समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 19सितंबर।महाभारत के अनुसार, सबसे पहले महातप्सवी अत्रि ने महर्षि निमि को श्राद्ध के बारे में उपदेश दिया था. इसके बाद महर्षि निमि ने श्राद्ध करना शुरू कर दिया. महर्षि को देखकर अन्य श्रृषि मुनियों ने पितरों को अन्न देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए. पुराणों में भी पितृपक्ष को बहुत अधिक महत्व दिया गया है. कई सारी पौराणिक और लोक कथाओं में भी इसका वर्णन है, लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि महाभारत में श्राद्ध क्यों किया गया था. बता दें कि पितृ पक्ष में श्राद्ध की शुरुआत महाभारत काल से चली आ रही है. श्राद्ध कर्म की जानकारी भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को दी थी. इसके पीछे की पूरी क्या कहानी है, यह भी जान लीजिए.
कौन होते हैं पितर
हिंदू धर्म में पितर को 84 लाख योनियों में से एक माना गया है. मान्यता है कि विभन्न लोकों में रहने वाले ये दिव्य आत्माएं संतुष्ट होने पर व्यक्ति पर अपना आशीर्वाद बरसाती हैं, जिससे मनुष्य को धन, यश, कीर्ति आदि की प्राप्ति होती है और कुल की वृद्धि होती है. इस तरह से देखें तो पितृपक्ष के दौरान किया जाने वाला श्राद्ध पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता को व्यक्त करने का माध्यम है, जिससे प्रसन्न होकर पितर सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं.
कब शुरु हुई श्राद्ध की परंपरा
पितृपक्ष में पितरों के किए जाने वाले श्राद्ध के बारे मान्यता है कि इसकी शुरुआत महाभारत काल में हुई थी. मान्यता है कि जब मृत्यु के बाद सूर्यपुत्र कर्ण की आत्मा स्वर्ग पहुंची तो उन्हें वहां पर खाने के लिए भोजन की बजाय ढेर सारा स्वर्ण दिया गया, तब उन्होंने इंद्र देवता से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कर्ण को बताया कि पृथ्वी पर रहते हुए उन्होंने कभी भी अपने पितरों के निमित्त कभी भी भोजन दान, तर्पण आदि नहीं किया. तब कर्ण ने जवाब दिया कि उन्हें अपने पूवजों के बारे में कुछ भी ज्ञात न था, इसलिए अनजाने में उनसे यह भूल हुई. तब उन्हें अपनी भूल को सुधारने के लिए पृथ्वी पर 16 दिन के लिए भेजा गया. जिसके बाद उन्होंने अपने पितरों के मोक्ष के लिए विधि-विधान से श्राद्ध किया. मान्यता है कि तभी से पितृपक्ष के 16 दिनों में श्राद्ध करने की परंपरा चली आ रही है.