समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 15नवंबर। “इंसान किसी से दुनिया मे एक बार मोहब्बत करता हैं इस दर्द को ले कर जीता है इस दर्द को ले कर मरता है”
मशहूर शायर गीतकार शकील बदायुनी साहब ने फ़िल्म मुगले आज़म के लिए इस गीत को डेढ़ सौ बार लिखा था तब कहीं जा कर ये गीत फाइनल हुआ था!!
1960 की फ़िल्म मुगले आज़म पर ग्रंथ लिखे जा सकते हैं शोध की जा सकती है भारतीय फिल्मों के खजाने का ये एक ऐसा नायाब हीरा है जिसकी चमक आज तक फीकी नहीं पड़ी न कभी पड़ेगी !! वक़्त की किताब के सुनहरे सफे पर एक जुनूनी कलाकार के बेमिसाल दस्तखत हैं मुगले आज़म, उस आदमी का नाम कमरुद्दीन आसिफ यानी के. आसिफ था जो गिरह से फकीर था लेकिन अपने जुनून और हौसले से बादशाहों को भी मात देता था कुल जमा दो फिल्में ही बनाई लेकिन बेमिसाल बनाई दो कमरों के मकान में रहता था और जमीन पर चटाई बिछा कर सोता था !
यूँ तो मुगले आज़म फ़िल्म के हजारों किस्से हैं लेकिन आज एक गीत की बनने की बात की जाए। राग दरबारी और दुर्गा में नौशाद साहब ने इसे निबद्ध किया है जिसे शकील साहब ने लिखा जो कि उत्तरप्रदेश के एक लोक गीत पर आधारित है, और गीत में प्रतिध्वनि के गूंज का असर डालने के लिए नौशाद साहब ने लता जी से इस गीत को स्टूडियो के स्नानागार में गवाया लता जी की इस आवाज का असर गीत के आखिरी में साफ तौर पर देखा जा सकता है !
इस गीत को आसिफ साहब पहले इंदौर के शीशमहल में फिल्माना चाहते थे लेकिन सरकारी इजाजत न मिलने से वे खफा हो गए और फिर उन पर जुनून सवार हो गया तुरन्त उन्होंने लाहौर के शीशमहल की एक प्रतिकृति तैयार करवाई जिसके लिए लाखों छोटे छोटे कांच के रंग बिरंगे टुकड़ों को काम मे लिया गया और ये कांच उन्होंने बेल्जियम से मंगवाए थे , लेकिन जब शूटिंग की गयी तो उन कांच के टुकड़ों पर से लाइट रिफ्लेक्शन की वजह से प्रिंट ठीक नहीं आ रहे थे! आसिफ साहब ने अपना माथा पकड़ लिया कई दिनों तक इस समस्या का हल खोजने की कोशिश में वक़्त बीतता जा रहा था और फ़िल्म के प्रदर्शन की तारीख नजदीक आ रही थी आखिरकार फ़िल्म के कैमरामैन आर डी माथुर साहब ने इस समस्या का हल खोज निकाला उन्होंने कांच के टुकड़ों पर वैसलीन की हल्की सी परत लगा दी जिससे लाइट का कांच पर से रिफ्लेक्शन (परावर्तन) रुक गया और गीत पूरी तरह से शूट किया जा सका
चूंकि गीत की मांग यही थी कि आखिरी में पूरे शीशमहल की हर एक दीवार पर कनिज अनारकली यानी मधुबाला जी का अक्स (परछाई/चित्र) दिखाई दे, खास बात ये की आसिफ साहब ने इस गीत को फिल्माने के लिए उस दौर में दस मिलियन रुपये खर्च कर दिए जो किसी हॉलीवुड फिल्म के निर्माण का बजट था उस वक़्त गीत के शुरू में दो मिनट 7 सेकेंड का मधुबाला जी का नृत्य देख कर अकबर और जोधा बाई के साथ साथ आप भी तारीफ किये बिना नहीं रहेंगे!!!