इन तरंगों के प्रभाव में सोने की मुद्रा द्वारा पाताल में कार्यरत अनेक वासनाजन्य शक्तियां इस काल में जीव पर आक्रमण कर सकती हैं । ऐसा कहते हैं कि आहार के एक-दो घंटे के उपरांत ही निद्राधीन हों । अर्थात स्वास्थ्य के लिए अत्यावश्यक अन्नस्वरूपी पोषण प्रक्रिया में निद्रा से निर्मित तमोगुण के कारण बाधा उत्पन्न नहीं होती ।
2. भोजन के पश्चात यह न करें !
रात्रि में जूठे पात्रों में (बरतनों में) अन्नकण न छोडें
रात्रि में अनिष्ट शक्तियों का संचार अधिक रहता है । इसलिए जूठे पात्रों में शेष अन्नकणों की ओर अधिक वासनायुक्त लिंगदेह आकृष्ट होती हैं । इन वासनात्मक लिंगदेहों का घरमें संचार बढने से इन लिंगदेहों से प्रक्षेपित कष्टदायक स्पंदनों का परिणाम होकर घर के व्यक्तियों को मिचली होना, अपचन, थाली में भोजन छोडकर उठ जाने का मन करना, भोजन की रुचि ही समाप्त हो जाना इत्यादि कष्ट होने की आशंका अधिक होती है; इसलिए जूठे पात्र में से जूठन घर के बाहर केले के पत्ते पर रखकर वह अन्न पशुओं को (गाय-भैंस को) खिला देना चाहिए अथवा आसरा आदि कनिष्ठ देवताओं को अर्पित करना चाहिए ।
3. भोजन के पश्चात केश-कर्तन न करें
केश काटने की क्रिया से केश के भोथरे (कुंद) सिरों से वायुमंडल में रज-तमात्मक तरंगों का उत्सर्जन अधिक मात्रा में होता है । भोजन के उपरांत तुरंत ही केश काटने से जीव के सर्व ओर बडी मात्रा में रज-तमात्मक तरंगों की उत्सर्जनात्मक प्रक्रिया से निर्मित वायुमंडल बनता है । इस दूषित परिकक्षा के स्पर्श से देह की अन्नपाचन प्रक्रियापर विपरीत परिणाम होता है । इससे देह में दूषित वायु का घनीकरण आरंभ होता है । इस क्रिया से देह अनिष्ट शक्तियों के आक्रमण की बलि चढ सकती है । इसलिए भोजन के उपरांत केश काटना निषिद्ध माना जाता है ।
4.भोजन के उपरांत स्नान न करें ।
भोजन के उपरांत देह में जारी अन्न-पाचन की क्रिया में देह के लिए पोषक अन्नरस तथा सूक्ष्म वायु ग्रहण करनेका कार्य, पाचन प्रक्रिया में सहभागी आंतों की कोशिकाओं द्वारा किया जाता है ।
इसमें पोषक वायु ग्रहण करने की तथा अनेक त्याज्य वायु उत्सर्जित करनेकी प्रक्रिया तीव्रगति से होती रहती है । यह एक रज-तमात्मक प्रक्रिया है ।
भोजन के उपरांत स्नान करने पर जल के स्पर्श से देह अत्यंत संवेदनशील बनती है । इससे पाचन प्रक्रिया अंतर्गत होनेवाली संतुलित वायुतत्त्वात्मक रजोगुणी प्रक्रिया आवश्यकता से अधिक गति धारण करती है ।
इस अनावश्यक गति के कारण देह की पाचन प्रक्रिया में वायुओं का घर्षण होकर कष्टदायक स्पंदनों की निर्मिति होने लगती है ।
इस निर्मिति-प्रक्रिया में उत्पन्न कष्टदायक नाद की ओर वातावरण की अनेक अनिष्ट शक्तियां आकृष्ट होकर अन्नपाचन प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं । इसलिए कहते हैं कि भोजन के उपरांत स्नान न करें ।