पार्थसारथि थपलियाल।
भारतीय संस्कृति की यह विशालता है कि वह समत्व पर आधारित है। इसके लक्षण हमें उस परिभाषा में मिलते हैं, जो मानवीयता की ओर ले जाते हैं।
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥
अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना )। यही धर्म के दस लक्षण है।
याज्ञवल्क्य ऋषि द्वारा धर्म की परिभाषा-
अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
दानं दमो दया शान्ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्।।
इस परिभाषा में अहिंसा, दान, दया और शांति को भी शामिल किया गया है। जैन धर्म मूलतः सनातन की ही एक शाखा है। इस धर्म में मन से, वचन से और कर्म से भी कोई हिंसा हो जाय, किसी को ऊंचा बोल दिया, झूठ बोल दिया, कोई अनैतिक काम हो जाय तो उसके लिए भी क्षमा मांगने का एक पर्व है उसे कहते हैं पर्यूषण पर्व। पर्यूषण पर्व भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक मनाया जाने वाला पर्व है।
श्वेताम्बर जैन 8 दिन और दिगम्बर जैन 10 तक पर्यूषण पर्व मनाते हैं। जैन धर्मावलंबी इस दौरान अपने कामकाज, व्यवसाय को रोक कर सत्संग, कीर्तन, भजन, मुनियों, गुरूओं के उपदेश सुनते हैं। मन की सफाई करते हैं।
कुछ लोग इस दौरान पूर्णतः कुछ नही खाते हैं, निराहार रहते हैं, कुछ लोग पानी पी लेते हैं, कुछ लोग एक दिन में एक ही बार भोजन करते हैं, कुछ लोग फलाहार तक सीमित रहते हैं।
भाद्रपद सुदी षष्टम का अधिक महत्व बताया गया है। इस दिन जैनधर्मावलम्बी सभी से क्षमा मांगते हैं। इसीलिए इस दिन को क्षमावाणी दिवस भी कहते हैं। हाथ जोड़कर बोलते हैं- “खम्मत खामणा” अथवा “मिच्छामि दुक्कडम“। अर्थात जाने अनजाने मुझसे कोई गलती हो गई हो तो मुझे क्षमा करें।
यह है भारत की महानता। जाने अनजाने भाव मे भी गलती हो गई हो तो उसकी भी क्षमा मांगी जाती है।
पर्यूषण पर्व पर मैं भी यही प्रार्थना करूंगा “मिच्छामि दुक्कडम।”
जय जिनेन्द्र।। जय भारत